कांग्रेस को 'दुश्मनों' से ज्यादा 'दोस्तों' का डर... बंगाल-असम साख के चुनाव
कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) शुरुआत से ही मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगा हमलावर रही है. ऐसे में बंगाल-असम के दोस्त राजनीतिक बिसात पर कांग्रेस को भारी पड़ सकते हैं.
highlights
- बंगाल-असम में कांग्रेस ने मिलाया कट्टर मुस्लिम पार्टी से हाथ
- बीजेपी का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड पड़ सकता है कांग्रेस पर भारी
- साख के चुनाव बन गए हैं कांग्रेस के अस्तित्व के लिहाज से
नई दिल्ली:
कांग्रेस (Congress) के लिए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव अस्तित्व का सवाल बन गए हैं. खासकर पश्चिम बंगाल (West Bengal) और असम (Assam) में तो उसके लिए करो या मरो वाली स्थिति है. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि दोनों राज्यों में कांग्रेस ने गठबंधन के जरिये जो दोस्त बनाए हैं, वह राजनीतिक दुश्मनों से ज्यादा भारी पड़ सकते हैं. गौरतलब है कि बंगाल में फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी (Peerjada Abbas Siddiqui) की इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के साथ लेफ्ट-कांग्रेस का साथ है, तो असम में बदरुद्दीन अजमल (Badruddin Ajmal) की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ कांग्रेस ने हाथ मिलाया हुआ है. कांग्रेस ने मुस्लिम वोटों की खातिर यह गठबंधन किया है, जिसको लेकर पार्टी के भीतर ही एक राय नहीं है. गौरतलब है कि जी-23 समूह के आनंद शर्मा (Anand Sharma) पहले ही बंगाल में पीरजादा के साथ गठबंधन को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं. कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) शुरुआत से ही मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगा हमलावर रही है. ऐसे में बंगाल-असम के दोस्त राजनीतिक बिसात पर कांग्रेस को भारी पड़ सकते हैं. वजह बीजेपी का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड है, जो कांग्रेस के लिए संकट बना हुआ है.
असम में अजमल की पार्टी को मिली थीं 13 सीटें
असम में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी से कांग्रेस ने गठबंधन किया है. अजमल की पार्टी मुस्लिमों के हित में काम करने की हिमायत और दावा दोनों करती है. असम की कुल आबादी में तकरीबन साढ़े 3 करोड़ है. इसमें मुसलमानों की आबादी लगभग 34 प्रतिशत यानी एक-तिहाई है. राज्य की 33 सीटों पर मुस्लिम वोट अहम है. 2016 के विधानसभा चुनाव में अजमल की पार्टी ने 13.05 प्रतिशत वोट शेयर के साथ राज्य की 126 में से 13 सीटें जीती थीं. वहीं कांग्रेस ने 30.96 प्रतिशत वोटों के साथ 26 सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी ने कांग्रेस के तकरीबन बराबर 29.51 प्रतिशत वोट के साथ 60 सीटों पर कब्जा जमाया था. हालांकि सियासी विश्लेषक यह अंदाजा भी जता रहे हैं कि अजमल और कांग्रेस के अलायंस से बीजेपी को रिवर्स पोलराइजेशन का मौका मिलेगा.
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अजमल से दोस्ती कांग्रेस को पड़ सकती है महंगी
चुनावी रैली में अमित शाह ने सवाल उठाया था कि घुसपैठिए असम के गौरव गैंडों का शिकार करते थे, लेकिन कांग्रेस ने कभी कुछ नहीं किया, क्योंकि उन्हें वोटबैंक का लालच था. बदरुद्दीन अजमल के साथ बैठकर घुसपैठ नहीं रोक सकते. असम में क्या कांग्रेस को इसका नुकसान हो सकता है. असम में कांग्रेस और बीजेपी की लड़ाई है. बदरुद्दीन के साथ पहले भी कांग्रेस का गठबंधन रहा है. कांग्रेस अजमल का वोट शेयर लेना चाहती है. अगर हिंदू वोट एकजुट हो गया तो मुश्किल हो सकती है. कांग्रेस का तो हिंदू और मुस्लिम दोनों वोट है. इसलिए कांग्रेस को दिक्कत हो जाती है. ज्यादा ध्रुवीकरण हुआ तो नुकसान है. बीजेपी तो वही चाहती है.
