चतरा में नदी पार कर स्कूल जाते हैं छात्र, विकास के दावों की खुली पोल
वैसे तो केंद्र और राज्य सरकार विकास को लेकर दावे करते नहीं थकती, लेकिन उन दावों की जमीनी हकीकत ठीक उसके उलट होती है.
highlights
- ना पुल, ना सड़क...बदहाल जिंदगानी
- नदी पार कर स्कूल जाने है छात्र
- ग्रामीणों को एक अदद सड़क की आस
- विकास के दावों की खुली पोल
Chatra:
वैसे तो केंद्र और राज्य सरकार विकास को लेकर दावे करते नहीं थकती, लेकिन उन दावों की जमीनी हकीकत ठीक उसके उलट होती है. इसी का नतीजा है कि ग्रामीण स्तर पर ना तो ठीक से सड़क और स्वास्थ्य की व्यवस्था हो पाई है और ना ही शिक्षा की. ऐसी ही एक तस्वीर चतरा जिले से सामने आई है. जहां गांव में हाई स्कूल ना होने के कारण लोहरा गांव के ज्यादातर बच्चे जान-जोखिम में डालकर स्कूल जाने को मजबूर हैं. यहां शिक्षा के लिए इन नौनिहालों की जद्दोजहद करनी पड़ती है. नदी पार करने के लिए कोई चारा नहीं है, लेकिन शिक्षा से दूर रहना भी गवारा नहीं है. सरकार और अधिकारी तो अपनी जिम्मेदारी भूल ही चुके हैं, लेकिन इन छात्रों को अपनी जिम्मेदारी याद है. इसलिए तो चाहे नक्सलियों का खौफ हो या नदी की लहरों का डर, इन बच्चों के हौसलों के आगे सब फीका पड़ जाता है.
सिर पर बैग... घुटने तक पानी
सिर पर बैग लिए नदी पार कर रहे ये बच्चे हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड के लोहरा गांव के हैं. जो अपने गांव से 4 किलोमीटर दूर नदी पार कर चतरा जिले के टंडवा प्रखंड के उत्क्रमित उच्च विद्यालय हेसातु में रोजाना पढ़ने के लिए जाते हैं. केरेडारी प्रखंड का लोहरा गांव और टंडवा प्रखंड का हेसातु गांव दोनों ही घने जंगलों से घिरे नक्सल प्रभावित इलाकों में आता है. लिहाजा दोनों गांवों में विकास की रफ्तार काफी धीमी है. ना रास्ते है ना पुल. लिहादा बच्चों को घने जंगलों को तो पार करना ही पड़ता है, लेकिन बारिश के दिनों में उनकी मुश्किलें दोगुनी हो जाती है. एक तो घना जंगल और ऊपर से बरसात के चलते नदियों में पानी बढ़ जाता है और मजबूरन इन बच्चों को हर दिन इसी तरह नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता है. नदी पार करते वक्त इनके कपड़े भींग जाते हैं इसलिए अपने साथ एक जोड़ी कपड़ा बैग में लेकर जाते हैं. फिर नदी पार करते ही उसे बदलकर स्कूल चले जाते हैं.
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ना पुल, ना सड़क...बदहाल जिंदगानी
वैसे तो जंगलों के बीच से नदी पार करते हुए जाना सभी बच्चों के लिए किसी आफत की तरह है, लेकिन सबसे ज्यादा डर लड़कियों को सताता है जो घने जंगलों से बीच से हर दिन खौफ के साए में होकर स्कूल पहुंचती है. दरअसल लोहरा गांव में आठवीं तक ही स्कूल है. आगे की पढ़ाई के लिए गांव से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पार कर हाई स्कूल जाना पड़ता है. गांव में यातायात का कोई साधन भी नहीं है. ऐसे में बच्चे हर दिन मुसीबतों का सामना करते हुए स्कूल पहुंचते हैं.
ग्रामीणों को एक अदद सड़क की आस
वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि सड़क और पुल ना होने से यहां के लोग हर दिन यूं ही समस्या से दो-चार होते हैं. अगर गांव में कोई बीमार पड़ जाए या किसी महिला को प्रसव के लिए ले जाना होता है तो ये भी किसी जंग लड़ने जैसा होता है. यहां के ग्रामीण सरकार और जिला प्रशासन से लोहरा गांव और हेसातु गांव को जोड़ने के लिए पक्की सड़क और पुल की मांग कर रहे हैं. ग्रामीणों की गुहार सरकार तक पहुंचेगी या नहीं इसका तो पता नहीं, लेकिन इन तस्वीरों ने झारखंड सरकार के विकास के दावे और शिक्षा व्यवस्था को लेकर किए गए वादे दोनों की पोल खोल कर रख दी है.
रिपोर्ट : विकास कुमार
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