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लोकसभा चुनाव

Karnataka Election: किन 2 समुदायों पर टिका है प्रदेश का सियासी गणित, हर दल के लिए क्यों जरूरी

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है. इसके साथ ही राजनीतिक दलों की हलचलों के साथ-साथ धड़कनें भी बढ़ने लगी हैं.

Updated on: 13 Apr 2023, 01:03 PM

highlights

  • 10 मई को होना है कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान
  • 13 मई को जारी किए जाएंगे नतीजे
  • प्रदेश के दो समुदायों पर टिका है जीत और हार का दारोमदार

New Delhi:

Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है. इसके साथ ही राजनीतिक दलों की हलचलों के साथ-साथ धड़कनें भी बढ़ने लगी हैं. हर किसी के लिए चुनाव में जीत ही आखिरी और पहली इच्छा है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मतों का विश्वास. ये विश्वास तभी हासिल हो सकता है जब आप वोटों पर अपनी पकड़ को मजबूत कर लें और इस पकड़ के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है जातिगत समीकरण को समझना. राजनीतिक दलों चाहे सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर विपक्षी दलों में कांग्रेस और जेडीएस सभी के लिए जातिगत समीकरणों को साधाना बहुत आवश्यक है. कर्नाटक की राजनीतिक में जातिगत समीकरण वैसे तो काफी फैला हुआ है, लेकिन इसे दो बड़े समुदायों के जरिए साधा जा सकता है. ये दो समुदाय हैं लिंगायत और वोक्कलिंगा. इन दोनों ही समुदायों को साधने के लिए सभी दल दांव लगा रहे हैं. आइए जानते हैं इन दोनों ही समुदायों का कर्नाटक की राजनीति में कैसा है रोल...

आबादी के लिहाज से दोनों दल
कर्नाटक की राजनीति में उन्हीं दलों की जीत को सुनिश्चित कहा जा सकता है कि जो इन दो समुदायों लिंगायत और वोक्कलिंगा को साध ले. इन दोनों ही दलों की आबादी से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये पॉलिटिकल पार्टिज के लिए कितने जरूरी हैं. लिंगायत समुदाय की बात करें तो कर्नाटक में इनकी आबादी 17 फीसदी है. यानी वोटों के लिहाज से ये सबसे बड़ी कम्युनिटी है. वहीं दूसरे नंबर पर आता है वोक्कलिंगा. वोक्कलिंगा समुदाय की आबादी भी 12 फीसदी तक है. ऐसे में इन दोनों ही समुदायों पर पकड़ बना ली जाए तो वोट प्रतिशत का करीब 30 फीसदी राजनीतिक दल की झोली में आ जाता है. 

लिंगायत समुदाय ने प्रदेशको दिए 8 सीएम
लिंगायत समुदाय की ताकत का अंदाजा आप इसी एक बात से लगा सकते हैं कि अब तक कर्नाटक के 8 मुख्यमंत्री इसी समुदाय से चुने गए हैं. इतना ही नहीं 224 विधानसभा सीटों से करीब 110 सीट पर इसी समुदाय का असर देखने को मिलता है. 1956 में ही जब भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया गया तो मैसूर अस्तित्व में आया और इसे ही बाद में कर्नाटक नाम दिया गया है. तब से ही लिंगायत समुदाय की धाक इस सूबे में बोलती है. 

क्या है लिंगायतों की मांग
लिंगायत समुदाय की बात करें तो ये खुद के अलग धर्म की मांग लंबे समय से कर रहे हैं. इसको लेकर वे लगातार सरकारों के सामने अपनी मांगों को भी रख चुके हैं. इनकी मांगों को लेकर सबसे ज्यादा भरोसा कांग्रेस के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने दिलाया था. उन्होंने आश्वासन भी दिया था कि उनकी सरकार में लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दिया जाएगा. 
वहीं बीजेपी अब तक इसी तरह की कोई प्रोमिस करती नहीं दिखी है, लेकिन बीएस येदियुरप्पा के जरिए पार्टी ने इस समुदाय में अपनी पकड़ को बनाए रखा है. इसके बाद भी बीजेपी ने जिसे सीएम की कुर्सी सौंपी वो बसवराज बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं. लिहाजा पार्टी इस बार भी उन्हीं के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. ताकि समुदाय को साधने में किसी तरह की जातिगत समस्या का सामना ना करना पड़े. 

क्या है वोक्कलिंगा का रुतबा?
कर्नाटक में जीत सुनिश्चित करना है तो दूसरे सबसे बड़े समुदाय को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और ये है वोक्कलिंगा समुदाय. वोक्कलिंगा समुदाय का गढ़ मैसूर को ही माना जाता है. इसके रामनगर (जिसे बाद में शोले फिल्म  की वजह से रामगढ़ का नाम दिया गया), चामराजनगर, कोडागु, कोलार, मांड्या, हासन और तमुकुरु जैसे इलाके शामिल हैं. यहां पर वोक्कलिंगा समुदाय का दबदबा माना जाता है. ये समुदाय भी विधानसभा की कुल 224 सीटों का एक चौथाई कवर करता है. वहीं अब तक के 17 सीएम में से 7 सीएम इसी समुदाय से बने हैं. इतना ही नहीं इस समुदाय ने देश को प्रधानमंत्री भी दिया है. एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय से हैं. 

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बीते चुनाव में इन समुदायों का रोल
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2018 में कर्नाटक की कुल सीटों में इन दोनों समुदायों ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई थी. वोक्कलिंगा समुदाय से 58 सीटें मौजूदा असेंबली में हैं. इनमें जेडीएस के पास 24, कांग्रेस के पास 18 और 15 बीजेपी के कब्जे में हैं. वहीं लिंगायत समुदाय की बात करें तो सबसे ज्यादा बीजेपी ने 40 सीट जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर इस समुदाय के प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित की. 

वोक्कलिंगा के लिए बीजेपी का बड़ा दांव
वोक्कलिंगा समुदाय पर पकड़ बनाने के लिए बीजेपी ने चुनाव से पहले ही बड़ा दांव चला है. पार्टी ने इस समुदाय के आरक्षण में इजाफा किया है. इसे चार फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी कर दिया गया है. इसको लेकर समुदाय के श्रद्ध्ये स्वामी निर्मलानंदनाथ ने बीजेपी की तारीफ भी की. इसके साथ ही 16वीं सदी में समुदाय के प्रमुख नाडा प्रभु कैम्पे गौड़ा की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का निर्माण भी कराया गया है. जो बताता है कि बीजेपी के लिए ये समुदाय कितना अहम है.