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Jain Dharm Ki Pratha: जैन साधु और साध्वी नहाते क्यों नहीं?

Jain Dharm Ki Pratha: जैन साधु और साध्वी अपने धार्मिक और आध्यात्मिक साधना में अत्यंत निष्कपट और साधना केंद्रित होते हैं, इसलिए वे अक्सर नहाने से बचते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

Updated on: 24 Feb 2024, 11:36 AM

नई दिल्ली :

Jain Dharm Ki Pratha: जैन साधु और साध्वी अपने धार्मिक और आध्यात्मिक साधना में अत्यंत निष्कपट और साधना केंद्रित होते हैं, इसलिए वे अक्सर नहाने से बचते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिसके लिए वे अवश्य कठिन साधना और तपस्या करते हैं. नहाने के प्रति उनका विशेष ध्यान उनके जीवन में अन्य कार्यों के मुकाबले कम होता है क्योंकि वे नहाने के लिए समय और प्राणी हत्या का भय नहीं रखते हैं. उनका विश्वास होता है कि साधना और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए आत्म-निर्मलता और ध्यान का अधिक महत्व होता है. इसके अलावा, जैन संतों का धार्मिक विश्वास होता है कि नहाने से शरीर के ऊपर लगे सभी भावनात्मक और भौतिक मल समाप्त नहीं होते हैं, जो आत्मा की शुद्धि को बाधित कर सकते हैं. इसलिए, वे अक्सर नहाने से बचते हैं और ध्यान के साथ आत्मा की पवित्रता को प्राथमिकता देते हैं.

जैन धर्म में, साधु और साध्वी बाहरी साफ-सफाई से ज्यादा आंतरिक शुद्धता पर ध्यान देते हैं. उनका मानना ​​है कि स्नान करना केवल शरीर को साफ करता है, मन को नहीं.

जैन साधु और साध्वी नहाने से बचने के कुछ मुख्य कारण हैं:

1. आत्म-संयम:

जैन धर्म में, साधु और साध्वी को आत्म-संयम का पालन करना होता है. स्नान करना एक इंद्रिय सुख माना जाता है, और साधु और साध्वी इंद्रिय सुखों से दूर रहना चाहते हैं.

2. समय का सदुपयोग:

जैन साधु और साध्वी अपना समय ध्यान, अध्ययन और आध्यात्मिक प्रगति में लगाना चाहते हैं. वे स्नान जैसे कार्यों में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं.

3. जल का संरक्षण:

जैन धर्म में, जल को एक मूल्यवान संसाधन माना जाता है. साधु और साध्वी जल का संरक्षण करना चाहते हैं, इसलिए वे स्नान नहीं करते हैं.

4. अहिंसा:

जैन धर्म में, अहिंसा एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है. साधु और साध्वी किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं, और वे मानते हैं कि स्नान करते समय सूक्ष्म जीवों को नुकसान हो सकता है.

5. बाहरी साफ-सफाई से ज्यादा आंतरिक शुद्धता:

जैन साधु और साध्वी बाहरी साफ-सफाई से ज्यादा आंतरिक शुद्धता पर ध्यान देते हैं. उनका मानना ​​है कि स्नान करना केवल शरीर को साफ करता है, मन को नहीं.

जैन साधु और साध्वी शरीर को साफ रखने के लिए अन्य तरीकों का उपयोग करते हैं, जैसे कि:

-गीले कपड़े से शरीर को पोंछना
-मिट्टी का लेप लगाना
-धूप में बैठना

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी जैन साधु और साध्वी नहाने से नहीं बचते हैं. कुछ जैन संप्रदायों में, साधु और साध्वी को नियमित रूप से स्नान करने की अनुमति होती है. जैन साधु और साध्वी नहाने से बचने का निर्णय एक व्यक्तिगत निर्णय है. यह उनके आध्यात्मिक विश्वासों और जीवन शैली पर आधारित है.
 
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)