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जानें क्या होती है सेलेक्ट कमेटी, जिसमें तीन तलाक बिल को भेजने की हो रही है मांग

किसी खास विषय पर विचार करने और प्रतिवेदन (रिपोर्ट) देने के लिए प्रवर समिति के पास भेजे जाने की मांग की जाती है. जिसके बाद सदन कमेटी के सदस्यों की नुयक्ति करता है.

Updated on: 01 Jan 2019, 11:02 AM

नई दिल्ली:

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 (तीन तलाक विधेयक) लोकसभा में पारित होने के बाद संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा में अटकता हुआ दिख रहा है. सोमवार को विपक्षी दलों के हंगामें के बीच विधेयक राज्यसभा में पेश नहीं हो सका. राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पेश करने से पहले विपक्षी दलों ने सोमवार को एक बैठक की थी और विधेयक को आगे के विचार-विमर्श के लिए प्रवर समिति (सेलेक्ट कमेटी) को सौंपने की मांग करने का फैसला किया था. तीन तलाक विधेयक ठीक 1 साल पहले भी लोकसभा में पारित हुआ था, लेकिन विपक्ष के विरोध के कारण राज्यसभा में अटक गया था.

राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद की अध्यक्षता में संसद भवन के उनके चैंबर में बैठक हुई, जिसमें समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) सहित 12 विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया था. बैठक में मौजूद सूत्रों ने कहा कि बैठक में शामिल अधिकांश दलों ने कहा कि विधेयक को प्रवर समिति को भेजे जाने की जरूरत है.

क्या है प्रवर समिति (सेलेक्ट कमेटी)

किसी खास विषय पर विचार करने और प्रतिवेदन (रिपोर्ट) देने के लिए प्रवर समिति के पास भेजे जाने की मांग की जाती है. जिसके बाद सदन कमेटी के सदस्यों की नुयक्ति करता है. समिति के सदस्यों द्वारा विभिन्न प्रावधानों और संशोधनों पर सुझाव दिया जाता है.

राज्यसभा के नियम-125 के मुताबिक, सदन का कोई भी सदस्य (यदि विधेयक को पहले ही सभाओं की संयुक्त समिति को न सौंप दिया गया हो) संशोधन के रूप में यह प्रस्ताव कर सकेगा कि विधेयक प्रवर समिति को सौंपा जाए और यदि ऐसा प्रस्ताव स्वीकृत हो जाए तो विधेयक प्रवर समिति को सौंप दिया जाएगा और तब राज्यसभा में आरंभ होने वाले विधेयकों की प्रवर समितियों से संबंधित नियम लागू होंगे.

यदि यह प्रस्ताव कि विधेयक पर विचार किया जाए, स्वीकृत हो जाए तो विधेयक पर क्रमवार विचार किया जाएगा और विधेयकों के संशोधनों पर विचार से संबंधित राज्यसभा के नियमों के उपबंध और विधेयक के पारण से संबंधित बाद की प्रक्रिया लागू होगी.

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समिति की रिपोर्ट को अध्यक्ष की तरफ से हस्ताक्षर किया होता है. इसमें कोई भी सदस्य असहमति व्यक्त कर सकते हैं. इस रिपोर्ट को असहमति के साथ राज्यसभा में पेश किया जाता है और सभी सदस्यों के बीच बांटा जाता है.

लोकसभा में पारित हो चुका है विधेयक

इससे पहले लोकसभा में 27 दिसंबर को तीन तलाक विधेयक पारित हो गया था, जिसके अंतर्गत तत्काल तीन तलाक या तलाक-ए-इबादत को दंडनीय अपराध ठहराया गया है और इसके अंतर्गत जुर्माने के साथ तीन वर्ष की जेल की सजा का प्रावधान है.

विधेयक को सितंबर में लाए गए अध्यादेश के स्थान पर लाया गया था, जिसके अंतर्गत पति द्वारा 'तलाक' बोलकर तलाक देने पर पाबंदी लगाई गई है. विधेयक पर चार घंटों तक चर्चा हुई, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच भारी बहस भी हुई थी.

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विधेयक के अंतर्गत तत्काल तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाया गया है, जिसके तहत जुर्माने के साथ 3 साल की सजा का प्रावधान है. प्रस्तावित कानून जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा.

राज्यसभा में सदस्यों की स्थिति

राज्यसभा में बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास कुल 85 सांसद हैं. वहीं अन्य 12 सांसदों के समर्थन की उम्मीद है. यानी सत्ता पक्ष की तरफ 97 सदस्यों का समर्थन दिख रहा है. वहीं विपक्ष की तरफ कुल 135 सांसद दिख रहे हैं जो इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं या संशोधन की मांग कर रहे हैं. राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की स्थिति में बीजेपी को विधेयक पारित होने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

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