संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के बाद जानें किस बात पर हुआ था विवाद
संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी को लेकर एक तरफ जश्न का माहौल था, वहीं कुछ बातों को लेकर विवाद भी खड़े हो गए थे.
नई दिल्ली:
संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी को लेकर एक तरफ जश्न का माहौल था, वहीं कुछ बातों को लेकर विवाद भी खड़े हो गए थे. विवाद के मुख्य कारण अफजल गुरु के अवशेष बताए जा रहे थे. दरअसल फांसी देने के बाद आतंकवादी अफजल गुरु के अवशेषों को परिजनों को नहीं सौंपा गया. मृत शरीर को भी घरवालों के हवाले नहीं किया गया था. मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पार्टी के विधायकों ने संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के अवशेषों की मांग करके भाजपा की कमजोर नस दबा दी थी.
गौरतलब है कि 13 दिसंबर 2001 को संसद पर जैश-ए-मोहम्मद व लश्कर-ए-तैय्यबा के आतंकियों ने हमला बोल दिया था. इस घटना में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की महिला कांस्टेबल और दो सुरक्षा गार्ड शहीद हो गये थे. पुलिस के अनुसार, जैश का आतंकी अफजल गुरु इस बड़ी घटना का मुख्य सूत्रधार था कानूनी प्रक्रिया के बाद दिल्ली हाइकोर्ट ने 2002 में और फिर सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में उसे फांसी की सजा सुनायी थी. राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका ठुकरा दी थी. नौ फरवरी 2013 को उसे दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई. उसके मृत शरीर को अलगाववादियों का नायक बनने से रोकने के लिए जेल के अंदर ही दफना दिया गया था.
कई राज्यों में कानून हैं कि सजा ए मौत के बाद कैदी के अवशेषों को सरकार से बात करने के बाद उसके परिजनों को सौंप दिया जाता है. हालांकि कुछ असाधारण मामलों में कैदी के शव या उसके अवशेषों को उनके परिजनों को नहीं सौंपा जाता है. इसके पीछे बड़ी वजह है कि सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को आशंका थी कि अवशेषों को लेकर आतंकवादी उसे नायक बना देते और बदला लेने के लिए हमले शुरू कर देंगे.
अमेरिका ने भी ओसामा बिन लादेन के शव को किसी को नहीं सौंपा था. लादेन का शव समुद्र में दफन कर दिया गया था. अफजल गुरु को फांसी पर लटकाने के बाद उसके परिवार वालों ने खुद उसके अंतिम क्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया था. परिजनों ने शव की मांग की थी. जेल कानून के अनुसार, अगर मृत कैदी के परिजन लिखित में दें कि वो शव का अंतिम संस्कार करना चाहते हैं और इस संस्कार के दौरान वो किसी भी तरह का कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे विवाद पैदा हो तो उन्हें शव सौंपा जा सकता है. फिर भी जेल अधीक्षक को किसी भी तरह के विवाद की भनक लगती है तो वो उनकी मांग को खारिज कर सकता है.
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