दुनिया के इस दो दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे बच्चे के इलाज में जयपुर के एक अस्पताल ने रचा इतिहास
जयपुर अस्पताल के दुर्लभ बीमारी केंद्र की टीम ने डॉ. अशोक गुप्ता, डॉ. प्रियांशु माथुर और डॉ. रमेश चौधरी ने पोंपे डिजीज और स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 के एक दुर्लभतम बच्चे के इलाज में न आयाम हासिल किया है.
जयपुर:
जयपुर अस्पताल के दुर्लभ बीमारी केंद्र की टीम ने डॉ. अशोक गुप्ता, डॉ. प्रियांशु माथुर और डॉ. रमेश चौधरी ने पोंपे डिजीज और स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 के एक दुर्लभतम बच्चे के इलाज में न आयाम हासिल किया है. इस प्रकार एक साथ पोंपे डिजीज और स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 इन दो-दो रेयर डिजीज से एक साथ ग्रसित होने वाला यह संभवतः दुनिया का पहला मामला है. इस 44 दिन के बच्चे का उपचार एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी अल्गलूकोसिडेस एल्फा (मायोजाइम) से शुरू किया गया. इस उम्र पर यह दवा शुरु करने का भी यह देश में संभवतया पहला ही बच्चा है. इस बच्चे को इस इलाज के लिए उत्तर प्रदेश के आगरा से जयपुर के एक अस्पताल में लाया गया. बच्चे के माता-पिता ने 20 दिन की उम्र में तेज सांस चलने की वजह से दिखाया और आगरा में भर्ती कराया. वहां पर इलाज के बाद भी बच्चे को आराम नहीं आने और सांस की समस्या के बढ़ने की वजह से बच्चे को जयपुर के जेके लोन अस्पताल भेज दिया गया.
डॉक्टर्स ने पेशेंट का डीबीएस सैंपल दिल्ली भेज के जांच कराई
बच्चे को सांस की समस्या के साथ-साथ शरीर में ढीलापन एवं हरकत कम होने की भी परेशानी थी. डॉक्टर्स ने जब बच्चे की जांच की तो पाया कि बच्चे को सांस की समस्या के साथ-साथ दिल की परेशानी और मांसपेशियों में कमजोरी भी थी. इस पर डॉक्टर्स ने पेशेंट का डीबीएस सैंपल दिल्ली भेज के जांच कराई. जांच में पांपे नामक रेयर बीमारी की पुष्टि हुई. साथ ही डॉक्टर के संदेह होने पर स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 की भी जांच एमएलपीए टेक्नीक से कराई और रोग की पुष्टि की. पोमपे डिजीज की दवा की कीमत प्रति वर्ष लगभग 25-30 लाख है और इसे आजीवन देने की आवश्यकता है. यह दवा इस रोगी को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. साथ-साथ स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 की दवा रिसडिप्लाम के अनुकंपा उपयोग के लिए भी अप्लाई किया है. जल्द ही प्राप्त होने की उम्मीद है.
पोम्पे रोगियों के लिए एक द्वैमासिक इंट्रावेनस एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी है
अल्गुलकोसिडेज़ अल्फ़ा (मायोज़ाइम) पोम्पे रोगियों के लिए एक द्वैमासिक इंट्रावेनस एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी है और इसे सभी प्रकार के पोम्पे रोगियों को दिया जा सकता है. इसे यूएस एफडीए द्वारा 2014 में इन्फेंटाइल-ऑनसेट पोम्पे डिजीज के इलाज के लिए मंजूरी दे दी गई थी और यह दवा को सनोफी जेंजाइम नामक कंपनी द्वारा डेवलप किया गया था. रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) लगभग 4 करोड़ रुपये सालाना की दवा है. यह 2 महीने की उम्र से बड़े बच्चों के लिए मुंह से लेने वाली एक दैनिक दवा है और सभी प्रकार के स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी के बच्चों को दी जा सकती है. यह एक स्मॉल मोलेक्यूल ओरल ड्रग है जिसे बच्चे को घर पर ही दिया जा सकता है. 7 अगस्त, 2020 को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा रिस्डिप्लाम को मंजूरी दी गई है, जो चार वर्षों के भीतर उपलब्ध स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी के लिए तीसरी दवा बनी है. इस दवा को रोच कम्पनी द्वारा बनाया गया है.
यह रोग हर 40 हजार में से किसी एक बच्चे को होता है
पोम्पे रोग के मरीजों में अल्फा-ग्लूकोसिडेस नामक एक एंजाइम की कमी होती है. यह रोग लगभग हर 40 हजार में से किसी एक बच्चे को होता है और जेनेटिक डिफेक्ट की वजह से होने वाला एक मेटाबॉलिक रोग है. प्रभावित बच्चे के पैरेंटस इस बीमारी के डिफेक्टिव जीन को कैरी करते हैं और खुद इस बीमारियों से पीड़ित नहीं होते हैं. क्योंकि हर इंसान में इस जीन की दो कॉपीज होती है. अगर किसी भी इंसान के शरीर में इस जीन की एक कॉपी भी नॉर्मल है तो उनको यह बीमारी नहीं होती है. अगर बच्चे में इस जीन की दोनों डिफेक्टिव कॉपीज आ जाती है तो बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं. यह बीमारी लड़के या लड़कियों दोनों को प्रभावित कर सकता है. यह एंजाइम ग्लाइकोजन नामक संग्रहित शर्करा को जरूरत पड़ने पर ग्लूकोज में तोड़ता है जिसका उपयोग शरीर की कोशिकाओं द्वारा ऊर्जा के लिए किया जा सकता है.
