Haunted Places:मसूरी की पहाड़ियों से सुनाई देती है डरावनी चीखें, जानिए इस अनसुनी कहानी का पूरा सच
Haunted Places: सुंदर वादियां और बर्फीले पहाड़ों के अलावा मसूरी का ये सच आज भी लोगों को सर से पैर तक डरा के रख देता है...
नई दिल्ली :
Haunted Places: मसूरी को पहाड़ों की रानी के नाम से भी जाना जाता है. यहां के खूबसूरत पहाड़ और वादियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ही लेता है. क्या आप जानतें है कि ये शहर अपनी खूबसूरती में ऐसे अतीत को छुपाए हुए है जो रोमांच-चाहने वाले लोगों को इस शहर का दौरा करने के लिए मजबूर कर सकता है. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मसूरी भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है. लेकिन आज हम यहां पहाड़ियों और घाटियों की सुंदरता के बारे में बात करने के लिए नहीं, बल्कि लंबी देहर माइंस की कहानी के बारे में बात कर रहे हैं, जिसे मसूरी के सबसे भूतिया स्थानों में से एक माना जाता है.
क्या हुआ था लम्बी देहर माइंस में?
लांबी देहर माइंस मसूरी मॉल रोड से कुछ 10 किलोमीटर की दूरी पर है. इस जगह पर पहले चूना और पत्थर का खदान था जिसमें कई मजदूर काम करते थे. ये कहानी 1990 के दशक की शुरुआत में हुई एक दुखद घटना पर आधारित है. लांबी देहर माइंस में काम करने की स्थितियां उतनी अच्छी नहीं थीं. एक दिन, यहां दुर्भाग्यवश भयानक घटना हुई जिसमें 50 हजार मजदूर की दर्दनाक तरीके से मौत हो गई थी. तबसे ये जगह सिर्फ मसूरी ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की खौफनाक जगहों में से एक है.
ऐसा कहा जाता है कि असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों, उचित वेंटिलेशन की कमी और अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के कारण खदानें धंस गईं, जिस वजह से खदान कर्मचारी की दर्दनाक मौत हुई . स्थानीय लोगों का कहना है कि , उन मजदूरों की दर्दनाक चीखें आज भी सुनाई देती हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां स्थानीय लोगों और पर्यटकों कहना है कि उन्हें यहां कई बार भूतिया दृश्य, अस्पष्ट रोशनी और डरावनी आवाजें सुनायी और दिखायी देती हैं.
आत्माओं का आज भी है वास:
आज के समय लांबी देहर माइंस में डरावनी चीखों का गूंजना , साए का दिखना , अचानक हंसने रोने की आवाजें आना, किसी का मदद मांगना और अपने आसपास किसी की मौजूदगी का एहसास होना जैसी चीजें अक्सर सुनने को मिलती हैं.स्थानीय लोगों से लेकर पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स तक कई बार इसका जिक्र कर चुके हैं और ये भी कहा है कि शाम होने के बाद यहां कोई आता जाता नहीं है. 1990 के बाद ये खदान कभी नहीं खुली और आज भी वो सारे कर्मचारी अपनी रुह के साथ यहां भटकते हैं.
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