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...तो PM Modi या Anti BJP तीसरे मोर्चे से इसलिए बेफिक्र है भाजपा

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच रविवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की. इसके साथ ही देश में एक बार फिर से तीसरे मोर्चे की हलचल तेज हो गई है.

Updated on: 21 Feb 2022, 02:06 PM

highlights

  • एक नेता का दूसरे राज्य में प्रभाव और उनका वोट नहीं है
  • कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और देशभर में उसके वर्कर हैं
  • मजबूत विकल्प न होने से भाजपा पर पड़ेगा नहीं फर्क 

नई दिल्ली:

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच रविवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की. इसके साथ ही देश में एक बार फिर से तीसरे मोर्चे की हलचल तेज हो गई है. दरअसल, मुलाकात के बाद राव और ठाकरे दोनों नेताओं ने कहा कि हमारे बीच राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ एक मोर्चा बनाने को लेकर सहमति बनी है. वहीं, शरद पवार के साथ राव की एक घंटे तक चली वर्ता के बाद यह कहा जा रहा है कि राव को पवार का भी आशीर्वाद प्राप्त है. हालांकि, कांग्रेस के बिना बनने वाले इस मोर्चे पर सवाल भी उठ रहे हैं. माना जा रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत विकल्प न होने की स्थिति में इस मोर्चा का भाजपा के प्रभाव पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

केसीआर लंबे अरसे से धानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते आ रहे हैं. वे केंद्र की मोदी सरकार पर राज्य सरकार के अधिकारों में दखल, जीएसटी, प्रशासनिक सेवाओं में नियुक्ति जैसे मुद्दे लगातार उठा आ रहे है. अब इसी को आधार बनाकर केसीआर ने गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विपक्ष के बड़े नेताओं से मुलाकात का सिलसिला शुरू कर विपक्ष को लामबंद करना शुरू कर दिया. इससे पहले वे ममता बनर्जी से मिलने बंगाल गए थे. उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी बातचीत की थी. इसके साथ ही वह पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा से भी मिले थे. 

भाजपा पर हमले तेज
उद्धव ठाकरे से मुलाकात के बाद राव ने कहा कि मौजूदा वक्त में देश जिस तरह से चल रहा है, उसमें बदलाव की ज़रूरत है. हम लोग एक बात पर सहमत हुए कि देश में बड़े परिवर्तन की ज़रूरत है. देश के माहौल को ख़राब नहीं करना चाहिए.  केसीआर ने आगे कहा कि ज़ुल्म के साथ हम लड़ना चाहते हैं. नाजायज काम से हम लड़ना चाहते हैं. वहीं, उद्धव ठाकरे ने भी बदलाव की ज़रूरत बताते हुए कहा कि मौजूदा राजनीतिक हालात में बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है. उन्होंने कहा कि हमारा हिंदू बदला लेने वाला नहीं है. ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा अगर खराब प्रदर्शन करती है, तो भाजपा के खिलाफ इन क्षत्रपों के हमले और भी तेज हो सकते हैं.

कांग्रेस के प्रति नरम दिखे राव
राव ने अब तक कांग्रेस को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. दरअसल, उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. लिहाजा, इस मौके पर ऐसा कुछ भी नहीं क्या गया, जिससे ठाकरे की सरकार खतरे में पड़ जाए. वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस उनकी मुख्य विपक्षी पार्टी है, लेकिन वो भाजपा पर ही हमलावर दिख रहे हैं. प्रधानमंत्री के तेलंगाना दौर पर उनके स्वागत के लिए मुख्यमंत्री का न पहुंचना, संसद में प्रधानमंत्री मोदी के बयान को 'तेलंगाना बनने के विरोध से जोड़ना' और फ़िर राहुल गांधी पर दिए गए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के बयान की निंदा करने के साथ ही सरमा के इस्तीफे की मांग करना, ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं,  जो दिखाता है कि राव कांग्रेस को नाराज करना नहीं चाहते हैं. इससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस को चुनाव पूर्व मोर्चे में शामिल नहीं भी किया जाता है, तब भी राव उनके साथ ऐसे रिश्ते बनाकर रखना चाहते हैं कि चुनाव बाद जरूरत पड़ने पर कांग्रेस की मदद ली जा सके. गौरतलब है कि इससे पहले जब ममता बनर्जी ने ऐसे ही मोर्चे की कोशिश की थी तो वो कांग्रेस की आलोचना कर रही थीं. इस लिहाज़ से केसीआर की कोशिश में कांग्रेस के लिए पॉजिटिव सिग्नल भी नज़र आ रहा है. दरअसल, इस मोर्चे की पहुंच बढ़ाने के लिए कांग्रेस, टीएमसी, आप जैसी पार्टियों की ज़रूरत भी होगी.

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तीसरा मोर्चा बनने के बाद भी इसलिए बेफिक्र है भाजपा 
कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चे के इस प्रयास पर सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस को अलग रखकर टीएमसी, डीएमके, शिवसेना और टीआरएस आखिर क्या हासिल कर पाएंगे. दरअसल, इन सभी क्षत्रपों का प्रभाव अपने-अपने राज्य तक ही सीमित है. यह सभी नेता-अपने राज्य के बाहर किसी दूसरी पार्टी को लाभ पहुंचाने की हालत में नहीं है. विपक्ष में एक मात्र कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसका जनाधार पूरे देश में है. कांग्रेस का जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक में संगठन है, लेकिन मजबूत लीडरशिप के अभाव में उसकी वोट कैच करने की क्षमता फिलहाल कम है. हालांकि, किसी अन्य दल के साथ मिलकर वह एक मजबूत विकल्प दे सकती है. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस के बिना क्षेत्रीय दलों की इस एकता के बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत विकल्प न होने की स्थिति में भाजपा पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. लिहाजा, भाजपा इस गठबंधन से बेफिक्र नजर आ रही है.