Economic Survey 2020-21: कोरोना की मार से उबरने में कृषि का सहारा, 3.4 फीसदी रही वृद्धि दर
Economic Survey 2020-21: आर्थिक समीक्षा के अनुसार कृषि क्षेत्र और संबंधित गतिविधियों ने वर्ष 2020-21 (पहला अग्रिम अनुमान) के दौरान स्थिर मूल्यों पर 3.4 फीसदी की वृद्धि दर दर्ज की.
नई दिल्ली :
Economic Survey 2020-21: देश की अर्थव्यवस्था को कोरोना की मार से उबारने में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का सहारा मिला. केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2020-21 में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के समय में भी अपनी उपयोगिता और लचीलेपन को साबित किया है. आर्थिक समीक्षा के अनुसार कृषि क्षेत्र और संबंधित गतिविधियों ने वर्ष 2020-21 (पहला अग्रिम अनुमान) के दौरान स्थिर मूल्यों पर 3.4 फीसदी की वृद्धि दर दर्ज की. राष्ट्रीय आय से संबंधित आंकड़ों के आधार पर आर्थिक समीक्षा के अनुसार 2019-20 में देश के सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में कृषि और संबंधित गतिविधियों का योगदान 17.8 फीसदी रहा.
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वर्ष 2019-20 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारत का कृषि और संबंधित वस्तु निर्यात लगभग 252 हजार करोड़ रुपये का हुआ. कृषि आधारित और संबंधित वस्तुओं के निर्यात में भारत की स्थिति विश्व स्तर पर अग्रणी रही है. इस क्षेत्र में विश्व का लगभग 2.5 प्रतिशत निर्यात भारत से ही किया जाता है. आर्थिक समीक्षा के अनुसार वर्ष 2018-19 के बजट में फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल की वास्तविक लागत का डेढ़ गुना रखने की घोषणा की गई थी. इसी सिद्धांत पर काम करते हुए भारत सरकार द्वारा 2020-21 सत्र में खरीफ और रबी की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई है.
हालिया कृषि सुधारों पर आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि तीन नए कानूनों को छोटे और सीमांत किसानों को अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है. ऐसे कृषकों की संख्या देश के कुल किसानों में लगभग 85 प्रतिशत है और इनकी फसलें एपीएमसी आधारित बाजारों में विक्रय की जाती है. नए कृषि कानूनों के लागू होने से किसानों को बाजार के प्रतिबन्धों से आजादी मिलेगी और कृषि क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत होगी. इससे भारत के किसानों को अधिक लाभ होगा और उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा.
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वर्ष 2019-20 में 13 लाख 50 हजार करोड़ रुपये का निर्धारित किया गया था कृषि ऋण
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, वर्ष 2019-20 में 13 लाख 50 हजार करोड़ रुपये का कृषि ऋण निर्धारित किया गया था, जबकि किसानों को 13,92,469.81 करोड़ रुपये का ऋण प्रदान किया गया जो कि निर्धारित सीमा से काफी अधिक था. 2020-21 में 15 लाख करोड़ रुपये का ऋण प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था. 30 नवंबर, 2020 तक 9,73,517.80 करोड़ रुपये का ऋण किसानों को उपलब्ध कराया गया. आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के एक हिस्से के रूप में कृषि ढांचा विनिर्माण कोष के तहत दिया जाने वाला ऋण कृषि क्षेत्र को और अधिक लाभ पहुंचाएगा.
प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में डेढ़ करोड़ दुग्ध डेयरी उत्पादकों और दुग्ध निर्माता कंपनियों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था. आंकड़ों के अनुसार मध्य जनवरी, 2021 तक कुल 44,673 किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) मछुआरों और मत्स्य पालकों को उपलब्ध कराए गए थे, जबकि इनके अतिरिक्त मछुआरों और मत्स्य पालकों के 4.04 लाख आवेदन बैंकों में कार्ड प्रदान करने की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं. आर्थिक समीक्षा के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के अंतर्गत 12 जनवरी, 2021 तक 90 हजार करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया है. आधार की वजह से किसानों को तेजी से भुगतान हुआ है और दावे की राशि सीधे उनके बैंक खातों में पहुंचाई गई है. मौजूदा कोविड-19 महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के बावजूद 70 लाख किसानों को इस योजना का लाभ मिला है और लाभार्थियों के बैंक खातों में 8741.30 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया है.
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प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत नवंबर 2020 तक प्रतिव्यक्ति 5 किलो खाद्यान्न देने की व्यवस्था के तहत 80.96 करोड़ लाभार्थियों को अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया था. इस दौरान 75000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 200 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा अनाज का वितरण किया गया. आर्थिक समीक्षा के अनुसार 2018-19 तक बीते पांच वर्षों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (एफपीआई) क्षेत्र में औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) पर 9.99 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। 2011-12 से कृषि क्षेत्र में यह बढ़ोतरी 3.12 प्रतिशत रही है और विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर 8.25 प्रतिशत रही है.
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