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कितने का हो सकता है एक इलेक्टोरल बॉन्ड? आखिर क्यों SBI के लिए कठिन था जानकारी को साझा करना?  

Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर एसबीआई ने आज हलफनामा दाखिल कर दिया है. आइए जानतें हैं इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े हर सवाल. 

Updated on: 13 Mar 2024, 05:47 PM

नई दिल्ली:

Electoral Bond:  आगामी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड चर्चा का विषय है. हाल ही में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया था और इसकी जानकारी को साझा करने के लिए उसने एसबीआई को आदेश दिया था. पहले स्टेट बैंक आफ इंडिया ने राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से मना कर दिया. इसके बाद देश की शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई. जहां पर एसबीआई को जमकर लताड़ पड़ी. कोर्ट ने दो दिन के अंदर चुनावी बॉन्ड को लेकर हलफनामा दाखिल करने का आदेश जारी किया. आज यानि 13 मार्च 2024 को एसबीआई ने हलफनामा दाखिल ​किया है. इस हलफनामा में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को ब्योरा उपलब्ध कराया है. 

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इलेक्टोरल बॉन्ड है क्या 

इलेक्टोरल बॉन्ड आखिरकार होता क्या है. आज हम आपको इससे जुड़ी हर छोटी बात के बारे में साझा करेंगे. इसके साथ ये जानने की कोशिश करते हैं कि एक बॉन्ड की कीमत क्या हो सकती है. 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड को शुरूआत हुई थी. इन चुनावी बॉन्ड को भी शख्स या कॉरपोरेट कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा बिना पहचान के दे सकता है. बॉन्ड को बाद में राजनीतिक पार्टियां कैश में बदल सकती है. इन बॉन्ड की सबसे खास बात ये है कि इसमें डोनर की पहचान को उजागर नहीं जाता है. यहां तक की इलेक्शन कमीशन आफ इंडिया को भी नहीं. 

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को दिए ऐतिहासिक निर्णय में विवदित चुनावाी बॉन्ड को असंवैधानिक बताया था. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने निर्णय सुनाया था.  किसी भी राजनीतिक दल को दान देने के बदले उपकार की संभावना है. 

किस समय हुई शुरुआत 

भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड्स की शुरुआत 2017 में फाइनेंशियल एक्ट के तहत आरंभ हुआ था. सरकार का ऐसा दावा था कि इन बॉन्ड्स से बैंकिंग चैनल के जरिए डोनेशन की शुरुआत हुई. इस तरह से फंडिंग में पारदर्शिता देखे जाने का मुद्दा उठा. 

क्यों SBI कर रहा था आनाकानी ?

एसबीआई का कहना था कि बॉन्ड की सारी जानकारी एकत्र करना कठिन है. इसमें दानदाता और दान को पाने वाली की सूचना दोनों अलग-अलग थीं. बैक का कहना है कि इसे मैच कराने में समय लग सकता है. मगर शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने जानकारी को मैच कराने को नहीं कहा था. 

बॉन्ड का मूल्य 

अलग-अलग मूल्य वर्ग के इलेक्टोरल बॉन्ड होते हैं. इसकी कीमत एक हजार रुपये, 10 हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपये तक हो सकती थी.