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जब रूस ने चीन की खातिर भारत को दे दिया था धोखा

रूस उस वक्त सोवियत संघ हुआ करता था और भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू सोवियत संघ की कम्युनिस्ट विचारधारा के काफी प्रभावित थे. भारत के विकास के लिए बना पंचवर्षीय योजना का मॉडल भी सोवियत संघ से ही लिया गया.

Updated on: 16 Jun 2023, 08:58 PM

नई दिल्ली:

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही एक ओर जहां अमेरिका और उसके साथी देश, रूस को दुनिया के मंच से अलग-थलग करने की कोशिश में लगे हैं तो वहीं रूस अपने मित्र देशों के जरिए अमेरिकी कोशिशों को लगातार नाकाम कर रहा है. ताजा खबरों के मुताबिक भारत और चीन जैसे रूस के दो मित्र देशों ने मई के महीने मे उसका 80 फीसदी कच्चा तेल खरीदा. हालांकि, चीन तो खैर अमेरिका का प्रतिद्वंदी है, लेकिन अमेरिका, भारत को अपने खेमे में खींचने की पूरी कोशिश कर रहा है. इसी बीच जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा है वो भारत और रूस के बीच दशकों पुरानी दोस्ती की..कहा जा रहा है कि रूस ने कई बार मुश्किल वक्त में भारत की मदद की है लिहाजा भारत भी रूस को परेशानी के वक्त अकेला नहीं छोड़ सकता.लेकिन क्या ये बात पूरी तरह सच है? क्योंकि एक मौका ऐसा आया था जब रूस ने चीन के साथ अपनी दोस्ती निभाने की खातिर भारत को गच्चा दे दिया था. 

ये 1962 का साल था रूस ने भारत को उस वक्त अकेला छोड़ दिया था जह उसे सबसे ज्यादा रूस की मदद की जरूरत थी.आजादी के बाद से जंग के मैदान पर भारत की फौजों ने बस एक ही बार मात खाई है और वो ता साल 1962 का भारत चीन युद्ध. इस जंग में ना सिर्फ भारत बड़ी बेइज्जती का सामना करना पड़ा बल्कि हजारों किलोमीटर की भारतीय जमीन पर  चीन का कब्जा हो गया.

सोवियत संघ ने अमेरिका के पड़ोसी क्यूबा में अपनी परमाणु मिसाइलें तैनात की थी

कोल्ड वॉर के उन दिनों में सोवियत संघ के लीडर ख्रुश्चेव, भारत के तौर अपना एक बड़ा  सहयोगी दिखाई देता था. उस वक्त के दूसरे सबसे बड़े कम्युनिस्ट देश चीन के लीडर माओत्से तुंमग के साथ ख्रुश्चेव के ताल्लुक ठीक नहीं चल रहे थे. लिहाजा सोवियत संघ भारत के करीब आने लगा और उसने चीन को दी जाने वाली मिलिट्री सहायता बंद कर दी थी और 1961 में  भारत के साथ एडवांस्ड  मिग-21 विमानों की एक बड़ी डील की. आज भले ही मिग 21 को उड़ता ताबूत कहा जाता हो लेकिन उस वक्त वो दुनिया का पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट था और उसकी ताकत से अमेरिका तक घबराता था. साल 1962 तक अमेरिका ने नाटो के जरिए सोवियत संघ के पड़ोसी यूरोपीय देशों में अपनी परमाणु मिसाइलें तैनात कर रखीं थीं. इसके जवाब में सोवियत संघ ने अमेरिका के पड़ोसी क्यूबा में अपनी परमाणु मिसाइलें तैनात करना शुरू कर दिया. ये अपने आप में बहुत बड़ी घटना थी और  दुनिया की दोनों सुपर पावर यानी अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध शुरू होने का खतरा पैदा हो गया.

कमोबेश उसी वक्त हिमालय की चोटियों पर भारत और चीन के बीच जंग के आसार बनते जा रहे थे. भारत चाहता था सोवियत संघ उसे डील के मुताबिक मिग-21 विमानों की सप्लाई कर दे.भारत गुहार लगाता रहा लेकिन सोवियत संघ ने भारत वो विमान नहीं दिए जो 1962 की जंग का नतीजा बदल सकते थे.

