किसान आंदोलनः 'आंदोलनजीवी 75' के बदले 180 पूर्व नौकरशाह आए मोदी सरकार के समर्थन में,विरोधियों को कहा 'मसखरा'
75 पूर्व नौकरशाहों ने सरकार पर साधा था निशानाए जवाब में 180 के समूह ने उन्हें कहा. मसखरों की टोली कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप की ओर से जारी हुआ था खुला पत्र
highlights
- FCC ने अपील की कि राष्ट्र विरोधी और अवसरवादी नेताओं के चंगुल में फंसने की बजाय बातचीत के जरिए मुद्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए काम करना चाहिए.
- 75 पूर्व नौकरशाहों के खुले पत्र को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया.
- इस बयान पर राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, केरल के पूर्व मुख्य सचिव आनंद बोस, ने हस्ताक्षर किए हैं.
नई दिल्ली:
180 सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों के एक समूह ने 75 पूर्व नौकरशाहों के एक अन्य समूह को मसखरों की टोली बताकर उस पर देश को भ्रमित करने का आरोप लगाया है. फोरम ऑफ कंसर्न्ड सिटिजन (FCC) के बैनर तले 180 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स और जजों ने दावा किया है कि किसानों के आंदोलन को समाप्त कराने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में कानूनी आश्वासन देने और कृषि कानूनों को 18 महीनों के लिए निलंबित करने का एक मध्य मार्ग सुझाया है. इसके बावजूद 75 पूर्व नौकरशाहों का एक समूह अभी भी मोदी सरकार के विरुद्ध देश में भ्रामक विमर्श गढ़ने की कोशिश कर रहा है. यह समूह जनता को गुमराह करने की कवायद में लगा है.
फोरम ऑफ कंसर्न्ड सिटिजनः सरकार ने असली किसानों को नहीं कहा देशद्रोही
रॉ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठीए पूर्व सीबीआई निदेशक नागेश्वर राव और एसएसबी के पूर्व महानिदेशक एवं त्रिपुरा के पूर्व पुलिस प्रमुख बी एल वोहरा सहित 180 लोगों ने सोमवार को यह बयान जारी किया है. कुछ दिन पहले ही 75 सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने एक खुले पत्र में आरोप लगाया था कि किसानों के विरोध प्रदर्शन के प्रति केंद्र का दृष्टिकोण प्रतिकूल और टकराव वाला रहा है. फोरम के अनुसार, "सरकार ने किसी भी स्तर पर यह नहीं कहा है कि असली और वास्तविक किसान देशविरोधी हैं." इस बयान में यह भी कहा गया है कि, 'यहां तक कि गणतंत्र दिवस पर उन लोगों के साथ भी अत्यंत संयमित तरीके से व्यवहार किया गया जिन्होंने अपराधीकरण में लिप्त होने के लिए किसानों के आंदोलन को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया.'
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पूर्व नौकरशाहों का पत्र , राजनीतिक रूप से प्रेरित
समूह ने पूर्व नौकरशाहों के खुले पत्र को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए एक बयान में कहा कि, " हम सेवानिवृत्त नौकरशाहों के मसखरों के एक समूह के पूरी तरह गलत बयानी से परेशान हैं, इन बयानों का उद्देश्य एक भ्रामक विमर्श बनाना है." इस बयान के मुताबिक, भोलेभाले किसानों को एक ऐसी सरकार के खिलाफ उकसाने के बजाय जिम्मेदार सेवानिवृत्त नौकरशाहों को यह समझना चाहिए कि कुछ अंतर्निहित संरचनात्मक कमी है जो भारतीय किसानों को गरीब रख रही है.समूह ने कहा, "जब सरकार ने एक मध्य मार्ग सुझाया है जिसमें उसने कानूनों के क्रियान्वयन को 18 महीने के लिए निलंबित करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखने के बारे में कानूनी आश्वासन और पर्यावरण संरक्षण के मामलों में किसानों के खिलाफ दंडात्मक प्रावधान वाले कुछ कानूनों को वापस लेना शामिल है, तो कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहने का कोई तर्क नहीं है."फोरम ऑफ कंसर्न्ड सिटिजन यह भी अपील की कि राष्ट्र विरोधी, षड्यंत्रकारियों और अवसरवादी नेताओं के चंगुल में फंसने की बजाय सभी को बातचीत के जरिए मुद्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए काम करना चाहिए.
इस बयान पर राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, केरल के पूर्व मुख्य सचिव आनंद बोस, जम्मू.कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस पी वैद, एयर मार्शल ;सेवानिवृत्तद्ध दुष्यंत सिंह, एयर वाइस मार्शल ;सेवानिवृत्तद्ध आर पी मिश्रा ने भी हस्ताक्षर किए हैं. गौरतलब है कि कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप से जुडे 75 पूर्व नौकरशाहों ने 11 दिसंबर को एक खुला पत्र लिखकर केंद्र सरकार पर आंदोलनकारी के प्रति शुरू से टकराव भरा रुख अपनाने का आरोप लगाया था.
यह भी पढ़ेंः किसान आंदोलन पर सरकार के रवैये के खिलाफ 75 पूर्व नौकरशाहों का खुला पत्र
सीसीजी की ओर से जारी पत्र में कहा गया था किसान आंदोलन के प्रति भारत सरकार का रवैया शुरुआत से ही प्रतिकूल और टकराव भरा रहा है. वह गैर.राजनीतिक किसानों को गैर.जिम्मेदार प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रही है और किसानों की छवि खराब कर रही है. इस पत्र पर दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंगए जुलियो रिबेरियो और अरुणा रॉय जैसे रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स के हस्ताक्षर थे.
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