बंगाल में कांग्रेस सिफर
बंगाल में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने असदुद्दीन ओवैसी का साथ छोड़कर कांग्रेस-लेफ्ट अलायंस का दामन थामा है. पहले वह ममता बनर्जी के लिए मददगार रह चुके थे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने बंगाल में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ गठबंधन और पार्टी की रणनीति पर सवाल उठाए थे. अगर देखा जाए तो असम और बंगाल में थोड़ा अंतर है. बंगाल में कांग्रेस जीरो हो गई है. पार्टी की छवि बिगड़ गई है. पीरजादा से गठबंधन को लेकर आनंद शर्मा ने भी यही बात बोली. असम में कांग्रेस और बीजेपी की टक्कर है, लेकिन बंगाल में कांग्रेस चौथी पार्टी है. ऐसे में राहुल और प्रियंका ज्यादा मुस्लिम-मुस्लिम का शोर नहीं मचाएंगे, लेकिन पार्टी कोशिश में है कि थोड़ा मुस्लिम वोट मिले, बीजेपी के सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड को भोथरा करने के लिए राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाएंगे. बीजेपी की वजह से ममता भी उसी राह पर हैं. बीजेपी पूरा हिंदू वोट लेना चाहती है. कांग्रेस के लिए दिक्कत है लेकिन उसके पास बंगाल में विकल्प थोड़े ही हैं.
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दीदी के साथ कांग्रेस को भी सता रहा डर
बंगाल में मुस्लिम समुदाय की आबादी करीब 30 प्रतिशत है. लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन में इन्हें साधने की होड़ लगी है. ऊपर से असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम की भी एंट्री हो चुकी है. कभी ममता के बेहद करीबी रहे पीरजादा का इस बार टीएमसी के खिलाफ ताल ठोकना दीदी की मुश्किलें बढ़ाने वाला है. अगर मुस्लिम वोटों में बिखराव हुआ तो सीधा फायदा बीजेपी को पहुंचेगा. मुस्लिम वोटों की होड़ कहीं ध्रुवीकरण को न जन्म दे दे, यह डर ममता के साथ-साथ कांग्रेस को भी है, लेकिन फिलहाल पार्टी के पास कोई खास रणनीति नहीं दिख रही है.
बंगाल में इसलिए अहम हैं मुस्लिम मतदाता
पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में कई सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं. 46 विधानसभा सीटें तो ऐसी हैं जहां 50 प्रतिशत से भी ज्यादा मुसलमान हैं. 16 सीटें ऐसी हैं जहां इनकी तादाद 40 से 50 प्रतिशत के बीच है. 33 सीटों पर मुस्लिम आबादी 30 से 40 प्रतिशत और 50 सीटों पर 20 से 30 प्रतिशत है. इस तरह करीब 145 सीटों पर मुस्लिम वोटर जीत और हार तय करने में निर्णायक भूमिका में हैं. मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुस्लिम आबादी हिंदुओं से ज्यादा है. दक्षिण-24 परगना, नादिया और बीरभूम जिले में भी इनकी अच्छी-खासी आबादी है.
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कांग्रेस के नुकसान ही ज्यादा है
जाहिर है कांग्रेस की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है, लेकिन हाल के चुनावों में बार-बार यह देखने को मिला है कि कांग्रेस को फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ है. उत्तर प्रदेश में रिवर्स पोलराइजेशन का असर साफ दिखा था. यहां समाजवादी पार्टी जैसी मजबूत पार्टी के साथ अलायंस के बाद भी कांग्रेस सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं अखिलेश यादव को भी 403 में से महज 47 सीटें हासिल हुई थीं. मालदा रैली के जरिए योगी आदित्यनाथ ने साफ कर दिया है कि बंगाल में भी यूपी चुनाव वाली टोन सेट रहेगी. ऐसे में कांग्रेस को दुश्मनों से ज्यादा क्यों दोस्तों से डर है, समझना मुश्किल नहीं. गृह मंत्री अमित शाह ने तो अपने हालिया असम दौरे पर सीधे-सीधे कांग्रेस और अजमल के गठबंधन पर तीखे बाण चलाए थे.
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