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स्कंदमाता: माता की पूजा से मिलता है संतान सुख, होंगी सारी मनोकामनाएं पूर्ण

मां स्कंदमाता को देवी दुर्गा का पांचवा अवतार माना जाता है, उनकी पूजा नवरात्रों के पांचवें दिन की जाती है. इस दिन स्कंद माता की पूजा का विधान है.

Updated on: 30 Sep 2022, 09:40 AM

Patna:

मां स्कंदमाता को देवी दुर्गा का पांचवा अवतार माना जाता है, उनकी पूजा नवरात्रों के पांचवें दिन की जाती है. इस दिन स्कंद माता की पूजा का विधान है. इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थापित रहता है. स्कंद माता को अत्यंत दयालु माना जाता है. कहते हैं कि देवी दुर्गा का ये स्वरूप मातृत्व को परिभाषित करता है. स्कंदमाता की कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है. इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. शास्त्रानुसार इनकी चार भुजाएं हैं, दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है. बाईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में भी कमल हैं. माता का वाहन शेर है. स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है.

मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन माता को केले का भोग लगाने से शरीर स्वस्थ रहता है. शास्त्रों में स्कंदमाता का काफी महत्व बताया गया है. इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पहाड़ों पर रहने वाली मैया स्कंदमाता का सुमिरन करने से भगवान कार्तिकेय का भी आशीर्वाद मिलता है. स्कंदमाता की कृपा से सूनी गोद भर जाती है. नवरात्रि में मां स्कंदमाता की आराधना से जीवन की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.