कुछ बच्चों में यह रोग जन्म के तुरंत बाद लक्षण पैदा करता है
यदि यह एंजाइम शरीर में मौजूद नहीं है तो ग्लाइकोजन कुछ ऊतकों में, विशेष रूप से मांसपेशियों, हृदय और लिवर में एकत्रित होने लगता है. ग्लाइकोजन के इकत्रित होने की वजह से बच्चे को दिल का बढ़ने के साथ दिल का काम प्रभावित होने लगता है. इसके साथ-साथ बच्चे को सांस लेने में कठिनाई और मांसपेशियों की कमजोरी भी हो जाती है. सामान्यतः पोंपे रोग तीन तरह का हो सकता है, जो कि अलग-अलग उम्र पर अपने लक्षण प्रस्तुत करता है. कुछ बच्चों में यह रोग जन्म के तुरंत बाद लक्षण पैदा करता है और कुछ में यह बड़े होने के बाद लक्षण करता है. इन अलग-अलग प्रकारों को क्लासिक इन्फैंटाइल-ऑनसेट, नॉन-क्लासिक इन्फेंटाइल-ऑनसेट और लेट-ऑनसेट के रूप में जाना जाता है. रोग का क्लासिक इन्फैंटाइल-ऑनसेट रूप जीन में डिफेक्ट की वजह से एसिड अल्फा-ग्लूकोसिडेज एंजाइम की एक्टिविटी 2 प्रतिशत से कम रह जाने की वजह से होती है.
उपचार के आभाव में ये रोगी ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सकते हैं
अधिकांश बच्चों की इस बीमारी में हृदय गति रुकने के कारण समय से पहले मौत हो जाती है. इस बीमारी का पता लगाने के लिए संदिग्ध बच्चो की जांच एंजाइम एनालिसिस से और जेनेटिक टेस्टिंग से कि जा सकती है. मयोजाइम, अलगलूकोसिडेस एल्फा एंजाइम को रिकांबिनेंट तकनीक से बनाया जाता है. यह रिकांबिनेंट एंजाइम ग्लाइकोजन को तोड़ने में मदद करता है और कोशिकाओं में असामान्य रूप से ग्लाइकोजेन के एकत्रित होने को रोक देता है. उपचार के आभाव में ये रोगी ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सकते हैं. यह उम्मीद की जाती है कि इस एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी के साथ ये रोगी सामान्य जीवन जी सकते हैं. स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (एसएमए) एक आनुवांशिक बीमारी है जो नर्वस सिस्टम और स्वैच्छिक मांसपेशी के काम को प्रभावित करती है. यह बीमारी लगभग हर 11 हजार में से एक बच्चे को हो सकती है और किसी भी जाति या लिंग को प्रभावित कर सकती है.
कभी-कभी मांसपेशियों की घातक कमजोरी हो जाती
एसएमए शिशुओं में मृत्यु का एक प्रमुख आनुवंशिक कारण है. यह एसएमए 1 जीन जो कि एक मोटर न्यूरॉन जीन है में उत्पन्न विकार कि वजह से होता है. एक स्वस्थ व्यक्ति में, यह जीन एक प्रोटीन का उत्पादन करता है जो तंत्रिकाओं के माध्यम से हमारी मांसपेशियों को नियंत्रित करता है. इसके बिना, वे तंत्रिका कोशिकाएं ठीक से काम नहीं कर सकती हैं और अंततः मर जाती हैं. जिससे दुर्बलता और कभी-कभी मांसपेशियों की घातक कमजोरी हो जाती है. एसएमए के चार प्रकार हैं - 1, 2, 3, और 4 जो कि अलग अलग उम्र पर लक्षण शुरु करते हैं. लक्षणों की गंभीरता एसएमए के टाइप पर निर्भर करती है. कुछ लोगों में प्रारंभिक लक्षण जन्म से पहले ही शुरु हो जाते है जबकि कुछ में यह लक्षण वयस्क होने तक स्पष्ट नहीं होते हैं.
जयपुर के एक अस्पताल के दुर्लभ रोग केंद्र में उपलब्ध है इसका इलाज
हाथ, पैर और श्वसन तंत्र की मांसपेशियां आम तौर पर पहले प्रभावित होती है. इसकी वजह से रोगी में निगलने की समस्या, स्कोलियोसिस इत्यादि उत्पन्न हो सकती है. एसएमए वाले व्यक्तियों को सांस लेने और निगलने जैसे कार्यों में कठिनाई होने लगती है. ज्यादातर मरीज रेस्पिरेटरी फेलियर की वजह से समय से पहले मर जाते हैं. इसका डायग्नोसिस लक्षणों के साथ-साथ जेनेटिक टेस्टिंग करके कन्फर्म किया जा सकता है. इलाज के अभाव में यह एसएमए टाईप 1 के बच्चे ज्यादा नहीं जी पाते और बचपन में ही इनकी मृत्यु हो जाती है. जितनी जल्दी इस बीमारी का पता लगा के इलाज शुरू किया जाता है बच्चे में उतने अच्छे रिजल्ट्स देखे जाते है. यह दावा बच्चों में एसएमए के सुडो जीन को एक्टिवेट करके एसएमएन प्रोटीन को पुनः बनाने की क्षमता रखता है. अब इस बीमारी के निदान की सुविधा जयपुर के एक अस्पताल के दुर्लभ रोग केंद्र में उपलब्ध है.
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