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सेना के खिलाफ FIR रद्द कराने आर्मी ऑफिसर के पिता पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा सेना पर दर्ज की गई एफआईआर में नामजद मेजर आदित्य कुमार के पिता ने अपने बेटे के खिलाफ मामला रद्द करने की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

Updated on: 09 Feb 2018, 12:06 AM

New Delhi:

जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा सेना पर दर्ज की गई एफआईआर में नामजद मेजर आदित्य कुमार के पिता ने अपने बेटे के खिलाफ मामला रद्द करने की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

उन्होंने कहा कि इससे राज्य में आतंकवादियों के खिलाफ लड़ रहे जवानों का मनोबल गिरेगा। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 27 जनवरी को फायरिंग की एक घटना में नागरिकों के मारे जाने के मामले में मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।

मेजर आदित्य कुमार और 10 गढ़वाल राइफल के अन्य जवान 27 जनवरी को दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के गानोवपोरा गांव में सेना के दस्ते पर पथराव कर रही भीड़ पर गोली चलाने और तीन नागरिकों को गंभीर रूप से घायल करने के आरोपी हैं।

मेजर के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल करमवीर सिंह ने वकील ऐश्वर्य भाटी के जरिए दाखिल अपनी याचिका में कहा कि एफआईआर से राज्य में अपनी सेवाएं दे रहे जवानों के मनोबल को धक्का लगेगा।

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उन्होंने कहा, 'जिस तरह से, राज्य के राजनीतिक नेतृत्व और उच्च प्रशासन ने एफआईआर को चित्रित और पेश किया, वह अत्यधिक शत्रुतापूर्ण माहौल को दिखाता है।'

याचिका के अनुसार, 'इस परिस्थिति में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के अंतर्गत, याचिकाकर्ता के पास अपने बेटे और खुद के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अदालत का रुख करने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचा।'

याचिका में कहा गया है कि मेजर आदित्य कुमार को अफ्स्पा के अंतर्गत वाले क्षेत्र में सैन्य दस्ते पर हमले की घटना के दौरान गलत तरीके से और मनमाने ढंग से नामजद किया गया है। वह पथराव करने वाली 'हुड़दंगी और विक्षिप्त' भीड़ के बीच अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे।

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याचिका के अनुसार, 'मेजर का उद्देश्य सैन्य बलों और संपत्ति को बचाना था और फायरिंग केवल घटनास्थल से सुरक्षित रूप से निकलने के लिए की गई थी। पथराव कर रही भीड़ को वहां से हटने और सैन्य बलों को उनके ड्यूटी के दौरान व्यवधान उत्पन्न नहीं करने के लिए कहा गया था। सेना ने साथ ही अनियंत्रित भीड़ को सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाने के लिए भी कहा था।'

याचिका के अनुसार, 'इसके बावजूद भी उन्होंने अपने गैरकानूनी गतिविधि को जारी रखा और जूनियर कमीशन अधिकारी को अपने कब्जे में लेकर मारने की कोशिश करने लगे। इसके बाद अंतिम उपाय के तौर पर फायरिंग की गई।'

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