हिमाचल चुनाव: बीजेपी ने लगाई एड़ी-चोटी का जोर, चुनावी मुद्दा न बन पाए GST
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली जबरदस्त सफलता के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हिमाचल और गुजरात चुनाव में उतर चुकी है।
highlights
- हिमाचल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने झोंकी पूरी ताकत
- बीजेपी ने भ्रष्टाचार को बनाया मुद्दा तो कांग्रेस ने जीएसटी और नोटबंदी को
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली जबरदस्त सफलता के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हिमाचल और गुजरात चुनाव में उतर चुकी है।
हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों के लिए गुरुवार को वोट डाले जाएंगे। लोकसभा की 4 सीटों और राज्यसभा की 3 सीटों के आधार पर हिमाचल प्रदेश अपेक्षाकृत कम सियासी 'हैसियत' वाला राज्य है।
हालांकि इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है।
हिमाचल चुनाव की अहमियत का अंदाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ताबड़तोड़ रैलियों से लगाया जा सकता है।
बड़े आर्थिक सुधार GST के बाद हो रहे चुनाव
इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव के पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नोटबंदी के फैसले के तत्काल बाद हुए थे, और पार्टी ने इन चुनावों के नतीजों को नोटबंदी पर आया 'जनादेश' बताया।
केंद्र सरकार के सामने एक बार फिर से वही स्थिति सामने आ चुकी है। हिमाचल और गुजरात के चुनाव में मोदी सरकार एक और बड़े आर्थिक सुधार के फैसले के बाद जनता के बीच में जा रही है।
दोनों राज्यों का चुनाव गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू किए जाने के बाद हो रहा है।
कांग्रेस ने इन दोनों चुनावों में नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था और छोटे एवं मझोले कारोबारियों को हुए नुकसान को चुनावी मुद्दा बना रखा है वहीं बीजेपी विकास बनाम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष को घेर रही है।
चुनावी मुद्दा न बन पाए GST
मोदी सरकार भले ही विपक्ष की आलोचना को खारिज करने की कोशिश कर रही हो, लेकिन केंद्र सरकार के हालिया फैसले को देखकर यह कहा जा सकता है कि वह जीएसटी को चुनावी मुद्दा नहीं बनने देने से रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही है।
केंद्र सरकार छोटे कारोबारियों के जीएसटी रिटर्न में बढ़ोतरी के साथ कंपोजिशन स्कीम के तहत 75 लाख रुपये के टर्नओवर की सीमा को बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर चुकी है। वहीं रिवर्स चार्ज की व्यवस्था को अगले साल 31 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।
सरकार का यह फैसला छोटे और मझोले कारोबारियों को राहत देने के लिए था, जिनके बीच कांग्रेस लगातार पैठ बना रही थी। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी का पूरा कैंपेन इन्हीं लोगों के इर्द-गिर्द तैयार किया गया है।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली पहले ही कह चुके हैं कि जो लोग जीएसटी का विरोध कर रहे हैं, उनकी हालत वैसी ही हो जाएगी, जैसे नोटबंदी के आलोचकों की यूपी चुनाव के बात हुई थी।
हिमाचल में वापसी की उम्मीद
राज्य में पिछले चुनावों का ट्रेंड देखा जाए तो राज्य में हर चुनाव में सरकार बदल जाती है।
मसलन 1998 में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी, तो 2003 में वीरभद्र सिंह की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद 2007 के चुनाव में बीजेपी ने वापसी की तो 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी।
बीजेपी इस ट्रेंड को देखते हुए राज्य में अपनी वापसी की उम्मीदें पाल रखी हैं।
बीजेपी ने इस चुनाव में भ्रष्टाचार बनाम विकास को मुद्दा बना रखा है, वहीं कांग्रेस सरकार को उसके दो बड़े सुधारों नोटबंदी और जीएसटी को आधार बनाकर ही घेरने में लगी है।
विपक्ष के प्रचार अभियान को उन आशंकाओं के सच होने से ताकत मिली है, जिसके होने का पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंदेशा जताया था।
नोटबंदी और जीएसटी को जिम्मेदार बताते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भारत की वृद्धि दर को 2017 के लिए घटाकर 6.7 फीसदी कर चुका है।
आईएमएफ के बाद विश्व बैंक ने भी 2017 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ अनुमान को घटाकर 7.0 पर्सेंट कर दिया है।
आईएमएफ और विश्व बैंक की तरफ से भारत के ग्रोथ रेट अनुमान में की गई कटौती ने मशहूर अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंदेशे को सच साबित किया था, जब उन्होंने नोटबंदी को 'संगठित लूट' बताते हुए देश की जीडीपी में 2 फीसदी कमी आने की बात कही थी।
हिमाचल चुनाव : क्या नोटबंदी का भूत बीजेपी को सताएगा
उनकी बात सच भी साबित हुई। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट कम होकर 5.7 फीसदी हो गई, जो कि पिछले तीन सालों में सबसे कमजोर विकास दर है।
ऐसे में हिमाचल और गुजरात का चुनाव के नतीजे इस लिहाज से बीजेपी के लिए अहम है, क्योंकि इन दोनों चुनावों में अगर कांग्रेस मजबूत होती है, तो एक तरह से अगले आम चुनाव के लिए जीएसटी और नोटबंदी मुद्दा बन जाएगा। दूसरा लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस को इससे ताकत मिलेगी।
अधिकांश विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि मोदी की दिनों दिन मजबूत होती शख्सियत की एक अहम वजह विपक्ष का बिखराव और किसी कद्दावर विपक्षी नेता की गैरमौजूदगी रही है।
इस लिहाज से इन दोनों चुनाव में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के सामने ला खड़ा करेगा, जिससे निपटना अगले आम चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी।
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