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अफीम की खेती पर अंकुश लगाना असंभव, ये है नशे की खेती की जड़

झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित चतरा जिला, जो पिछले दो दशकों से बड़े पैमाने पर अफीम उगा रहा है. अफीम की खेती पर नकेल कसने के लिए जिला प्रशासन की ओर से अभियान भी चलाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी और हैरानी की बात ये है कि अब तक अफीम की खेती पर पूरी तर

Updated on: 11 Mar 2023, 12:37 PM

Chatra:

झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित चतरा जिला, जो पिछले दो दशकों से बड़े पैमाने पर अफीम उगा रहा है. अफीम की खेती पर नकेल कसने के लिए जिला प्रशासन की ओर से अभियान भी चलाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी और हैरानी की बात ये है कि अब तक अफीम की खेती पर पूरी तरह नकेल नहीं कसा जा सका है. जो हैरान करने वाली बात है, लेकिन फिर भी इन सब बातों में इतना कुछ है कि पुलिस अपने दावे करती है कि हजारों एकड़ अफीम की खेती को नष्ट किया गया है, जबकि युवाओं का कहना है कि चतरा जैसे जिला में आज भी गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा है और साथ ही युवाओं का ये भी कहना है कि जब तक रोजगार  से लोग नहीं जुड़ेंगे तब तक अफीम की खेती पर अंकुश लगाना असंभव है.

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समाजसेवी के सूरजभूषण शर्मा का कहना है कि झारखंड के कई जिलों में अफीम की खेती होती है, लेकिन झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित चतरा जिला में सबसे ज्यादा अफीम की खेती हो रही है. दरअसल, नक्सल,अपराधी अफीम माफिया और कथित पुलिस के गठजोड़ के कारण सुदूरवर्ती क्षेत्र में पिछले कई दशकों से अफीम की खेती की जा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि कम समय में सबसे अधिक मुनाफा अफीम की खेती से होता है. पुलिस की टीम के द्वारा गांव-गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाया गया, लेकिन बावजूद इसके इसका परिणाम देखने को नहीं मिला है. पुलिस प्रशासन को जितनी उम्मीद थी, पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार इसके पीछे की वजह को समझना नहीं चाहती. चतरा एक ऐसा जिला है, जहां कभी उग्रवाद और तस्करी बड़े पैमाने पर होती थी. चतरा जिला के गर्भ में पल रहा गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा आज भी दूर नहीं हो पाया है और यही वजह है कि आज भी युवाओं को ना तो शिक्षा का अवसर मिला है और नहीं रोजगार का अवसर मिल पाया है. ऐसे में सबसे अधिक मुनाफा सिर्फ और सिर्फ अफीम की खेती में ही नजर आता है और यही वजह है कि पुलिस और प्रशासन के लाख प्रयास के बावजूद सुदूरवर्ती क्षेत्र में अफीम की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है.

साथ ही एसपी राकेश रंजन के मुताबिक इस साल तक तकरीबन 1300 एकड़ में अफीम की खेती को नष्ट किया जा चुका है. बावजूद इसके चतरा जिला के सुदूरवर्ती क्षेत्र में आज भी हजारों एकड़ में अफीम की फसल लहलहा रही है. अफीम के पौधे से अफीम भी निकलना शुरू हो गया. बड़े पैमाने पर इसकी तस्करी हो रही है और इन सारी बातों की खबर पुलिस, प्रशासन, राज्य सरकार और नारकोटिक्स डिपार्टमेंट को भी है. इसके पीछे भी एक वजह बताई जा रही है कि कथित रूप से पुलिस को भी बड़े पैमाने पर कमाई का जरिया मिल जाता है. समय-समय पर पुलिस के अधिकारियों के द्वारा कार्यवाही भी की जाती है. इस मामले में कई पुलिस अधिकारियों को अफीम की तस्करी या उससे संबंधित कार्यों के बारे में पुलिस अधीक्षक को जानकारी भी दी गई है और उस पर कार्यवाही की गई. इससे स्पष्ट है कि पुलिस वालों का भी इसकी जानकारी होती है. दूसरी तरफ के युवाओं का भी कहना है कि गांव में बेरोजगारी है इसीलिए लोग अफीम की खेती करते हैं और  शिक्षा का साधन नहीं है, ताकि अफीम के दुष्परिणामों से गांव के लोगों से रूबरू हो सके.

गौरतलब है कि चतरा जिला के प्रतापपुर,लावालोंग, हंटरगंज, राजपुर इटखोरी,मयूरहंड, टंडवा सहित लगभग सभी प्रखंडों में अफीम की खेती होती है. इसके पीछे की वजह यह है कि चतरा जिला बिहार के गया झारखंड के पलामू, लातेहार, रांची, हजारीबाग और कोडरमा जिला को छूती है और चतरा जिला के बॉर्डर क्षेत्रों में सुदूरवर्ती क्षेत्र होने के साथ-साथ पहाड़ों से घिरा हुआ है. इन पहाड़ों की तलहटी में अफीम की खेती होती है.

ऐसे करते हैं लोग अफीम की खेती

अफीम की खेती करने के लिए ग्रामीणों को तैयार किया जाता है. इसके लिए अफीम की खेती करने वाले प्रशिक्षित लोग जगह, गांव और जमीन का तलाश कर उस में अफीम की खेती के उपयुक्त बताते हैं. उसके बाद एक मोटी रकम देकर अफीम की खेती शुरू की जाती है. अफीम की खेती के लिए सितंबर, अक्टूबर महीने से अफीम खेती कराने वाले कथित कारोबारी सुदूरवर्ती क्षेत्रों में घूमना शुरू कर देते हैं और वैसे क्षेत्रों का चयन करते हैं जो दुरूह होने के साथ-साथ पहाड़ों से घिरा हुआ होता है और पानी का भी स्रोत है. अफीम की खेती के लिए खेतों का चयन हो जाने के बाद एक मोटी रकम किसानों को दिया जाता है और यह भी देखा जाता है कि अफीम की खेती सबसे ज्यादा वन भूमि में हो, ताकि पुलिस को जानकारी मिलने पर गांव के लोगों पर कार्रवाई कम से कम हो सके. गांव में रोजगार नहीं होना अफीम की खेती के लिए सबसे बड़ा मौका प्रदान करता है.