मैथली शरण गुप्त की 'भारत मां' से गोरक्षकों को कुछ सीखना चाहिए
आज जब बड़े स्तर पर देशभक्ति सोशल मीडिया पर सिमट कर रही गई है। ऐसे में गुप्त जी कविताएं आज की हालात पर सटीक बैठते हैं और इससे निपटने की राह दिखाते हैं।
नई दिल्ली:
भारत में भीड़ के हाथों हत्या यानी मॉब लिंचिंग के मामलों में हुए इजाफे ने सभी को परेशान कर रखा है। लोगों पर बीफ़ रखने का इल्ज़ाम लगाकर हिंसा की जा रही है। नफ़रत के नाम पर अपराध बढ़ रहे हैं।
ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आज जब कथित 'देश भक्त' और गोरक्षक भारत मां की एक अलग ही तस्वीर बनाने में लगे हैं वहीं राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त की भारत मां की तस्वीर कितनी अलग थी।
इन दिनों वंदे मातरम और भारत माता की जय को लेकर भी विवाद है। कोई भारत माता की जय का जयकारा लगा रहा है और जबरदस्ती दूसरे से लगवाना चाहता है। ऐसे वक्त में हमें जानना चाहिए कि सही अर्थों में भारत माता की परिभाषा क्या थी।
मैथली शरण गुप्त ने भारत माता का वर्णन कुछ यूं किया है
भारत माता का मंदिर यह, समता का संवाद जहाँ
सबका शिव-कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ
जाति धर्म या सम्प्रदाय का नहीं भेद व्यवधान यहाँ
सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम-सम्मान यहाँ
साफ है कि मैथली शरण गुप्त की भारत माता सबके लिए समान थी। किसी जाति, धर्म में भेद-भाव नहीं करती थी। गुप्त जी का भारत एक ऐसा भारत था जहां सबका स्वागत था, सबका सम्मान था। आज की तरह बात-बात पर पाकिस्तान या किसी दूसरे मुल्क में भेजने की बात नहीं थी।
फर्जी देशभक्तों की परिभाषा से अलग थी राष्ट्रकवि की नेशनलिज़्म की परिभाषा
आज सब अपनी-अपनी 'देशभक्ति' की परिभाषा गढ़ रहे हैं, जो उनकी रची परिभाषा में फिट बैठता है वह 'देशभक्त' कहलाता है और जो नहीं फिट होता उसे 'देशद्रोही' का प्रमाण पत्र दे दिया जाता है। मैथलीशरण गुप्त की 'देशभक्ति' की परिभाषा इनसे कई अलग थी। उन्होंने स्वतंत्रता-पूर्व अपने समय की राष्ट्रीय आवश्यकताओं को समझकर अपने काव्य में उन्हें अभिव्यक्त किया।
उन्होंने सच्चे देशभक्ति की परिभाषा अपनी कविता में कुछ यूं लिखा है
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
मैथली शरण गुप्त ने जो कविताएं लिखी वह आज भी न सिर्फ प्रासंगिक है, बल्कि इस हालात में एक नई राह दिखाने का भी काम करती है। उन्होंने लिखा
केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए
मैथली शरण गुप्त की यह दो पंक्ति उनके काव्य जीवन का सार है। आज हिन्दी कविता अपनी भाषाई गरिमा खोती जा रही है। कवि दरवारी होने लगे हैं। कवि अपने कवि कर्म को भूलकर अब मंचों पर राजनेताओं का स्तुतिगान करने लगे हैं। ऐसे वक्त में मैथलीशरण गुप्त की यह पंक्ति कवियों को उनके कर्म का आभास आज भी कराती है। इन पंक्तियों में गुप्त जी ने कहा है कि मनोरंजन करने से ज्यादा कवि का कर्तव्य एक समाज को सही राह दिखाना है।
गुप्त जी अपनी भाव रश्मियों से हिंदी साहित्य को प्रकाशित करने वाले युग कवि हैं। चालीस वर्ष तक निरंतर इनकी रचनाओं में युग स्वर गूंजता रहा। इन्होने गौरवपूर्ण अतीत को प्रस्तुत करने के साथ साथ भविष्य का भी भव्य रूप प्रस्तुत किया।
आज इनकी कविताओं से 'देशभक्ति' लोगों को सीखनी चाहिए। इनकी 'देशभक्ति' आज की सोशल मीडिया वाली 'देशभक्ति' से बिलकुल अलग थी। सोशल मीडिया पर 'देशभक्ति' के नाम पर उन्माद फैलाने का काम किया जाता है जबकि गुप्त जी की कविताएं सच्चे मायनों में राष्ट्रचेतना का काम करती थी।
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