भारत-चीन एलएसी पर विवादित स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने को लेकर सहमत
भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास विवाद वाले क्षेत्रों में मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार बकाया मुद्दों को तेजी से सुलझाने की आवश्यकता पर सहमत हो गए हैं.
नई दिल्ली:
भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास विवाद वाले क्षेत्रों में मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार बकाया मुद्दों को तेजी से सुलझाने की आवश्यकता पर सहमत हो गए हैं. दोनों पक्षों की ओर से इस कदम के साथ ही संपूर्ण डी-एस्केलेशन (सैनिकों का पीछे हटना) का मार्ग प्रशस्त हुआ है. भारत सरकार की ओर से शनिवार को यह जानकारी दी गई. सरकार के एक बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार बकाया मुद्दों को तेजी से सुलझाने की आवश्यकता पर सहमत हुए हैं.
भारत-चीन कोर कमांडर स्तरीय 11वें दौर की बैठक 9 अप्रैल को चुशूल में बैठक स्थल पर आयोजित की गई थी. इस दौरान पूर्वी लद्दाख में अगले चरण की सैनिकों के पीछे हटाने की प्रक्रिया पर चर्चा हुई, जो 13 घंटे तक चली. लगभग दो महीने के अंतराल के बाद चुशुल में कोर कमांडर स्तर की 11वीं वार्ता हुई है. इसमें भारतीय सैन्य प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व 14 कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पी. जी. के. मेनन ने किया.
बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों के बीच पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ-साथ सैनिकों के पीछे हटने से जुड़े बाकी मुद्दों के समाधान के लिए विचारों का विस्तृत आदान-प्रदान हुआ. इस संदर्भ में यह भी रेखांकित किया गया कि अन्य क्षेत्रों में सैनिको को पीछे हटाने से दोनों पक्षों के लिए सेनाओं की संख्या में कमी करने और शांति व सौहार्द की पूर्ण बहाली सुनिश्चित करने तथा द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति को सफल बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा.
दोनों पक्ष इस बात पर सहमत रहे कि अपने नेताओं की सहमति से मार्गदर्शन लेना, अपने संवाद को जारी रखना और शेष मुद्दों के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की दिशा में जल्द से जल्द काम करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने जमीन पर संयुक्त रूप से स्थिरता बनाए रखने, किसी भी नई घटना से बचने और संयुक्त रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखने पर भी सहमति जताई है. भारतीय और चीनी सेना के बीच पिछले करीब एक साल से पूर्वी लद्दाख के कई क्षेत्रों में गतिरोध बना हुआ है, जिसे कम करने के लिए दोनों देशों की सेना प्रयासरत हैं.
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