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आखिर क्यों सोवियत संघ ने भारत को बड़ा धोखा दिया 

तब की मीडिया रिपोर्ट्स से मुताबिक क्यूबा मिसाइल संकट में घिरे सोवियत संघ को चीन के सपोर्ट की जरूरत थी.  और उस वक्त माओ ने खुर्श्चेव से भारत को मिग 21 की सप्लाई को रोकने के लिए कहा जिसके लिए सोवियत संघ ने मान गया. इसके एवज में माओ ने क्यूबाी मिसाइल संकट के मसले पर सोवियत संघ के समर्थन में बयान जारी किए.

भारत और चीन की जंग सिर्फ जमीन पर लड़ी गई. ना तो भारत ने अपनी एयरफोर्स का इस्तेमाल किया और ना ही नेवी का. कहा जाता है कि अगर भारत ने अपनी एयरफोर्स को भी चीन के खिलाफ हमले में लगाया होता तो शायद उस जंग का नतीजा बदल सकता था, लेकिन उस वक्त चीन पास भी मिग 21 विमान थे और भारत को डर था कि अगर चीन ने भी अपनी एयरफोर्स का इस्तेमाल किया तो हालात और खराब हो सकते थे. बहरहाल क्यूबा मिसाइल संकट का हल निकला और सोवियत संघ को क्यूबा से अपनी परमाणु मिसाइल्स हटानी पड़ गईं. भारत-चीन युद्ध के साल भर बाद ,यानी  1963 वमें सोवियत संघ ने भारत को मिग-21 फाइटर जेट देना शुरू कर दिया और भारत ने इनका उपयोग पाकिस्तान के खिलाफ हुए 1965 और 1971 के युद्धों में किया और जीत हासिल की.

अगर भारत के पास  1962 में मिग-21 विमान होते तो कहानी बदल भी सकती थी लेकिन सोवियत संघ के धोखे ने भारत को  अपमान का घूंट पीने के लिए मजबूर कर दिया. हालांकि बाद के सालों में चीन, अमेरिका के करीब चला गया और सोवियत संघ ने खुलकर भारत का साथ देना शुरू कर लिया. लेकिन कोल्ड वॉर खत्म होने और सोवियत संघ के विघटन के बाद हालात एक बार फिर बदले. सोवियत संघ की लेगेसी अब रूस के पास है, चीन, अमेरिका का दुश्मन है और रूस का काफी करीबी दोस्त. साल 1962 में सोवियत संघ के उस धोके की कहानी आज भी मौजूं है क्योंकि भारत अब भी हथियारों के मामले में काफी हद तक रूस पर ही निर्भर है. भारत के 90 फीसदी आर्मर्ड व्हीकल्स, 69 फीसदी लड़ाकू विमान और 44 फीसदी नेवी की पंडुब्बियां और जहाज रूस से ही खरीदे गए हैं.   

भारत चीन के बीच तनाव 

भारत और चीन के बीच पिछले तीन साल से लद्दाख बॉर्डर पर जबरदस्त तनाव है. गलवान घाटी में तो दोनों देशों की फौजों के बीच हुई झड़प में भारत के 20 सैनिक भी शहीद हो गए थे. लेकिन भारत की सीमा पर चीन की इस दादागिरी के खिलाफ रूस ने कभी कुछ नहीं कहा.चीन अपनी जरूरत का ज्यादातर रक्षा साजोसामान खुद बना सकता है जबकि भारत दूसरे देशों पर निर्भर जिनमें रूस की मुख्य भूमिका है. अगर आगे चलकर कर भारत और चीन के बीच जंग जैसे हालात बनते हैं तो इस बात का डर हमेशा बना रहेगा कि कहीं रूस भारत के साथ वैसा ही धोखा ना कर दे जैसा उसने 1962 की जंग में किया था. लिहाजा भारत ने भी अब इजरायल फ्रांस और अमेरिका जैसे नए डिफेंस पार्टनर तलाशना शुरू कर दिया है.