AAP गुजरात चुनाव हार कर भी बन गई राष्ट्रीय पार्टी, ऐसे किया 10 सालों में किला फतह... जानें अब क्या बदलेगा
आम आदमी पार्टी का लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है. फिर भी वह कुलीन क्लब राष्ट्रीय पार्टी दर्जा प्राप्त दलों में से एक हो गई है. आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 10 सालों में जो किया, वह तमाम दिग्गज दशकों में नहीं कर पाते.
highlights
- अरविंद केजरीवाल की आप ने 10 सालों में वह कर दिया जो दिग्गज क्षेत्रीय क्षत्रप भी नहीं कर सके
- दो राज्यों में सरकार, दो राज्यों में राज्य मान्यता प्राप्त दल होते ही आप को मिला राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
- आप वास्तव में एकमात्र राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त पार्टी जिसका लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है
नई दिल्ली:
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने जब 2012 में आम आदमी पार्टी (AAP) लांच की, तो राजनीतिक पंडितों समेत कई लोगों ने इसे चंद रातों का उभार करार देकर खारिज कर दिया था. अरविंद केजरीवाल के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था. वह एक पूर्व टैक्स अधिकारी थे, एक आरटीआई कार्यकर्ता और 2011 में अन्ना हजारे (Anna Hazare) के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उभरे चेहरे थे, जो इसी आंदोलन से सुर्खियों में आए और फिर छा गए. भारतीय राजनीति में इन 10 वर्षों में दो बड़े उलटफेर हुए... भारतीय जनता पार्टी (BJP) का तेजी से अभ्युदय और उसी तेजी के साथ कांग्रेस (Congress) का पतन. इन दोनों राजनीतिक उलटफेर के बीच साझी कड़ी बना आप का एक राष्ट्रीय राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभरना.
आप कैसे राष्ट्रीय पार्टी बनी
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए किसी दल के पास कम से कम तीन राज्यों में दो प्रतिशत लोकसभा सीटें होनी चाहिए. यानी लोकसभा की क्षमता के लिहाज से 11 सांसद. इसके विपरीत लोकसभा में तो आप का एक भी सांसद नहीं है. संसद में नजर आने वाले राघव चड्ढा और संजय सिंह जैसे आप नेता वास्तव में राज्यसभा सदस्य हैं. राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए दूसरी कसौटी यह है कि किसी राजनीतिक दल के पास चार राज्यों में राज्य पार्टी की मान्यता होनी चाहिए. राज्य की पार्टी की मान्यता के लिए किसी पार्टी को विधानसभा चुनाव में छह प्रतिशत वोट यानी लगभग दो सीटों की आवश्यकता होती है. यदि उसका वोट शेयर छह प्रतिशत से कम है, तो तीन सीटों की आवश्यकता होती है. बस यही कसौटी आप अच्छे से पूरा कर रही है. आप की दिल्ली और पंजाब में भारी जनादेश वाली सरकारें हैं. गोवा में पार्टी 6.8 प्रतिशत वोट हासिल कर दो सीटों पर कब्जा कर इस आवश्यकता को पूरा कर चुकी है. और अब पार्टी गुजरात में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के आगे धूल-धूसरित होने के बावजूद राज्य स्तरीय पार्टी बनने के लिए तैयार दिखती है.
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राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त दलों का क्लब कितना कुलीन
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सैकड़ों राजनीतिक पार्टियों के लिहाज से राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त दलों का क्लब बेहद कुलीन है. केंद्रीय चुनाव आयोग के सितंबर 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार भारत में आठ राष्ट्रीय दल, 54 क्षेत्रीय दल और 2,796 पंजीकृत किंतु 'गैर-मान्यता प्राप्त' राजनीतिक दल हैं. आठ राष्ट्रीय दल ये हैं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस, नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई), कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्सवादी (सीपीएम) और बहुज समाज पार्टी (बीएसपी). एनपीपी को हाल ही में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया है. इसका सीधा अर्थ यह भी निकलता है कि मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, एन चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव और लालू यादव सरीखे दमदार क्षेत्रीय क्षत्रप भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त नहीं कर सके. वह भी तब जब अपने-अपने सूबे में यह बड़ी राजनीतिक ताकत हैं. इसकी बड़ी वजह यही रही कि ये क्षेत्रीय पार्टियां अपने-अपने राज्य से निकल दूसरे राज्यों में छाप नहीं छोड़ सकीं. इनके अलावा एनसीपी, टीएमसी, सीपीआई और बीएसपी जैसी पार्टियां हैं, जो अब राष्ट्रीय पार्टी कहलाने या दर्जा हासिल करने के मापदंड को पूरा नहीं करती हैं. इनकी राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता पर तलवर लटक रही है. चुनाव आयोग ने एनसीपी, सीपीआई और टीएमसी को नोटिस देकर पूछा है कि क्यों न उनकी राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता खत्म कर दी जाए. इसके जवाब में इन पार्टियों ने लोकसभा चुनाव 2024 तक अपने दलों के लिए यथास्थिति बरकरार रखने का आग्रह किया है. केंद्रीय निर्वाचन आयोग को इन पार्टियों के इस जवाब पर अंतिम निर्णय लेना है. तृणमूल कांग्रेस के पास राष्ट्रीय दर्जे के लिए जरूरी लोकसभा सांसद से अधिक हैं, लेकिन वे सभी पश्चिम बंगाल से हैं. एनसीपी अब महाराष्ट्र की पार्टी है. सीपीएम भी ज्यादातर केरल और त्रिपुरा तक ही सीमित है. भाकपा का राजनीतिक अस्तित्व का संकट और गहरा गया है. ऐसे में यदि ये राजनीतिक दल राष्ट्रीय पार्टी का अपना दर्जा खो देते हैं, तो आप की स्थिति और भी अधिक प्रतिष्ठित हो जाएगी. यानी इसके बाद प्रभावी रूप से आप की लड़ाई सिर्फ भाजपा और कांग्रेस से रह जाएगी.
