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Apollo मिशन के 50 साल बाद नासा चांद की कक्षा में भेज रहा Artemis

आर्टेमिस के साथ जा रहे क्रू कैप्सूल का नाम अनंत ब्रह्मांड के सबसे चमकीले तारामंडल ओरॉयन पर रखा गया है. 11 फीट ऊंचाई वाले ओरॉयन में अपोलो कैप्सलू की तुलना में ज्यादा जगह है.

Updated on: 27 Aug 2022, 05:17 PM

highlights

  • सोमवार को भारतीय समयानुसार शाम छह बजे चांद की ओर रवाना होगा नासा की आर्टेमिस मिशन
  • आर्टेमिस के साथ ओरॉयन नाम का एक क्रू कैप्सूल भी जा रहा है, जिसमें पुतलों को भेजा जा रहा है
  • आर्टेमिस की परीक्षण उड़ान की सफलता के बाद 2024 और 2025 में मानव मिशन चांद पर भेजे जाएंगे

फ्लोरिडा:

करीब साल भर की देरी और अरबों डॉलर के खर्च के बाद नासा का आर्टेमिस मिशन सोमवार को भारतीय समयानुसार शाम 6 बजे चांद की ओर रवाना होगा. कैनेडी स्पेस सेंटर से आर्टेमिस सुपर हैवी रॉकेट के जरिये क्रू कैप्सूल ओरॉयन (Orion) को लेकर जाएगा. अमेरिका के चांद पर इंसान भेजने के अपोलो (Apollo) मिशन के लगभग 50 साल बाद यह मिशन शुरू हो रहा है. इसी कारण पौराणिक कथाओं के आधार पर अपोलो की जुड़वां बहन आर्टेमिस (Artemis) पर इसका नामकरण किया गया है. 98 मीटर लंबे रॉकेट के जरिये नासा एक खाली क्रू कैप्सूल चांद (Moon) की कक्षा में भेज रहा है. अगर नासा का यह महत्वाकांक्षी चंद्र अभियान सफल रहता है, तो 2024 में एस्ट्रोनॉट्स (Astronauts) चांद की कक्षा में परिक्रमा कर रहे होंगे. इसके बाद 2025 के अंत में नासा (NASA) फिर दो अंतरिक्षयात्रियों को चांद पर भेजेगा. इस मून मिशन के तहत आर्टेमिस की परीक्षण उड़ान छह हफ्तों की होगी. यदि कोई तकनीकी खामी आती है, तो इसकी अवधि कम की जा सकती है. आर्टेमिस अभियान को चंद्रमा, मंगल और उससे आगे के इंसानी अंतरिक्ष अभियानों के सतत कार्यक्रमों में पहला कदम करार दिया जा रहा है. नासा के इस अभियान पर 4 बिलियन डॉलर से अधिक का खर्च आ रहा है. अगर इसके विचार यानी एक दशक पहले से लेकर 2025 तक चांद पर एस्ट्रोनॉट्स को भेजने तक आर्टेमिस अभियान पर 98 बिलियन डॉलर खर्च हो चुका होगा.

आर्टेमिस में शक्तिशाली रॉकेट का इस्तेमाल
लगभग आधी सदी पहले अपोलो के जरिये अंतरिक्षयात्रियों को लेकर गए सैटर्न वी रॉकेट की तुलना में आर्टेमिस का रॉकेट छोटा और पतला है. हालांकि यह कहीं ज्यादा शक्तिशाली है. यह 40 लाख किग्रा के बराबर ऊर्जा उत्पन्न करने वाले धमाके के साथ चांद की ओर रवाना होगा. आर्टेमिस को स्पेस लांच सिस्टम रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा. सैटर्न-वी रॉकेट की तुलना में एसएलएस में एक जोड़ी स्ट्रैप ऑन बूस्टर का इस्तेमाल किया गया है. शटल के बूस्टर की तरह दो मिनट के बाद एसएलएस के बूस्टर्स भी अलग हो जाएंगे, लेकिन दोबारा प्रयोग में लाने के लिए वह अटलांटिक महासागर में जाकर नहीं गिरेंगे. प्रक्षेपण के शुरुआती चरणों में बूस्टर अलग होते जाएंगे और टुकड़ों-टुकड़ों में बंट प्रशांत महासागर में जा गिरेंगे. लिफ्ट ऑफ के दो घंटों बाद अगले चरण में क्रू कैप्सूल ओरॉयन चांद की तरफ रवाना होगा.

