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UCC के विरोध में आदिवासी संगठन का धरना, जानिए क्यों कर रहे विरोध

आदिवासी समन्वय समिति के बैनर तले समान नागरिक संहिता (UCC) के विरोध में राजभवन के समक्ष आदिवासी संगठन द्वारा एक दिवसीय विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है.

Updated on: 05 Jul 2023, 07:31 PM

highlights

  • UCC लागू होने से सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होगा
  • आदिवासियों को डर है कि इससे उनकी परंपरा खत्म हो जाएगी
  • अलग-अलग आदिवासी समुदायों में अलग-अलग परंपराएं हैं

Ranchi:

आदिवासी समन्वय समिति के बैनर तले समान नागरिक संहिता (UCC) के विरोध में राजभवन के समक्ष आदिवासी संगठन द्वारा एक दिवसीय विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है. वहीं, आदिवासी संगठन के लोगों का कहना है कि समान नागरिक संहिता का विरोध हम पुरजोर कर रहे हैं. 30 जुलाई को पूरे देश के आदिवासी झारखंड में एकत्रित होंगे और इसके विरोध में रणनीति बनाएंगे. इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन किया जाएगा. साथ ही केंद्र सरकार अगर इस कानून को लागू करने पर अड़ी रही, तो झारखंड भी मणिपुर बन सकता है. जब भी देश में चुनाव आने वाले होते हैं.

UCC के विरोध में आदिवासी संगठन का धरना

तब भाजपा इस तरीके से हिंदू, मुस्लिम करने के लिए कई तरह की चीजें सामने लाती है, लेकिन वह भूल जाती है कि ऐसे कानून लागू होने के वजह से आदिवासियों के कई अधिकार छीन जाएंगे. आदिवासियों की जमीन, भारतीय संविधान में वर्णित अनुच्छेद 244 पेशा कानून, सीएनटी एसपीटी एक्ट, पांचवी अनुसूची, छठी अनुसूची के आधार पर आदिवासी समुदाय को विशेष अधिकार है, वह समाप्त किया जाएगा. जिसके फलस्वरूप आदिवासियों के ऊपर अत्याचार बढ़ जाएगा. आदिवासी भाषा, संस्कृति प्रकार प्रथागत रीति रिवाज, परंपरा को नष्ट करने का दौर शुरू हो जाएगा. ऐसे समय में समान नागरिक संहिता कानून (UCC) लागू करना उचित नहीं है.

UCC के विरोध में क्यों हैं आदिवासी?

UCC लागू होने से सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होगा.
आदिवासियों को डर है कि इससे उनकी परंपराओं को खत्म कर दिया जाएगा.
अलग-अलग आदिवासी समुदायों में अलग-अलग परंपराएं हैं.
जैसे आदिवासी समुदाय में पुरुष कई महिलाओं से शादी कर सकते हैं.
कहीं-कहीं एक महिला के कई पुरुषों से शादी का भी रिवाज है.
कुछ आदिवासी समुदायों में मातृसत्तात्मक सिस्टम है.
मातृसत्तात्मक का अर्थ है, बेटी को संपत्ति का वारिस बनाना.

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आदिवासी समाज की कई परंपराएं हैं, जो UCC आने से खत्म हो सकती है.
यही वजह है कि आदिवासी समुदाय UCC का विरोध कर रहे हैं. 
UCC को लेकर विपक्ष बीजेपी पर शुरू से ही हमलावर है. इसकी वजह सिर्फ UCC का विरोध नहीं है. ये विरोध विपक्ष की चुनावी रणनीति भी है. 
लोकसभा की 543 सीटों में से 62 सीटों पर आदिवासी समुदाय का प्रभाव है.
इसके अलावा 47 सीटें ST यानी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.
ST के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 2019 में बीजेपी ने 31 सीटें जीती थी.

अब अगर बात करें झारखंड के लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर आरक्षण की तो झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से ST के लिए 5 सीटें आरक्षित हैं. वहीं, झारखंड में 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें ST के लिए रिजर्व है. यानी कुल मिलाकर बीजेपी किसी कीमत पर UCC की वजह से वोट बैंक पर रिस्क नहीं लेगी, तो वहीं विपक्ष इस मुद्दे को किसी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहता.