Rain Gauge Measure : बारिश को कैसे मापा जाता है? कौन-कौन से हैं यंत्र
बारिश को मापने के लिए ( How rain gauge measure) किस यंत्र को काम में लाया जाता है? यह कैसे काम करता है की चर्चा होती है. मौसम विज्ञान विभाग (IMD) बारिश को लेकर पूर्वानुमान कैसे जताता है.
highlights
- बारिश का रिकॉर्ड रखने के लिए वर्षामापी यंत्र लगाया जाता है
- मानसून के दौराान बारिश के माप को लेकर सवाल उभरते हैं
- सबसे ज्यादा भरोसा पुराने और परंपरागत वर्षामापी यंत्र पर है
नई दिल्ली:
दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में काफी उमसवाली गर्मी और इंतजार के बाद बुधवार को दोपहर बाद जमकर बारिश (Raining) हुई. इसके बाद लोगों ने राहत की सांस ली है. मानसून (Monsoon) के दिनों में आम तौर पर बारिश के माप को लेकर सवाल सामने आते हैं. इसके अलावा बारिश को मापने के लिए किस यंत्र को काम में लाया जाता है? यह कैसे काम करता है की चर्चा होती है. मौसम विज्ञान विभाग (IMD) बारिश को लेकर पूर्वानुमान कैसे जताता है. आइए, इन सारे सवालों को जानने की कोशिश करते हैं.
बारिश को कैसे मापा जाता है ( How rain gauge measure)
किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में होने वाली बारिश को मापने के लिए वर्षामापी (rain gauge meter) यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है. संसार के सभी देशों में वहां का मौसम विभाग बारिश का रिकॉर्ड रखने के लिए जगह जगह वर्षामापी यंत्र लगाता है. इस के जरिए बारिश को इंचों, सेंटीमीटर या मिलीमीटर में नापा जाता है. मानसून के दौरान कई तरह के वर्षामापी यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है. आमतौर पर बारिश का माप दिन में एक बार लिया जाता है. वहीं मानसून के दिनों में बारिश का माप दिन में दो बार पहला सुबह 8 बजे और दूसरा शाम 5 बजे लिया जाता है.
कौन-कौन से वर्षामापी यंत्र
मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा भरोसा पुराने और परंपरागत वर्षामापी यंत्र पर ही किया जाता है. साल 1662 में क्रिस्टोफर ब्रेन ने पहला रेन गेज वर्षा मापी यंत्र बनाया था. एक साधारण यंत्र में पैमाना लगी हुई कांच की बोतल लोहे के बेलनाकार डिब्बे में रखी जाती है. बोतल के मुंह पर एक कीप रख दी जाती है. कीप का व्यास बोतल के व्यास से दस गुना ज्यादा होता है. इसे खुली और सुरक्षित जगह पर रखा जाता है. बरसने वाले पानी की बूंदें कीप में गिरती रहती हैं. पानी बोतल में इकट्ठा होता रहता है.
मौसम विभाग के कर्मचारी 24 घंटे के मौसम के बाद आकर बोतल में इकट्ठा पानी को उस पर लगे पैमाने की मदद से माप लेते हैं. हो चुकी बारिश इस माप का दसवां हिस्सा होती है. कीप का व्यास बोतल के व्यास से दस गुना बड़ा होने के कारण बोतल में इकट्ठा होने वाला पानी भी दस गुना अधिक होता है. यंत्र को लगाने के लिए स्थान चुनते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आस-पास कोई पेड़ ऊंची दीवार ना हो. ऐसा करने की वजह है कि बारिश का पानी किसी वस्तु से टकराने के बजाय सीधे इस यंत्र में आकर गिरे. इससे बारिश की मात्रा को सही तरह से मापा जा सकता है.
बिना पैमाना वाला यंत्र
बाकी बोतलों में पैमाना नहीं होता तो उसकी जगह पानी या तो मापक जार से माप लेते हैं या फिर किसी छड़ द्वारा उसकी गहराई का पता कर लेते हैं. अगर बारिश ज्यादा होती है कि पानी बाहर निकलकर बेलनाकार डिब्बे में भर जाती है. इसलिए शीशी के पानी को नापने के बाद उसे बाहर लेते हैं. उसमें डिब्बे में भरा पानी डालकर नाप लिया जाता है. दोनों नापों को जोड़कर कुल बारिश की माप मालूम कर लेते हैं. इससे पता चलता है कि किसी खास इलाके में कितनी बारिश हुई है.
बारिश की दर और मात्रा
बारिश की दर और मात्रा मापने के लिए कुछ दूसरे वर्षामापी यंत्रों का इस्तेमाल होता है. इनमें एक टिपिंग बकेट वर्षामापी यंत्र है. इस यंत्र में एक छोटी सी बाल्टी रखी रहती है. इसमें गिरने वाले बारिश के पानी की हर बूंद बिजली के एक स्विच को सक्रिय कर देती है. यह पानी की मात्रा को मापता रहता है. ये बाल्टी पानी से पूरी भर जाने पर अपने आप खाली हो जाती है.
भार से संचालित वर्षामापी में एक प्लेटफार्म में एक बाल्टी रखी रहती है. इसके साथ ही एक पैमाना लगा रहता है. जैसे ही बाल्टी पूरी तरह भर जाती है. बारिश के पानी के भार से प्लेटफॉर्म नीचे दबता है. प्लेटफॉर्म पर बारिश के पानी का दबाव टेप पर रिकॉर्ड होता रहता है. कंप्यूटर की मदद से इसे रिकॉर्ड किया जाता रहता है.
रडार और ऑटोमेटिक वर्षामापी
मौसम विज्ञान विशेषज्ञ कुछ जगहों पर रडार द्वारा भी बारिश की माप करते हैं. रडार द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली रेडियो तरंगें पानी की बूंदों द्वारा रिफलेक्ट होती हैं. ये रिफलेक्शन लहरों के तौर पर कंप्यूटर पर नजर आता रहता है. इन बिंदुओं की चमक द्वारा बारिश की मात्रा और सघनता का पता चल जाता है. आजकल तो ऐसे वर्षामापी यंत्र भी बना लिए गए हैं जो खुद बारिश को ऑटोमेटिक तरीके से मापते रहते हैं.
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औसत बारिश की गणना
पूरे वर्ष में होने वाली वर्षा के आंकड़ों के आधार पर मौसम विभाग किसी स्थान की औसत वर्षा का पता लगाता है. जिन जगहों पर सालभर में औसत बारिश 254 मिलीमीटर(10 इंच) से कम होती है तो उस जगह को रेगिस्तान कहा जाता है. 254 मिमी से 508 मिमी (10 से 20 इंच) हर साल बारिश वाली जगहों में कुछ हरियाली रहती है. वहीं सफल खेती के लिए 20 इंच से ज्यादा बारिश का होना जरूरी है.
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