भारतीय राजनेता सिर्फ इनसे डरते थे, वो होते तो ऐसे नहीं फिसलती जुबान
सियासी पिच पर बैटिंग कर रहे नेता अब स्लेजिंग से भी बाज नहीं आ रहे. चाहे वह योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) हों या मायावती (Mayawati), आजम खान (Azam Khan) हों या जयंत चौधरी
नई दिल्ली:
सियासी पिच पर बैटिंग कर रहे नेता अब स्लेजिंग से भी बाज नहीं आ रहे. चाहे वह योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) हों या मायावती (Mayawati), आजम खान (Azam Khan) हों या जयंत चौधरी , चंद्र बाबू नायडू (Chandrababu Naidu) हों या अहमद पटेल (Ahemad Patel), अर्जुन मोढवाडिया हों या चौधरी अजीत सिंह. इन नेताओं की जुबानी जंग में जुबान ऐसे फिसल रही है जैसे सियासत की पिच पर किसी ने तेल डाल दिया हो. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद चुनाव आयोग ने थोड़ी सख्ती दिखाई है. कुछ नेताओं की जुबान पर 72 घंटे तो कुछ पर 48 घंटे की पाबंदी लगाई है. लेकिन नेताओं की इस चुनाव में लंबी होती जुबान को छोटी करने के लिए टीएन शेषन ने जो काम किया था वैसा कभी नहीं हुआ.
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सिविल सर्विसेज एग्जाम को 1955 टॉप करने वाले तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन यानी टीएन शेषन के नाम ने देश को पहली बार चुनाव आयोग की ताकत बताई. यही वह नाम है जिसके लिए कहा जाता था कि भारतीय राजनेता सिर्फ दो से डरते हैं. पहला-ईश्वर और दूसरे शेषन से.
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देश के 10वें मुख्य चुनाव शेषन ने 1992 के उत्तर प्रदेश चुनाव में उन्होंने सभी जिला मजिस्ट्रेटों, पुलिस अफसरों और 280 पर्यवेक्षकों से कह दिया था कि एक भी गलती बर्दाश्त नहीं की जाएगी. सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही शेषन ने करीब 50,000 अपराधियों को ये विकल्प दिया था कि या तो वो अग्रिम जमानत ले लें या पुलिस के हवाले कर दें.
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चुनाव में पहचान पत्र का इस्तेमाल शेषन की वजह से ही शुरू हुआ. शुरुआत में जब नेताओं ने यह कहकर विरोध किया कि भारत में इतनी खर्चीली व्यवस्था संभव नहीं है तो शेषन ने कहा था- अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए तो 1995 के बाद देश में कोई चुनाव नहीं होगा.
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1993 में हिमाचल के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद बेटे का प्रचार करने सतना पहुंच गए. अखबारों में तस्वीर छपी. गुलशेर को पद छोड़ना पड़ा.
लालू प्रसाद यादव को सबसे ज्यादा जीवन में किसी ने परेशान किया...तो वे शेषन ही थे. 1995 का चुनाव बिहार में ऐतिहासिक रहा. लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते. कहते- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर के गंगाजी में हेला देंगे.
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