हिमाचल चुनाव: प्रदेश की शान चाय के बागानों को चुनावी मुद्दों में नहीं मिली जगह
इस बार फिर से एक बार पालमपुर के चाय बागान राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टो में नदारत दिख रहे है जो आने वाले दिनों में हिमाचल की शान माने जाने वाले चाय बागानों को खत्म कर सकते है।
highlights
- राजनीतिक अनदेखी के कारण पिछले 25 साल में चाय बागानों की एरिया हुआ काफी कम
- कांगड़ा टी दुनिया भर में अपने अलग-अलग फ्लेवर के लिए मशहूर है
- 2,300 एकड़ में चाय के बागान जमीनी स्तर पर 1,150 एकड़ तक पहुंच गया है
पालमपुर:
कांगड़ा टी से दुनिया भर में मशहूर हिमाचल का पालमपुर ज़िला आज राजनीतिक उदासीनता के चलते दुनिया के नक्शे में धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है।
इस बार फिर से एक बार पालमपुर के चाय बागान राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टो में नदारत दिख रहे है जो आने वाले दिनों में हिमाचल की शान माने जाने वाले चाय बागानों को खत्म कर सकते है।
तस्वीरों में दिख रहे ये दूर-दूर तक फैले ये दुनिया भर में मशहूर कांगड़ा चाय के बागान है। ये बागान न केवल कांगड़ा की खूबसूरती बढ़ाते है बल्कि कांगड़ को लोगों के लिए रोजगार का भी बड़ा जरिया है।
इसके साथ ही यह चाय दुनिया भर के देशों में निर्यात भी की जाती है लेकिन लगातार चाय बागानों की राजनीतिक अनदेखी के चलते पिछले 25 साल में चाय बागानों का एरिया काफी कम हो चुका है।
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टी बोर्ड के आंकड़ो के मुताबिक करीब 2,300 एकड़ में चाय के बागान फैले हुए हैं। लेकिन जमीनी स्तर में ये एरिया घट कर 1,150 एकड़ तक पहुंच गया है।
चाय बागान के कर्मचारियों ने बताया कि बागान मालिको के सामने ऐसी कई समस्याएं है जिसके चलते या तो वो अपने बागानों में काम बंद कर देते है या फिर उन्हें खाली रखने पर मजबूर हो जाते हैं।
मान टी एस्टेट के मैनेजर दिवेन्दर पठानिया बताते है, 'हम लगातार समय-समय कई तरह की मांग सरकार से करते रहते है। छोटे प्लांटर्स को सबसे बड़ी परेशानी लेबर की है। इसके साथ ही बारिश से भी काफी नुकसान होता रहता है। ऐसे में जिन किसानों के पास 1 या 2 हेक्टर के बाग है उनके लिए अपना घर चलाना भी मुश्किल है'
अगर चाय की बात करे तो इस समय धर्मशाला,पालमपुर,बैजनाथ,भवारना और बीर में चाय की 5 अलग अलग फैक्ट्री है जो साल में 10 से 11 लाख किलो चाय बनाती है। चाय के कारण इन इलाके के कई लोगो को रोजगार भी मिला हुआ है लेकिन स्किल लेबर की अभी भी काफी कमी है।
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चाय बगान कि महिला कर्मचारी ने कहा, 'इन चाय बागानों के कारण हमे रोज़गार मिला हुआ है। चाय के कारण हम अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ा पा रहे हैं और इसलिए राजनीतिक पार्टियों को इस और जरूर ध्यान देना चाहिए।'
वही चाय बागान के कर्मचारियों के मुताबिक, सरकार को कांगड़ की चाय को प्रोमोट करने के लिए टी टूरिज्म और सेब को नुकसान होने पर मिलने वाली सब्सिडी चाय बागानों के मालिकों को भी देनी चाहिए। जिससे चाय बागान के मालिक भी अपने पैर पर पूरी तरह खड़े हो सके।
राजनीतिक पार्टियों के कांगड़ा टी के प्रति उदासीन रवैये से चाय बागान के कर्मचारियों में नाराज़गी है।
दिवेन्दर पठानिया ने बतया कि, 'उन्हें दुःख है कि आज तक किसी भी पार्टी ने टी बागान के बारे में नही सोचा। सभी पार्टियों को इसे अपने मेनिफेस्टो में रखना चाहिए और कांगड़ा टी को प्रमोट करने की ओर ध्यान देना चाहिए।
कांगड़ा टी न केवल देश बल्कि दुनिया भर में अपने अलग-अलग फ्लेवर के लिए भी मशहूर है। अगर राजनीतिक दल इसकी और ध्यान दे तो ये ना केवल देश बल्कि पूरे विश्व मे हिमाचल को अलग पहचान दिलवा सकती है।
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