logo-image

कम वोटिंग होने से धरे के धरे रह सकते हैं Exit Poll के नतीजे

2007 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल भी मतगणना के दिन औंधे मुंह गिर पड़े थे. 2014 लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल भारतीय जनता पार्टी (BJP) को प्रचंड बहुमत के सामने फीके पड़ गए थे.

Updated on: 09 Mar 2022, 02:51 PM

highlights

  • 2007, 2014, 2017 में धरे रह गए थे एग्जिट पोल
  • इस बार मतदान प्रतिशत कम रहने से अंदेशा गहराया
  • राजनतिक पंडित मान रहे कम वोटिंग का रहेगा असर

नई दिल्ली:

2022 में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) का परिणाम कल यानी 10 मार्च गुरुवार को आ रहे हैं. इससे पहले सोमवार शाम सातवें चरण का मतदान संपन्न होते ही तमाम एग्जिट पोल (Exit Poll) सरकार को लेकर अपने-अपने अनुमान जता चुके हैं. यह अलग बात है कि हमेशा की तरह कांटे की टक्कर देने वाली राजनीतिक पार्टियां एग्जिट पोल को सिरे से खारिज करने से नहीं चूकी हैं. हालांकि इस बार पिछली बार की तुलना में मतदान प्रतिशत थोड़ा कम रहा है. ऐसे में कुछ विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि एग्जिट पोल पलट भी सकते हैं. गौरतलब है कि इसके पहले 2007 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल भी मतगणना के दिन औंधे मुंह गिर पड़े थे. 2014 लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल भारतीय जनता पार्टी (BJP) को प्रचंड बहुमत के सामने फीके पड़ गए थे. 

कम मतदान भी बदल देते हैं परिणाम
सच तो यह है कि विगत कई चुनावों से मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग साइलेंट वोटर की भमिका में आ जाता है. यही वोट एग्जिट पोल की तस्वीर बदल कर रख देते हैं. इसके अलावा कम मतदान भी अनापेक्षित परिणाम की आहट होते हैं. एक अन्य वजह एग्जिट पोल की तकनीक भी है. सटीक एग्जिट पोल कई बातों पर निर्भर करते हैं. मसलन सैंपल साइज, मतदाताओं से पूछे जाने वाले प्रश्न और एग्जिट पोल तकनीक. अगर सैंपल साइज छोटा हुआ और मतदाताओं से पूछे गए प्रश्न टू द प्वाइंट नहीं हुए तो अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है. यही वजह है कि राजनीतिक दल खासकर जो पिछड़ रहा हो, इन्हें मानने से इंकार कर देता है. इस बार भी एग्जिट पोल की सटीकता गुरुवार को सामने आ जाएगी. 

यह भी पढ़ेंः दिल्ली में आज घोषित होगी MCD चुनाव की तारीख, चुनाव आयोग की तैयारियां पूरी

इस तरह कम हुई है वोटिंग
हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों में से कुछ मान कर चल रहे हैं कि कम मतदान एग्जिट पोल की तस्वीर बदल सकता है. गौरतलब है कि पोस्टल बैलट की गिनती के बाद मतदान प्रतिशत में मामूली ही बढ़ोत्तरी ही देखी गई. इन चुनावों में 18 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. इनमें सिर्फ उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ मतदाता शामिल थे. निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनावों में 61 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस बार 60 प्रतिशत ही मतदान हुआ है. उत्तराखंड में 2017 विधानसभा चुनावों के बराबर 65 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2012 (66.8 फीसदी) की तुलना में कम है. पंजाब में भी पिछले तीन विधानसभा चुनावों में मतदान के प्रतिशत में लगातार गिरावट देखी गई है. 2012 में वोटिंग फीसदी 78.2 प्रतिशत था, 2017 में 77 प्रतिशत और 2022 में 72 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया. कमोबेश यही स्थिति गोवा में भी रही. इस बार मणिपुर एकमात्र राज्य रहा, जहां पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 2.2 फीसदी ज्यादा वोट पड़े.

यह भी पढ़ेंः 15वें दौर की वार्ता में क्या सुलझ सकेंगे भारत-चीन के विवादास्पद मसले

कई बार धरे के धरे रह गए एग्जिट पोल
एग्जिट पोल हमेशा सही निकलते हों, ऐसा भी नहीं होता है. उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लीजिए 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 403 में से 312 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस समय ज्यादातर ओपिनियन पोल्स ने बीजेपी की चुनावी जीत को कम करके आंका था. अधिकतर एग्जिट पोल में 300 सीटों के पास बीजेपी को नहीं दिखाया गया था. कुछ ने तो 155-160 सीटें मिलने का अनुमान जताया था. परिणाम जब आए तो बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. इसी प्रकार सर्वे करने वालों ने 2012 में समाजवादी पार्टी की सफलता का ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया था. यही हाल 2007 के समय बसपा के साथ हुआ था, जब एग्जिट पोल पिछड़ गए थे. पंजाब में भी ज्यादातर ओपिनियन और एग्जिट पोल 2017 में कांग्रेस की सफलता का अनुमान नहीं लगा सके थे. 2012 में शिरोमणि अकाली दल की जीत में भी वे पीछे रह गए थे. ऐसे में कम मतदान भी कल एग्जिट पोल की तस्वीर बदल कर रख सकते हैं.