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क्रू कैप्सूल ओरॉयन 
आर्टेमिस के साथ जा रहे क्रू कैप्सूल का नाम अनंत ब्रह्मांड के सबसे चमकीले तारामंडल ओरॉयन पर रखा गया है. 11 फीट ऊंचाई वाले ओरॉयन में अपोलो कैप्सलू की तुलना में ज्यादा जगह है. इसमें एक साथ चार अंतरिक्षयात्री मिशन पर जा सकते हैं, जबकि अपोलो में महज तीन एस्ट्रोनॉट्स ही जा सकते थे. इस परीक्षण उड़ान में नारंगी रंग के फ्लाइट सूट में एक आदमकद डमी भी भेजी जा रही है, जो कमांडर की सीट पर विराजमान होगी. इस फ्लाइट सूट में वाइब्रेशन और एक्सीलेरेशन सेंसर लगे होंगे. इंसानी उत्तकों का अहसास देने वाले मटेरियल से बने दो अन्य पुतले भी ओरॉयन में होंगे. इन पुतलों का सर और धड़ महिला-पुरुष की शारीरिक बनावट सा होगा. इसके जरिये कॉस्मिक रेडियेशन का स्तर आंका जाएगा. स्पेस फ्लाइट में ब्रह्मांडीय विकिरण एक बड़ा खतरा होता है. एक पुतले के जरिये इजरायल में बनी सुरक्षा जैकेट का प्रयोग किया जा रहा है. ओरॉयन इससे पहले 2014 में पृथ्वी के दो चक्कर लगा चुका है. इस बार यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सर्विस मॉड्यूल को प्रोपल्शन और सोलर पॉवर के लिए इस्तेमाल में लिया जा रहा है.

ओरॉयन का फ्लाइट प्लान
फ्लोरिडा के स्पेस सेंटर से लेकर प्रशांत महासागर में गिरने तक ओरॉयन की उड़ान छह हफ्तों की होगी. अंतरिक्षयात्रियों वाले मिशन की तुलना में यह दो गुना समय है. इसे 386,000  किमी का सफर तय कर चांद की कक्षा के पास पहुंचने में हफ्ते भर का समय लगेगा. चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा करने के बाद ओरॉयन चांद से 61 हजार किमी दूर उसकी कक्षा में प्रवेश करेगा. यानी चांद की कक्षा में प्रवेश के बाद ओरॉयन की पृथ्वी से दूरी अपोलो की तुलना में कहीं ज्यादा 450,000 किमी होगी. सबसे बड़ी चुनौती मिशन के अंत में आएगी, जब ओरॉयन 40 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार से प्रशांत महासागर में गिरने के लिए पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा. उस वक्त क्रू कैप्सूल को 2,750 डिग्री सेल्सियस का तापमान झेलना होगा, जिसके लिए अपोलो कैप्सूल में लगाई गई हीट शील्ड्स का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि भविष्य के मंगल मिशन में पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश के समय क्रू कैप्सलू की गति कई गुना ज्यादा होगा, तो इस कारण तापमान भी.

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क्या-क्या जाएगा आर्टेमिस के साथ
तीन डमी एस्ट्रोनॉट्स के अलावा अंतरिक्ष के गहन अनुसंधान के लिए कई और चीजें भी भेजी जा रही हैं. ओरॉयन के चांद की ओर सफर शुरू करते ही आर्टेमिस के साथ भेजे जा रहे 10 छोटे आकार के सैटेलाइट्स इससे अलग हो जाएंगे. क्यूबसैट्स के नाम वाले इन सैटेलाइट्स के साथ दिक्कत यह है कि आर्टेमिस की लांच में बार-बार देरी होने से इनकी बैटरी पूरी तरह से चार्ज नहीं रह गई है. नासा भी मानकर चल रहा है कि इनमें से कुछ निष्क्रिय हो जाएंगे. हालांकि नासा उम्मीद कर रहा है कि ब्रह्मांडीय विकिरण को नापने वाले क्यूबसैट सैटेलाइट काम करता रहेगा. क्षुद्रग्रह को लक्षित कर एक सोलर सेल डेमो भी भेजा जा रहा है. ओरॉयन अपने साथ अपोलो 11 मिशन के तहत नील आर्म्सस्ट्रांग द्वारा लाई गई चंद्राम की चट्टानों का कुछ हिस्सा भी लेकर जा रहा है. आर्टेमिस के साथ नासा के एक रॉकेट इंजन का स्क्रू भी जा रहा है, जो लगभग एक दशक पहले समुद्र से बरामद किया गया था.

अपोलो बनाम आर्टेमिस
50 साल के बाद भी अपोलो मिशन नासा की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है. 1960 की तकनीक के बल पर नासा को एलन शेपर्ड के रूप में पहला अंतरिक्षयात्री भेजने में महज आठ साल लगे थे. इसके बाद नील आर्म्सस्ट्रांग और एल्ड्रिन को चांद पर उतारा गया. अपोलो की तुलना में आर्टेमिस मिशन को एक दशक से ज्यादा समय बीत चुका है. 1969 से लेकर 1972 तक अपोलो के जरिये 12 एस्ट्रोनॉट्स चांद पर चहलकदमी कर चुके हैं. हालांकि सभी ने तीन-तीन दिन ही बिताए. आर्टेमिस के जरिये नासा का इरादा 42 एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर भेजने का है और सभी कम से कम हफ्ते भर वहां रहेंगे. नासा चाहता है कि इसके जरिये मंगल पर इंसान के पहले कदम के मिशन को बल मिलेगा.

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इसके आगे क्या
चांद पर एस्ट्रोनॉट के फिर कदम रखने से पहले काफी कुछ किया जाना है. संभवतः 2024 में आर्टेमिस की दूसरी परीक्षण उड़ान में चार एस्ट्रोनॉट्स भेजे जाएंगे, जो चांद की परिक्रमा कर वापस पृथ्वी पर लौट आएंगे.  इसके एक साल बाद नासा फिर चार एस्ट्रोनॉट्स को भेजेगा, जिनमें से दो चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुव पर चहलकदमी करेंगे.