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कम मतदान होने के पीछे ये हैं बड़ी वजह, चुनाव आयोग कर रहा विश्लेषण

19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान में इस बार वोटिंग प्रतिशत कम हुई है. इसको लेकर राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग भी चिंतित हैं. आयोग इसकी समीक्षा में जुटा हुआ है. वहीं, कुछ फैक्टर्स हैं जो कम वोटिंग होने की ओर इशारे कर रहे हैं.

Updated on: 23 Apr 2024, 02:37 PM

नई दिल्ली:

देश में पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को संपन्न हो गया. 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर मतदान हुआ.पहले चरण में सिर्फ 66 फीसदी वोटिंग हुई. यह प्रतिशत पिछले 10 सालों की तुलना में कम है.  2019 लोकसभा चुनाव के पहले चरण में करीब 69 फीसदी मतदान हुआ था, 2019 के 69 फीसदी के मुकाबले तीन फीसदी मतदान इस बार कम हुआ है. इस बार मतदान प्रतिशत कम होने से चुनाव आयोग चिंतित है.  ऐसा पहली बार है कि चुनाव आयोग ने मतदान के लिए मतदाताओं को जागरूक तो किया, लेकिन मतदान फीसदी बढ़ने की जो उम्मीद थी वह संतोषजनक नहीं थी. ऐसे में चुनाव आयोग समझ नहीं पा रहा है कि आखिर चूक कहा हो गई.

नगालैंड में पहली बार पहले चरण के चुनाव में मतदान नहीं हुआ. राज्य के 6 जिलों में चार लाख मतदाताओं में से एक भी वोट करने नहीं आया. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां के बूथों पर मतदानकर्मी पूरे 9 घंटे इंतजार करते रहे, लेकिन इस क्षेत्र का एक भी वोटर वोट देने नहीं पहुंचा सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, आयोग अब मतदान फीसदी बढ़ाने के लिए नई रणनीति के पर काम कर रहा है.  मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव आयोग  कम मतदान के कारणों का विश्लेषण कर रहा है. चुनाव आयोग सूत्रों के मुताबिक, कम मतदान होने के कई कारण हो सकते हैं. प्रचंड गर्मी, शादियों का सीजन, जागरूकता की कमी, पलायन,  आरोप-प्रत्यारोपों से उबा मन, नए मुद्दों का अभाव.
 

प्रचंड गर्मी

 कम मतदान ने राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग की चिंता बढ़ा दी है. चुनाव आयोग इस पर विश्लेषण कर रहा है कि आखिर किस वजह से इस बार का चुनाव पिछले बार के मुकाबले कम हुआ. इधर कम मतदान होने के पीछे प्रचंड गर्मी को बताया जा रहा है. दरअसल, इस बार अप्रैल में ही आसमान से आग बरस रही है. इस महीने की शुरुआत से ही उत्तर पश्चिम और दक्षिण भारत के कई इलाकों में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है. इसके अलावा इस बार मतदान 2019 की तुलना में एक सप्ताह बाद शुरू हुआ है. ऐसे में बहुत से मतदाता मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंच पाएं.

शादी-ब्याह और जेनऊ का सीजन
 शादियों के सीजन और यज्ञोपवीत संस्कार भी इस बार कम मतदान का फैक्टर माना जा रहा है.  शादी-ब्याह और उपनयन संस्कार के कारण ज्यादा तर लोग अपने कामों में उलक्षे रहे. खासकर 19 अप्रैल को जिस दिन मतदान होना था. उस दिन तो शादी और यज्ञोपवित्र का दिन था. इस लिए ज्यादातर लोग मतदान केंद्रों पर नहीं पहुंच सकें. 

शहरों से पलायन 
उत्तर और पूर्वी भारत से पलायन एक बड़ी समस्या है.ज्यादातर युवा  काम की तलाश में दूसरों राज्यों में आकर बस गए हैं. ऐसे में कई राज्यों के सैकड़ों गांव खाली है. खाली होने के कारण लोग तक नहीं हैं. जिस वजह से मतदान केंद्रों पर लोग वोट करने नहीं पहुंचे. यह भी मतदान प्रतिशत के कम होने का कारण माना जा रहा है.   

जागरूकता का अभाव
आज भी कई राज्यों में मतदान को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है. खासकर बिहार, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में जागरूकता का अभाव भी कम वोटिंग का कारण है. झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में कई ऐसे मतदान केंद्र हैं , जहां पर पहुंचना आज भी लोगों के लिए चुनौती है. कई इलाकों में पानी होने की वजह से आज भी लोग नावों के सहारे मतदान केंद्रों तक पहुंचते हैं. 

आरोप-प्रत्यारोपों से भरा लोगों का मन
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार के चुनाव में राजनीतिक दलों एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं. इससे आम जनता को कोई फायदा नहीं मिलता. चुनावों में तो नेता एक दूसरों पर आरोपों की झड़ी लगा देते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के साथ ही इस पर कोई चर्चा तक नहीं होती. ऐसे में लोग आरोप प्रत्यारोप से थक गए हैं. इसके अलावा एक बड़े तबके को लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ही एक बार फिर सत्ता में आने वाली है. इसके अलावा कोई मजबूत विकल्प नहीं है और जहां कम्पटीशन नहीं होता है तो लोगों में उत्साह अपने आप ही कम हो जाता है.