भारत में हर 40 सेकंड में लगभग एक स्ट्रोक का केस, 4 मिनट में होती है एक मौत
भारत में स्ट्रोक के कारण हर साल कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज (GBD) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 1,85,000 स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं.
highlights
- 40 सेकंड में लगभग एक स्ट्रोक का केस दर्ज होता है
- भारत में 2 तरह के स्ट्रोक ज्यादा देखने को मिल रहे
- हाई बीपी के कारण दोनों तरह के स्ट्रोक की आशंका
नई दिल्ली:
भारत में स्ट्रोक के कारण हर साल कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज (GBD) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 1,85,000 स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं.जिसका मतलब है कि हर 40 सेकंड में लगभग एक स्ट्रोक का केस दर्ज होता है और हर 4 मिनट में एक मौत स्ट्रोक की वजह से होती है. भारत के लिए ये आंकड़े चिंताजनक हैं क्योंकि स्ट्रोक से न सिर्फ मौतें बल्कि विकलांगता का भी खतरा होता है. GBD रिसर्च के मुताबिक, भारत में 2 तरह के स्ट्रोक ज्यादा देखने को मिल रहे हैं. पहला है इस्केमिक स्ट्रोक, जिसमें ब्रेन आर्टरी ब्लॉक हो जाती है. इससे स्ट्रोक आता है और दूसरा है ब्रेन हेमरेज, जिसमें ब्रेन में ब्लड की आपूर्ति करने वाली आर्टरी में लीकेज हो जाती है.
हाई बीपी के कारण दोनों तरह के स्ट्रोक की आशंका ज्यादा होती है. इसके अलावा हाई शुगर, हाई कोलेस्ट्रॉल, स्मोकिंग, मोटापा, शराब का सेवन और एक्सरसाइज की कमी भी स्ट्रोक आने की वजह बनती है. यही नहीं, 15 से 20 फीसदी मरीजों में दोबारा स्ट्रोक आने का डर रहता है. दोबारा स्ट्रोक आने का कारण है दवा को वक्त से पहले बंद कर देना, बीपी, शुगर, धूम्रपान और शराब का सेवन आदि होता है.
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ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) के मुताबिक,भारत में हर साल स्ट्रोक के लगभग 1 लाख, 85 हजार मामले आते हैं, जिसमें लगभग हर 40 सेकंड में स्ट्रोक का एक मामला आता है.’ भारत में स्ट्रोक की 68.6 प्रतिशत घटनाएं होती हैं, इसमें 70.9 प्रतिशत मौतें स्ट्रोक से होती हैं और 77.7 लोगों को प्रतिशत विकलांगता का खतरा रहता है . डॉक्टर अग्रवाल के मुताबिक ये आंकड़े भारत के लिए खतरनाक हैं, खासतौर पर खराब संसाधन के साथ रहने वाले लोगों के लिए. ऐसे में ज़रूरी है कि प्रिकौशन के चलते मरीजों को दूसरा स्ट्रोक आने से बचाया जाए.
डॉक्टर के मुताबिक कई रिसर्च में ये भी पता चला है कि स्ट्रोक के मामले युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोगों में ज्यादा होता है. GBD विश्लेषण से भी ये पता चला है कि 20 वर्ष से कम आयु के लगभग 52 लाख (31 प्रतिशत) बच्चों में स्ट्रोक के मामले पाए गए हैं. और ये मामले शहरी क्षेत्र की तुलना में गरीब ग्रामीण इलाको में ज्यादा देखे जा रहे हैं. इसका कारण डॉक्टर बताते हैं कि स्ट्रोक आने के बाद के. शुरुआती 1 से 3 घंटे बहुत संवेदनशील होते हैं. अगर इस समय मरीज को बेहतर इलाज मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है और उसे दोबारा स्ट्रोक आने का खतरा भी नहीं रहता है. ग्रामीण इलाको में प्राथमिक इलाज के अभाव और संसाधनों को कमी की वजह से ये मामले वहां ज्यादा दर्ज किए जा रहे हैं.
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