logo-image

बोकारो में 'खाट' पर सिस्टम: इस गांव में ना सड़क की सुविधा, ना पानी का इंतजाम

देश को आजाद हुए 7 दशक से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनकी तस्वीरें उस भारत को याद दिलाती हैं, जिसे हम सालों पहले पीछे छोड़ आए हैं.

Updated on: 22 Mar 2023, 10:16 AM

highlights

  • 'खाट' पर सिस्टम... शासन-प्रशासन से सवाल
  • सालों से गांव वालों को है विकास का इंतजार
  • ना सड़क की सुविधा.. ना पानी का इंतजाम
  • कब बदलेगी हलवैय गांव की तस्वीर?

Bokaro:

देश को आजाद हुए 7 दशक से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनकी तस्वीरें उस भारत को याद दिलाती हैं, जिसे हम सालों पहले पीछे छोड़ आए हैं. झारखंड के बोकारो में कई गांव ऐसे हैं जो मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. इन्हीं में से एक गांव है हलवैय गांव. इस गांव के चारों ओर जंगल है और जंगल के बीच में पगडंडी. यहां हमारी टीम को कुछ लोग चलते हुए नजर आए. इन लोगों के हाथ में एक खटिया थी. इस खटिया पर एक मरीज लेटा हुआ था. ये लोग मरीज को इलाज के लिए लादकर ले जाने को मजबूर दिखे. इस गांव में आज तक ना तो स्वास्थ्य सुविधा है और ना ही कोई सड़क.

नक्सल प्रभावित इलाका

बोकारो के ये गांव नक्सल प्रभावित माना जाता है. आदिवासी बहुल इस गांव में 250 के करीब आबादी है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ कच्चे मकान, दो खराब चापाकल, कुछ सूखे कुएं और जर्जर रास्ते हैं. गांव दनिया रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन गांव तक जाने के लिए एक भी पक्की सड़क नहीं है. लिहाजा कोई भी गाड़ी हो या एंबुलेंस गांव तक पहुंच पाना नामुमकि है. ऐसे में अगर गांव में अचानक कोई बीमार पड़ता है तो उसे इसी तरह खटिये पर लादकर मुख्य सड़क तक ले जाया जाता है. लोग दो किलोमीटर तक चलकर जाते हैं तब जाकर गाड़ी मिल पाती है.

यह भी पढ़ें: भगवान राम के त्योहार पर झारखंड में तकरार, BJP ने कहा-आस्था पर चोट बर्दाश्त नहीं

कभी नहीं देखा नेता का चेहरा

इस गांव की बदहाली का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ग्रामीणों ने आज तक किसी भी सांसद और विधायक का चेहरा ही नहीं देखा है. मानो शासन और प्रशासन के लिए ये गांव है ही नहीं. सड़क ना होने से भी बड़ी पेरशानी यहां पानी की है. गांव में सिर्फ दो चापाकल है, जिसमें आयरन की मात्रा ज्यादा है. हालांकि मनरेगा विभाग की ओर से एक कुएं का निर्माण जरूर किया गया था, लेकिन वो कुआं भी गर्मी में सूख जाता है. ऐसे में ग्रामीण नाली के पानी के सहारे ही गुजारा करते हैं. गांव के लोग बर्तन में नाली से पानी भरकर लाते हैं, जिससे प्यास बुझ पाती है. ऐसा भी नहीं है कि ग्रामीणों की परेशानी से शासन-प्रशासन अनजान है. लोगों ने 6 महीने पहले यहां के पूर्व विधायक डॉ लम्बोदर महतो को पत्र लिखकर गांव में पानी की समस्या से निजात दिलाने की और पक्की सड़क निर्माण की मांग की थी, लेकिन आज तक इस मांग पर सुनवाई नहीं हुई है.

इनकी हालत खराब

ग्रामीणों का कहना है कि पानी की समस्या का हल सिर्फ डीप बोरिंग के जरिए ही हो सकता है. अगर भितिया नाला में चेक डैम का निर्माण हो जाये तो पानी पीने के अलावा कृषि विकास में भी बल मिलेगा, लेकिन गांव वालों की मांगों और परेशानियों पर जनप्रतिनिधि और अधिकारियों की नजर ही नहीं पड़ती. 250 की आबादी वाले इस गांव को उसकी हालत पर छोड़ दिया गया है और ये आलम तब है जब प्रदेश की सरकार खुद को हर मंच से आदिवासी हितैषी बताने में जरा भी नहीं कतराती. 

रिपोर्ट : संजीव कुमार