Maharashtra Politics: पवार के खिलाफ बगावत का बिगुल..क्या खत्म हो जाएगा NCP का वजूद?
महाराष्ट्र की राजनीति उलट-पलट हो गई है. चाचा-भतीजा की तकरार NCP के भविष्य पर सवालिया-निशान खड़ा कर रही है. अजित पवार ने पार्टी पर दावा ठोका है. वहीं, शरद पवार ने कहा कि NCP पर उनका अधिकार है.
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र का सियासी बवंडर अब भूकंप में तबदील हो गया है. कुछ ही घंटों में प्रदेश की राजनीति उलट-पलट हो गई है. अबतक जो विपक्षी नेता की भूमिका में थे, अब वो चाचा शरद पवार से बगावत कर सरकार में शामिल हो गए हैं. न सिर्फ इतना, बल्कि अब उन्हें महाराष्ट्र के नए डिप्टी CM से की पहचाना हासिल हो गई है. ये कोई छोटी-मोटी बगावत नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर को तबदील करने की शुरुआत थी. चाचा-भतीजा की तकरार से शुरू हुई दो फाड़, अब NCP पार्टी के भविष्य पर सवालिया-निशान खड़ा कर रही है...
इस गेम की शुरुआत तब हुई, जब NCP में शरद पवार के बाद नंबर दो की हैसियत रखने वाले अजित पवार अचानक राजभवन जा पहुंचे और एकाएक शिंदे-बीजेपी की गठबंधन सरकार को समर्थन देने का फरमान जारी कर दिया. इस एक खबर से पूरे देश का सियासी पारा उफान पर पहुंच गया. न सिर्फ इतना, बल्कि अजित पवार ने अपने साथ 40 विधायकों के समर्थन का ऐलान भी कर दिया, जिससे कहीं न कहीं NCP के वजूद पर खतरा मंडराने लगा, मगर कहानी अभी बाकि है. कुछ ही देर बाद शिंदे-बीजेपी पार्टी के कार्यकर्ताओं के हुजूम के बीच अजित पवार ने महाराष्ट्र के दूसरे डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ ली, साथ ही साथ अपने साथी 8 विधायकों को भी मंत्री पद की शपथ दिलवाई. सियासी भूकंप से NCP की जमीन हिलाने वाली ये तस्वीरें पूरे देश की राजनीतिक गलियारे में मानों भूचाल सा ले आई.
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सुप्रिया सुले के पास अब क्या बचा?
इन तस्वीरों में सबसे आगे खड़े थे अजित पवार और उनके पीछे थे वही 8 नेता, छगन भुजबल, दिलीप वलसे पाटिल, धर्मराव अत्राम, सुनील वलसाड, अदिति तटकरे, हसन मुश्रीफ, धनंजय मुंडे और अनिल पाटिल. महाराष्ट्र की सियासत को समझने वाले, इन नेताओं को महाराष्ट्र की राजनीति में NCP के कद्दावर नेता हैं, जिन्होंने अब NCP को खोकला कर दिया है. लेकिन अब भी अगर पार्टी में कुछ बचा है, तो वो है शरद पवार का आशीर्वाद और कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले का साथ. ऐसे में अब सवाल है कि आखिर टूट चुकी NCP में कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले के पास क्या बचा है?
NCP में क्यों छिड़ी रार..
इस पूरे घटनाक्रम की बिसात 10 जून को बिछाई गई थी, जब NCP में बड़ा फेरबदल देखने को मिला था. मौका था पार्टी के 25वें स्थापना दिवस का. जहां चाचा शरद पवार ने अपने पार्टी के दो कार्यकारी अध्यक्षों के नाम का ऐलान तो किया, मगर दोनों ही नाम में भतीजे अजित पवार का नाम नहीं था, इससे उन्हें बहुत पड़ा झटका मिला. महाराष्ट्र की सियासत में पैदा हुई इस हलचल से लोगों ने बड़े भूकंप का कयास लगाना शुरू कर दिया था. खैर बता दें कि ये दोनों नाम थे सुप्रिया सुले और सबसे जरूरी प्रफुल्ल पटेल के. यहां बता दें कि प्रफुल्ल पटेल जरूरी क्यों है, वो आगे बात करेंगे. पहले जान लेते हैं, उस दिन किसको-क्या जिम्मेदारी मिली थी.
सुप्रिया सुले- कार्यकारी अध्यक्ष और महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, महिला युवा, लोकसभा समन्वय की जिम्मेदारी.
प्रफुल्ल पटेल- कार्यकारी अध्यक्ष और मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा की जिम्मेदारी.
सुनील तटकरे- राष्ट्रीय महासचिव और ओडिशा, पश्चिम बंगाल, किसान, अल्पसंख्यक विभाग के प्रभारी.
नंदा शास्त्री- दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष.
फैसल - तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल की जिम्मेदारी.
प्रफुल्ल पटेल का जिक्र जरूरी क्यों
चलिए अब जान लेते हैं कि प्रफुल्ल पटेल का नाम जरूरी क्यों हैं? इसका जवाब छिपा है एक तस्वीर में, वही तस्वीर जो अजित पवार की शपत के दौरान सामने आई है, इस तस्वीर में साफ-साफ प्रफुल्ल पटेल भी नजर आ रहे हैं. यहां तक कि जब अजित पवार डिप्टी सीएम बनने के बाद प्रेस वार्ता कर रहे हैं, तब भी प्रफुल्ल पटेल उनकी बगल की कुर्सी में बैठे दिख रहे हैं. लिहाजा प्रफुल्ल पटेल के नाम को लेकर कयासों का दौर एक बार फिर शुरू हो गया है, मसलन जिस व्यक्ति को पार्टी की खास जिम्मेदारियां सौंपी हो, वो अजित पवार के बगल में क्या कर रहा है? क्या NCP का ये नया-नवेला कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी का साथ छोड़ चुका है?
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तो फिर अब सुप्रिया सुले का क्या होगा?
अगर ऊपर पूछे सवाल का जवाब 'हां' है, तो दूसरा सवाल है कि अब सुप्रिया सुले का क्या होगा? महाराष्ट्र की राजनीति में आए भूचाल से, अब सुप्रिया सुले और उद्धव ठाकरे एक ही पायदान पर खड़े नजर आ रहे हैं. ये बिल्कुल वही तस्वीर पेश कर रहा है, जब कुछ वक्त पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सियासी जमीन एकनाथ शिंदे द्वारा यूं ही खींच ली गई थी. अभी तो सुप्रिया सुले को NCP चीफ की दौड़ में भी हिस्सा लेना था, मगर टूटती हुई पार्टी उनके सामने नई चुनौती बन आई है. बता दें कि सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाते समय उन्हें महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, महिला युवा और लोकसभा समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, मगर अब उनकी लड़ाई मुद्दों से हटकर पार्टी के नए मोर्चे से शुरू हो गई है, जिसका वर्तमान हमें मालूम है, लेकिन भविष्य गुमनाम खाई में गर्द है.
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