मधुमिता शुक्ला हत्याकांड: जिसने यूपी की राजनीति में भूचाल ला दिया था!
अपने केस को लेकर निधि शुक्ला यूपी के बड़े-बड़े अफसरों से मिल रही थीं. मीडिया में इंटरव्यू दे रही थीं और विपक्षी पार्टी के नेताओं से भी मुलाकात कर रही थीं. यूपी सरकार ने केस सीबीआई को सौंपने की मंजूरी कर दी.
नई दिल्ली:
9 मई 2003. लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी का एक घर. यहां रहती थीं 24 साल की कवियित्री मधुमिता शुक्ला. वहां मधुमिता का एक नाबालिग हेल्पर भी था जिसकी उम्र 12-13 साल थी. दोपहर में दो लोग वहां पहुंचे. बहाना बनाकर घर के भीतर आए. मधुमिता ने हेल्पर को चाय बनाने को कहा. जब हेल्पर रसोई में था तो एक शख्स ने रसोई का दरवाजा बंद कर दिया. इसी दौरान उसने गोली चलने की आवाज सुनी. वो खिड़की के सहारे जैसे-तैसे बाहर निकला. देखा कि मधुमिता की लाश कमरे में फर्श पर पड़ी है. उसने मधुमिता की बहन निधि शुक्ला को फोन किया. थोड़ी देर में पुलिस भी मौके पर पहुंच गई. उस वक्त किसी को भी ये अंदाजा नहीं था कि ये कत्ल यूपी में वो स्कैंडल खड़ा करने वाला है, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं कि थी.
निधि ने कत्ल कराने का आरोप अमरमणि त्रिपाठी पर लगाया. सूबे में बसपा की सरकार थी और अमरमणि इस सरकार के कद्दावर मंत्री थे. हत्या की खबर ने सत्ता के गलियारों में हडकंप मच गया. आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो गया. इधर पुलिस ने मधुमिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया. एंबुलेंस लखीमपुर के लिए निकल गई, लेकिन बीच रास्ते से ही एंबुलेंस को वापस लखनऊ लौटना पड़ा. दरअसल एक पुलिस अधिकारी को मेडिकल ऑफिसर का एक नोट दिखाई दिया. यही वो पल था जिसने इस केस को इसके अंजाम तक पहुंचाया था. दरअसल इस नोट में मधुमिता की प्रेगनेंसी का जिक्र था. पुलिस के कहने पर भ्रूण को संरक्षित कर लिया गया. बाद में DNA जांच हुई. जिसमें DNA अमरमणि त्रिपाठी से मैच हो गया था.
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मधुमिता के हेल्पर ने खोला था पूरा राज
मधुमिता के हेल्पर ने पुलिस को जो बयान दिए थे उसमें अमरमणि का भी जिक्र था. अब पुलिस ने हालात की गंभीरता को देखते हुए मधुमिता के हेल्पर देशराज को भी सुरक्षित जगह पहुंचा दिया. इस बीच जांच सीबीसीआईडी के पास पहुंच गई. निधि के बयान मीडिया की सुर्खियां बन रहे थे. वो सीधे तौर पर अमरमणि पर निशाना साध रही थी. इधर सरकार भी इस मामले में अमरमणि से दूरी बनाने लगी थी,हालांकि इससे पहले सीबीसीआईडी के महानिदेशक महेंद्र लालका को निलंबित कर दिया गया था.
अपने केस को लेकर निधि शुक्ला यूपी के बड़े-बड़े अफसरों से मिल रही थीं. मीडिया में इंटरव्यू दे रही थीं और विपक्षी पार्टी के नेताओं से भी मुलाकात कर रही थीं. निधि की पैरवी और मीडिया में आ रही खबरों से सरकार पर दवाब बना और यूपी सरकार ने केस सीबीआई को सौंपने की मंजूरी कर दी. सीबीआई के पाले में केस के पहुंचते ही इसमें गति आ गई. सितंबर 2003 में अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया गया. सीबीआई ने जांच में पाया था कि अमरमणि की पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को अपने पति और मधुमिता के बीच रिश्तों की भनक हो गई थी और इससे वो खुश नहीं थीं. सीबीआई ने माना कि हत्या की सूत्रधार मधुमणि ही थीं.
2007 में अमरमणि त्रिपाठी ने जेल से लड़ा था चुनाव
निधि ने निष्पक्ष जांच के लिए केस को यूपी से बाहर ट्रांसफर करने की मांग की. 2005 में केस उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया गया. 2007 में जेल से ही अमरमणि ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. महाराजगंज सीट से 20 हजार वोटों से जीत हासिल की. इधर केस को देहरादून की फास्टट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. 24 अक्तूबर 2007 में अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को उम्रकैद की सजा सुनाई. बाद में नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रकाश पांडे नाम के शूटर को भी उम्रकैद की सजा सुनाई.
इस पूरे मामले में मधुमिता के नाबालिग हेल्पर देशराज की गवाही, DNA का मैच होना और निधि शुक्ला की पैरवी ये तीन बड़े फैक्टर रहे. सीबीआई ने केस के सारे तार जोड़े और आखिरकार यूपी के कद्दावर नेता, सरकार में मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को जेल जाना ही पड़ा. अब अमरमणि की रिहाई के आदेश की खबर सामने आई है और निधि शुक्ला एक बार फिर आगे की लड़ाई के लिए तैयार हैं.
वरुण कुमार की रिपोर्ट
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