Manipur Assembly Election 2022 : मणिपुर के चुनावी मुद्दे और समीकरण
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर दौरे के बाद देश भर में चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया. मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के मुताबिक मणिपुर में एक बार फिर बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने की बेहद मजबूत संभावना दिख रही है. स्थानीय नेताओं के बीच सबसे ज्यादा
highlights
- देश की आजादी के दो साल बाद यानी साल 1949 में मणिपुर का विलय
- मणिपुर विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल 18 मार्च 2022 को समाप्त होगा
- पीएम मोदी के दौरे से मणिपुर विधानसभा चुनाव में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी
नई दिल्ली:
इस साल फरवरी-मार्च महीने में देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र का राज्य मणिपुर उनमें एक है. साल 2017 यानी पिछले चुनाव में बीजेपी ने 04 दलों के साथ गठबंधन कर राज्य से कांग्रेस के 15 साल से लगातार चल रहे शासन को हटा दिया था. उसके बाद मणिपुर में कांग्रेस कमजोर पड़ती गई है. चुनाव के बाद उसके विधायकों में भी लगातार टूट-फूट होती रही और अब पार्टी के पास राज्य में बड़े नेता की कमी दिख रही है. वहीं साल 2017 के चुनाव के पहले बीजेपी का मणिपुर में कोई आधार नहीं था. अक्टूबर 2016 में एन बीरेन सिंह कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए. इसके बाद उन्होंने असम के तात्कालिन मंत्री और मौजूदा मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ मिल कर मणिपुर में बीजेपी को मजबूती से खड़ा करने का काम किया.
उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के साथ मणिपुर विधानसभा चुनाव में भी लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. इससे पहले पूर्वोत्तर खासकर मणिपुर चुनाव के बारे में देश के बाकी इलाकों में जानकारी और दिलचस्पी कम देखी जाती थी. मणिपुरी नृत्य शैली पूरे भारत में काफी लोकप्रिय है. खेल जगत में खासकर मुक्केबाजी और भारोत्तोलन में मणिपुर का काफी बड़ा नाम है. मणिपुर ने देश और दुनिया को मैरी कॉम और मीराबाई चानू जैसे चैंपियन खिलाड़ी दिए. पूर्वोत्तर में सिक्किम और त्रिपुरा के अलावा मणिपुर भी एक हिन्दू बहुल राज्य है. बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर दौरे के बाद देश भर में चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया. मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के मुताबिक मणिपुर में एक बार फिर बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने की बेहद मजबूत संभावना दिख रही है. स्थानीय नेताओं के बीच सबसे ज्यादा बीजेपी के टिकट को ही लेकर ही मारामारी है.
राजनीतिक दल और मौजूदा समीकरण
भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, मणिपुर नेशनल पीपुल्स पार्टी, नागा पीपुल्स फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी और सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस मणिपुर राज्य में सक्रिय प्रमुख राजनीतिक दल हैं. 15 मार्च 2017 को एन बीरेन सिंह ने नेशनल पीपुल्स पार्टी, नागा पीपुल्स फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में पहली बार बीजेपी की सरकार बनाई और मुख्यमंत्री का पद संभाला. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी के 21, कांग्रेस के 28, एनपीएफ और एनपीपी के 4-4 और एलजेपी और टीएमसी के 1-1 विधायक हैं. इसमें दल-बदल के चलते मामूली बदलाव भी सामने आए. मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीट है. मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 18 मार्च 2022 को समाप्त होगा.
मणिपुर राज्य के प्रमुख चुनावी मुद्दे
पड़ोसी देश म्यांमार की सीमा से लगते संवेदनशील मणिपुर राज्य में अफस्पा (AFSPA) कानून राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए मजबूत स्थित में होते हुए भी चिंता का सबब बना हुआ है. यह कानून सेना को खास ताकत देता है. बीते दिनों नागालैंड में सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए 14 आम नागरिकों के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों में सेना के खिलाफ नाराजगी फैली और अफस्पा कानून को वापस लेने की मांग हो रही है. इस बड़े मुद्दे के असर से मणिपुर भी अछूता नहीं बचा है. कांग्रेस ने इसे ही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है. उसने सत्ता में आने के बाद पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से इसे हटाने का वादा किया है. वहीं बीजेपी ने इस पर विचार करने के लिए एक केंद्रीय समिति गठित की है. वहीं मणिपुर की राजनीति में विचारवाद से अधिक अवसरवाद प्रभावी रहा है. दल-बदल यहां एक सामान्य प्रवृति है. इसकी वजह से राजनीतिक हालात के बदलते देर नहीं लगती. यह भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है. इसके अलावा सुरक्षा, भ्रष्टाचार, विकास से जुड़े कई स्थानीय मुद्दे भी चुनाव के दौरान सामने आ सकते हैं.
धार्मिक और भाषाई समीकरण
देश की आजादी के दो साल बाद यानी साल 1949 में मणिपुर का विलय हुआ था. इससे पहले मणिुर ब्रिटिश राज में प्रिंसली स्टेट था. यहां की सबसे बड़ी आबादी हिंदुओं की है. इसके बाद ईसाई, इस्लाम, बौद्ध और सनामाही पंथ के लोग रहते हैं. राज्य में कुल मिलाकर 30 लाख की आबादी है. मणिपुर एक छोटा राज्य है. यहां एक विधानसभा क्षेत्र में औसतन करीब 30 हजार वोटर ही होते हैं. यहां की चुनावी रणनीति अन्य राज्यों से अलग है. यहां कई भाषाएं बोली जाती हैं. वैसे राज्य में मैतेई समुदाय का सबसे ज्यादा असर है, वो चुनावों में काफी असर डालते हैं.
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महिला वोटरों को बीजेपी ने लुभाया
बीजेपी ने जून 2021 में ए शारदा देवी को मणिपुर प्रदेश अध्यक्ष बना कर बहुत बड़ा दांव खेला. मणिपुर के सामाजिक जीवन में महिलाओं का अहम स्थान है. राजधानी इम्फाल में एक ऐसा बाजार है, जहां चार हजार से अधिक दुकानें सिर्फ महिलाएं ही चलाती हैं. शारदा देवी ने अध्यक्ष बनते ही राज्य के कोने-कोने में यात्रा कर पार्टी की पहुंच को बढ़ाया. उनके अध्यक्ष बनने के एक महीने बाद ही मणिपुर कांग्रेस के अध्यक्ष गोबिनदास कोंथोजम पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गये. कांग्रेस के कई विधायक भी बीजेपी में शामिल हुए हैं.
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