राष्ट्रीय पार्टी बतौर आप के लिए क्या बदल गया
- शुरुआत स्तर पर तो आप का चुनाव चिन्ह झाड़ू पूरे भारत में मान्य हो जाएगा.
- राष्ट्रीय दलों बतौर आम चुनाव के दौरान आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण का मौका लेगा.
- आप के अधिकतम 40 स्टार प्रचारक होंगे, जिनकी यात्रा पर होने वाले खर्च की गणना उम्मीदवारों के खाते में नहीं की जाएगी.
- आप को पार्टी मुख्यालय बनाने के लिए सरकारी जमीन मिलेगी.
- मान्यता प्राप्त 'राज्य' और 'राष्ट्रीय' दलों को नामांकन दाखिल करने के लिए केवल एक प्रस्तावक की आवश्यकता होगी.
- मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के बाद उन्हें दो सेट नि:शुल्क मिलेंगे.
- आम चुनाव के दौरान राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवारों को एक मतदाता सूची की प्रति मुफ्त मिलेगी.
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आप के फैलते राजनीतिक परवाज
अब यह कहा जा सकता है कि आप नई कांग्रेस है, जब तक कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की किस्मत में भारी बदलाव नहीं आता और वह अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे संकट से बाहर नहीं आती. तब तक के लिए भारत का राजनीतिक परिदृश्य कुछ ऐसा हो जाएगा. क्षेत्रीय दलों से इतर कांग्रेस और भगवा पार्टी परंपरागत प्रतिद्वंद्वी रहे हैं, लेकिन अब बीजेपी और आप आमने-सामने हुआ करेंगे. केजरीवाल की पार्टी ने आदर्शवादी नेताओं को छोड़ दिया है. अब वह जो कर रही है, उसकी उम्मीद कई लोगों को नहीं थी. इसी तरह वह जो नहीं कर रही है, उसकी उम्मीद आप से लोगों को थी. हालांकि इस उलटफेर में वह चुनाव जीत रही है और उसके लिए कोई भी कीमत बहुत अधिक नहीं है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. एक कांग्रेस-मुक्त भारत का उद्घोष बहुत लंबे समय तक बीजेपी के अनुकूल नहीं हो सकता है, क्योंकि आप ने कांग्रेस से जो लेना था वह ले लिया है. आप की नजरें अब राजनीति की बड़ी बिसात पर है. दिल्ली का एमसीडी चुनाव इसकी एक बानगी मात्र है. ऐसे में कल को बीजेपी और आप के बीच ही राजनीति का बड़ा मंच सजेगा. इसमें शायद ही अब किसी को संदेह हो.
आप का अब तक का सफर
2012 में लांचिंग के बाद आप ने 2014 लोकसभा चुनाव में देश भर में 400 से अधिक उम्मीदवार उतारे थे. इसी लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल वाराणसी में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मैदान में थे, लेकिन तीन लाख से अधिक वोटों से उनके खाते में हार आई. केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद समग्र लोकसभा चुनाव परिणाम भी कतई पक्ष में नहीं आए और आप को पंजाब की सिर्फ चार सीटों पर जीत से संतोष करना पड़ा. आप ने फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, संगरूर और पटियाला लोकसभा सीट पर चुनाव जीतकर अपनी ही पार्टी के कई नेताओं को चौंका दिया था. इसके विपरीत 2019 के लोकसभा चुनाव में आप ने चुनिंदा सीटों पर ध्यान केंद्रित किया और नौ राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों की 40 सीटों पर दांव खेला. हालांकि एक बार फिर आप के खाते में निराशा आई और वह पंजाब की एक सीट संगरूर से चुनाव जीत सकी. इस कड़ी में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने जमीनी हकीकत को स्वीकारते हुए कहा था कि भले ही जीत की संभावना न भी हो, लेकिन पूरी ताकत से प्रयास तो करना ही चाहिए. यही नहीं, आप अपने अस्तित्व में आने और दिल्ली विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त सफलता हासिल करने के बाद पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी है.
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