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Narsimha Jayanti 2022 Katha: नरसिंह जयंती की अनोखी कथा में छिपी है भगवान विष्णु की भक्ति और भयंकर छल

Narsimha Jayanti 2022 Katha: आने वाली नरसिंह जयंती के अवसर पर चलिए जानते हैं नरसिंह भगवान की कथा से जुड़ा वो रोचक तथ्य जिसके तार श्री हरी नारायण की भक्ति और छल दोनों से जुड़े हैं.

Updated on: 08 May 2022, 09:38 AM

नई दिल्ली :

Narsimha Jayanti 2022: हिन्दू पंचांग के अनुसार, नरसिंह जयंती वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है. इस साल यह जयंती 14 मई को मनाई जाएगी. भगवान नरसिंह का संबंध हमेशा से ही शक्ति और विजय से रहा है. मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया था और हिरण्यकश्यप का वध कर धर्म की स्थापना की थी. इसलिए, इस दिन को पूरे देश में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. ऐसे में आने वाली नरसिंह जयंती के अवसर पर चलिए जानते हैं इस कथा से जुड़ा वो रोचक तथ्य जिसके तार न सिर्फ श्री हरी नारायण की भक्ति और छल दोनों से जुड़े हैं. 

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नरसिंह जयंती की कहानी (Story of Narasimha Jayanti in Hindi)
भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक हैं. भगवान नरसिंह आधे मानव और आधे सिंह थे. उन्होंने इस रूप में हिरण्यकश्यप का वध किया था. भगवान विष्णु के इस अवतार का वर्णन कई धार्मिक ग्रंथों में किया गया है. 

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में कश्यप नाम के एक संत थे, जिनकी एक पत्नी थी, जिसका नाम दिति था. उनके दो पुत्र थे जो हरिण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के नाम से जाने जाते थे. भगवान विष्णु ने पृथ्वी और मानव जाति की रक्षा के लिए हरिण्याक्ष का वध किया. हिरण्यकश्यप अपने भाई की मृत्यु को सहन नहीं कर सका और उसने भगवान विष्णु से बदला लेने की ठान ली. 

जिसके लिए हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे ऐसा वरदान माँगा जिसने समस्त सृष्टि को कांपने पर विवश कर दिया. हिरण्यकश्यप ने ब्रह्म देव से वरदान माँगा कि, न उसकी मृत्यु आकाश में हो न धरती पर और न ही जल में. न वो अस्त्र से मरे न शस्त्र से और न किसी दैवीय शक्ति से. न उसे देवता मार सकें, न ही मनुष्य और न ही कोई पशु, न वो घर के बाहर मरे न घर के अंदर. न वो दिन में मरे न रात को. वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया और पृथ्वी समेत सभी लोकों में अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया.  

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हिरण्यकश्यप ने सभी लोकों में अपना शासन स्थापित किया. उसने स्वर्ग पर भी शासन करना शुरू कर दिया. सभी देवता उस एक दैत्य के समक्ष असहाय थे. इस बीच, उनकी पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रहलाद रखा गया. 

राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद दैत्य स्वाभावि नहीं थे. बल्कि वो एक महान विष्णु भक्त निकले. प्रह्लाद पूरी तरह से भगवान नारायण को समर्पित थे. जब पिता हिरण्यकश्यप को इस बात का पता चला कि वो स्वयं जिन भगवान विष्णु से घोर घृणा करता है और जिन्हें वो अपना परम शत्रु मानता है उन्हीं का भक्त उसका अपना पुत्र है. 

तो उसने कई प्रयास किये प्रहलाद को भगवान नारायण की भक्ति से विचलित करने के और उनमें राक्षस प्रवृत्ति जगाने के. लेकिन उसके सभी प्रयास विफल रहे और प्रहलाद भगवान नारायण के प्रति और भी अधिक समर्पित होते चले गए. जिसके बाद क्रोध स्वरूप हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मृत्यु के घाट उतारने के भी कई प्रयास किये.

लेकिन हमेशा प्रह्लाद को उनकी सच्ची विष्णु भक्ति ने बचाया और पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों का सामना करने का उन्हें साहस प्रदान किया. एक बार क्रोध वश हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर एक योजना बनाई और अपने पुत्र को चिता पर जीवित जलाने का प्रयास भी किया. दरअसल, होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था. 

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इसी वरदान का दुरुपयोग करते हुए प्रह्लाद की बुआ और उनके पिता ने इस योजना को सफल बनाने की ठानी. उसने प्रहलाद को अपनी बहन (होलिका) की गोद में आग में बिठाया. लेकिन, प्रहलाद की विष्णु भक्ति ने उन्हें फिर से बचा लिया और गोद में बैठे होने के बाद भी होलिका जिंदा जल गई और प्रहलाद का बाल तक बांका नहीं हुआ. 

यह देख जहां एक ओर हिरण्यकश्यप का क्रोध अपने चरम पर पहुँच गया वहीं दूसरी ओर उसकी प्रजा में विष्णु भक्ति का भाव जागा और सारी प्रजा नारायण नाम जाप में लीं होने लगी. यह देख हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की अंतिम और अत्यंत घातक योजना बनाई जिसके तहत उन्होंने प्रह्लाद को दरबार में एक खंबे से बांध दिया और भगवान विष्णु का उपहास उड़ाते हुए प्रह्लाद से उनके बारे में पूछने लगा. 

हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र से अपने भगवान अर्थात नारायण को सामने बुलाने के लिए कहा. जिसके बाद प्रहलाद ने उत्तर दिया कि भगवान हर जगह मौजूद हैं और हर चीज में निवास करते हैं. यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि क्या उसका भगवान एक स्तंभ में रहता है, जिस पर प्रहलाद ने उत्तर दिया, हाँ. 

यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने स्तंभ पर हमला किया और भगवान नरसिंह उनके सामने प्रकट हुए. भगवान नरसिंह का स्वरूप देख, जो कि आधा नर और आधा सिंह का था... हिरण्यकश्यप डर के मारे कांपने लगा. भगवान नरसिंह ने ब्रह्म देव के वरदान का मान रखते हुए हिरण्यकश्यप का वध किया. 

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भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को 'न आकाश में न जल में और न ही धरती' पर मारा, उन्होंने उसका वध अपनी गोद में किया. 'न अस्त्र से मारा न शस्त्र से और न किसी दैवीय शक्ति से' अपने नाखूनों से मारा. 'न देव ने मारा न मनुष्य ने और न ही किसी पशु ने'.. भगवान नरसिंह आधे पशु और आधे मनुष्य थे. 'न घर में मारा न घर के बाहर' नरसिंह भगवान ने उसका वध घर की दहलीज पर किया था. 'न दिन में मारा न रात को' हिरण्यकश्यप का वध शाम के वक्त हुआ था. 

हिरण्यकश्यप के वध के बाद भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रख इस पावन कथा को सुनेगा और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा अर्चना करेगा उसे कभी किसी चीज का भय नहीं सताएगा और उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी.

इसके अलावा, नरसिंह भगवान की पूजा से ऊपरी बाधाओं और शत्रुओं का भी नाश होगा. और तभी से इस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जा रहा है.