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UP Election : हिट होगा या पिट जाएगा? चुनावी मैदान में इन नारों की धूम

कई बार कुछ नारे इतना पॉपुलर और हिट हुए कि उनको सत्ता तक पहुंचाने और हटाने के लिए जिम्मेदार माना गया. इस बार भी घोषणा पत्र और थीम सॉन्ग के बाद चुनाव नारे का असर स्टार प्रचारकों की तरह होता जा रहा है.

Updated on: 03 Feb 2022, 03:05 PM

highlights

  • भारतीय राजनीति के इतिहास में नारे का असर कभी भुलाया नहीं जा सकता
  • रैलियों-सभाओं पर रोक के बाद डिजिटल प्रचार ने इनका महत्व और बढ़ा दिया
  • घोषणा पत्र और थीम सॉन्ग के बाद चुनावी नारे का असर स्टार प्रचारकों की तरह

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के पहले चरण के मतदान के लिए प्रचार अभियान जोरों पर है. राजनीतिक दलों के बीच जमीन और सोशल मीडिया पर घमासान जारी है. 'फिर एक बार, योगी सरकार', 'बाइस में बाइसाइकिल', 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' और 'बहन जी हैं सबकी आस' जैसे कुछ नारे इस चुनावी फिजां में गूंज रहे हैं.  नारों की अहमियत चुनावों में हमेशा रही है, लेकिन कोविड महामारी के कारण रैलियों और सभाओं पर रोक लगने के बाद डिजिटल प्रचार ने इनका महत्व और ज्यादा बढ़ा दिया है.

भारतीय राजनीतिक इतिहास में नारे का असर कभी भुलाया नहीं जा सकता. कई बार कुछ नारे इतना पॉपुलर और हिट हुए कि उनको सत्ता तक पहुंचाने और हटाने के लिए जिम्मेदार माना गया. इस बार भी घोषणा पत्र और थीम सॉन्ग के बाद चुनावी नारे का असर स्टार प्रचारकों की तरह होता जा रहा है. इसलिए चुनाव मैदान में बाकी दांव पेंच के साथ सभी पार्टियां जोरदार नारा गढ़ने में भी दिमाग लगा रही है.

चुनावी राजनीति के शुरुआती मशहूर नारे

आजादी के बाद देश की राजनीति में स्वतंत्रता संग्राम की तरह ही मिशन से भरे नारों की जगह रही. बाद में चुनावी मैदानों में नारे अपने रंग-ढंग बदलने लगे. साल 1950 के दशक में पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू अपने भाषणों के लिए पसंद किए जाते थे. उन्होंने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया. उसके बाद संबंध सुधरने की जगह चीन से रिश्ते और खराब हुए. बात युद्ध तक पहुंची. दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश का सबसे लोकप्रिय नारा 'जय जवान, जय किसान' दिया. पाकिस्तान से युद्ध की वजह से जब देश 1965 में खाद्य पदार्थों का संकट आ गया, तब उन्होंने मनोबल बढ़ाने के लिए यह नारा दिया था. कहा जाता है कि इस नारे ने 1965 के चुनाव में कांग्रेस को जीत भी दिलाई थी.

पक्ष-विपक्ष में व्यक्ति केंद्रित नारे का चलन

साल 1971 के चुनाव प्रचार में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नारा 'गरीबी हटाओ' हिट रहा. खस्ताहाल अर्थव्यवस्था से जूझ रहे देश को उम्मीद दिखी और कांग्रेस की बड़ी जीत हुई. उसके बाद आपातकाल में चापलूसी की मिसाल माने जाने वाला नारा कांग्रेस नेता देव कांत बरुआ ने दिया था, 'इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा '.  कई विपक्षी दलों ने एक जनता मोर्चा का गठन किया. 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ' और 'संपूर्ण क्रांति' जैसे नारों के साथ उसका जवाबी प्रचार किया. 1977 में विपक्ष को एकतरफा जीत मिली. साल 1989 में वीपी सिंह पर गढ़ा गया नारा 'राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है' लोगों की जुबान पर चढ़ा और वह प्रधानमंत्री भी बने.

वाजपेयी और पीएम मोदी पर बनाए गए नारे

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद  लाल बहादुर शास्त्री के नारे में एक और बात जोड़ दी. उन्होंने कहा-'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान.' इससे पहले वाजपेयी की भ्रष्टाचार मुक्त छवि को लेकर बनाए गए नारों के साथ बीजेपी 1996 में सत्ता में आई थी. बीजेपी कार्यकर्ताओं का प्रिय नारा था, 'सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी'. लोकसभा चुनाव 2004 में बीजेपी ने 'इंडिया शाइनिंग' और 'भारत उदय' जैसा नारा दिया जो फ्लॉप साबित हुआ. वहीं, साल 2014 में नरेंद्र मोदी पर केंद्रित लोकप्रिय नारा 'अबकी बार मोदी सरकार' या वाराणसी में 'हर हर मोदी, घर घर मोदी' हिट रहा. 'अच्छे दिन आने वाले हैं' ने लोगों को सत्ता बदलने की कोशिश में भरोसा जताया. लंबे समय बाद किसी एक पार्टी को बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. साल 2019 में 'सबका साथ, सबका विकास' ने लोगों का दिल जीता और पीएम मोदी ने सत्ता में बढ़ी हुई ताकत के साथ वापसी की.

उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध नारों की टाइमलाइन

बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने पिछड़ों और दलितों को साथ लाने के लिए 'ठाकुर बामन बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस-फोर' और 'तिलक तराजू और तलवार, इनको...' नारा दिया था. विवादास्पद नारे के साथ बीएसपी ने बाद में सत्ता भी पाई. साल 2007 में बीएसपी ने ब्राह्मणों को अपने साथ लेने के लिए अपना पुराना नारा पूरी तरह से उलट दिया. 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है' और 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा' जैसे नारे दिए. तब जाकर बीएसपी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला.

'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे' की धूम

वहीं राम मंदिर आंदोलन के दौरान भारतीय जनता पार्टी को 1991 में सत्ता हासिल हुई. उस दौरान विश्व हिंदू परिषद का नारा था 'बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का' और 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे'. अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई. 1993 में सपा-बीएसपी ने मिलकर चुनाव लड़ा और  नारा दिया 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'. गठबंधन सरकार में आई और गेस्ट हाउस कांड के बाद गिर गई. बीएसपी ने फिर नया नारा 'चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर' और बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ 'चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल' का नारा दिया.

पिछले विधानसभा चुनाव का पूरा हाल

मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तब समाजवादी पार्टी के प्रचार के लिए अमिताभ बच्चन ने 'यूपी में है दम, क्योंकि जुर्म यहां है कम' का विज्ञापन किया था. इसके बाद 2012 में अखिलेश यादव के लिए 'अखिलेश का जलवा कायम है, उनका बाप मुलायम है' जैसे नारे सामने आए. अखिलेश मुख्यमंत्री बने. विधानसभा चुनाव 2017 में 'यूपी की मजबूरी है, अखिलेश यादव जरूरी है', 'यूपी के लड़के', 'यूपी को ये साथ पसंद है' और 'काम बोलता है' जैसे नारे पिट गए. भाजपा का नारा 'अबकी बार 300 पार' का नारा सुपरहिट रहा. बीजेपी ने 300 से ज्यादा सीट हासिल कर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बना लिया.

इस बार यूपी चुनाव में सियासी दलों के चर्चित नारे 

भारतीय जनता पार्टी - 

सोच ईमानदार, काम दमदार, फिर एक बार भाजपा सरकार
यूपी+योगी= उपयोगी
साइकल रखो नुमाइश में, बाबा ही रहेंगे बाइस में, फिर ट्राई करना सत्ताइस में
सौ में साठ हमारा है, चालीस में बंटवारा है

समाजवादी पार्टी - 

यूपी का ये जनादेश, आ रहे हैं अखिलेश
बाइस में बाइसकिल
नई हवा है, नई सपा है
बड़ों का हाथ, युवा का साथ
जनता सपा के साथ है, बाइस में बदलाव है

बहुजन समाज पार्टी - 

हर पोलिंग बूथ जिताना है, बीएसपी को सत्ता में लाना है
10 मार्च, सब साफ, बहनजी हैं यूपी की आस
भाईचारा बढ़ाना है, बसपा को लाना है
सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय

कांग्रेस - 

लड़की हूं, लड़ सकती हूं
लड़ेगा, बढ़ेगा, जीतेगा यूपी

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कितना होता है नारों का मनोवैज्ञानिक असर

मनोवैज्ञानिक डॉ. पीके खत्री के मुताबिक नारों के जरिए संक्षेप में काफी कुछ कहा जा सकता है. नारे लोगों को जल्दी आकर्षित करते हैं. साथ ही दिमाग में एक इमेज बना देते हैं. इसी परसेप्शन को डेवलप करना नारे का सबसे बड़ा मकसद होता है. उन्होंने बताया कि एक बार कोई इमेज दिमाग में बन जाती है तो उसे निकालना बहुत मुश्किल होता है. इसके बाद कोई दूसरे कितने भी नारे आएं, पहले की बनी इमेज को निकालने में बहुत वक्त लगता है. चुनाव में कोई दूसरा नारा दिमाग में बैठ पाने से पहले तो चुनाव ही बीत जाता है. यही खास वजह है कि चुनाव के दौरान लोगों के दिमाग में घर करने वाले ऐसे नारे गढ़ने की होड़ होती है.