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कश्मीर पर पाकिस्तान ने स्वीकारी सच्चाई, UN में मसला बनाने में असफल रहा पाक

भुट्टो ने स्वीकार किया कि उनके देश को भारतीय कूटनीतिक प्रयासों के कारण कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के एजेंडे के केंद्र में लाना मुश्किल हो गया है.

Updated on: 11 Mar 2023, 02:48 PM

highlights

  • भारत की कूटनीति से कश्मीर को मसला बनाने में नाकाम रहा पाकिस्तान
  • यूएन समेत शेष विश्व ने भी कश्मीर को हस्तक्षेप लायक मसला नहीं माना
  • बिलावल भुट्टों जरदारी को 8 मार्च को फिर भारत ने लिया था आड़े हाथों

संयुक्त राष्ट्र:

ऐसा लग रहा है कि कश्मीर (Kashmir) और वहां प्रायोजित आतंकवाद को अपनी विदेशनीति और कूटनीति मानने वाले पाकिस्तान (Pakistan) के कसे बल बदलते समय के साथ ढीले पड़ने लगे हैं. खुद पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी (Bilawal Bhutto Zardari) ने सार्वजनिक तौर पर इस सच को स्वीकार कर लिया है. महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के आयोग से इतर मीडियाकर्मियों से बात करते हुए भुट्टो ने स्वीकार किया कि उनके देश को भारतीय कूटनीतिक प्रयासों के कारण कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के एजेंडे के केंद्र में लाना मुश्किल हो गया है. गौरतलब है कि इसी मंच पर बैठक के दौरान कश्मीर का मसला उठाने पर संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने बिलावल भुट्टों का नाम लिए बगैर उन्हें जमकर आड़े हाथों लिया था.

भुट्टों ने फिर भी तोड़-मरोड़ कर रखी अपनी बात
अब बिलावट भुट्टों ने सच को स्वीकारते हुए लेकिन अपने अंदाज में कहा, 'जब भी कश्मीर का मुद्दा उठाया जाता है. हमारा पड़ोसी देश कड़ी आपत्ति जताता है, मुखर रूप से आपत्ति जताता है और पोस्ट फैक्टो नैरेटिव को आगे बढ़ाता है. वे यह दावा करने की कोशिश करते हैं कि कश्मीर संयुक्त राष्ट्र के लिए कोई विवाद नहीं है. यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त एक विवादित क्षेत्र नहीं है और वे कश्मीर से जुड़ी वास्तविकताओं और तथ्यों का विरोध करते हैं. वह पुरजोर तरीके से स्थापित करते हैं कि कश्मीर पर उनका जायज हक है.' उन्होंने आगे कहा, 'उनके सामने जबकि हमें सच्चाई को सामने लाने में मुश्किल होती है, फिर भी हम अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.'

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शिमला समझौते के मूल को कर गए नजरअंदाज
हालांकि इस फेर में बिलावट भट्टो एक बार फिर तथ्यों को नजरअंदाज कर गए. गौरतलब है कि 1972 में शिमला समझौते के तहत यह निर्णय लिया गया था कि कश्मीर और दोनों पड़ोसी देशों के बीच सभी विवाद द्विपक्षीय मामले हैं. इस समझौते पर पाकिस्तान के वर्तमान विदेश मंत्री के दादा और तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो और पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने हस्ताक्षर किए थे. इसके बावजूद पाकिस्तान ने कई मौकों पर संयुक्त राष्ट्र में और यहां तक ​​कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठकों समेत उन अंतरराष्ट्रीय बैठकों के दौरान कश्मीर मुद्दे को उठाया है जहां यह मुद्दा प्रासंगिक नहीं था.

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8 मार्च को भी लिए गए थे आड़े हाथों
इस कड़ी में 8 मार्च का उदाहरण सबसे ताजा है. भारत ने महिलाओं, शांति और सुरक्षा पर सुरक्षा परिषद की बहस के दौरान कश्मीर को उठाने के लिए विदेश मंत्री की जमकर आलोचना की थी. संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने कहा कि पाकिस्तान विदेश मंत्री के भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को लेकर लगाए आरोप प्रतिक्रिया के लायक भी नहीं हैं. रुचिरा कंबोज ने कहा, 'मेरा प्रतिनिधिमंडल इस तरह के दुर्भावनापूर्ण और झूठे प्रचार का जवाब देना भी उचित नहीं समझता है. हमारा ध्यान सकारात्मक और दूरदर्शी रहा है और आगे भी रहेगा. आज की चर्चा महिला, शांति और सुरक्षा एजेंडे के पूर्ण कार्यान्वयन में तेजी लाने के हमारे सामूहिक प्रयासों को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है.'