क्या है Ram Setu मामला, क्यों तेज हो रही राष्ट्रीय धरोहर बनाने की मांग
रामसेतु तमिलनाडु के दक्षिण पूर्वी तट पर पंबन द्वीप और मन्नार द्वीप के बीच चुना पत्थर की बनी एक उथली शृंखला है. इसे एडम्स ब्रिज या आदम पुल भी कहते हैं. इस पुल की लंबाई करीब 48 किलोमीटर है. मान्यता है कि यह रामायणकालीन पुल है.
highlights
- कई रिसर्च में इसे हजारों साल पुराना और मानवनिर्मित पुल माना गया है
- रामायण, अग्नि पुराण, वायु पुराण, ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण आदि में वर्णन
- रामसेतु को प्रभु श्रीराम और माता सीता के प्रेम का प्रतीक माना जाता है
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लिस्टेड रामसेतु (Ram Setu) मामले पर पूरे देश और दुनिया की नजर है. भारतीय जनता पार्टी के चर्चित नेता और राज्यसभा सांसद (Member of Rajya sabha) सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) ने राम सेतु की लव स्टोरी को ताजमहल से भी पुराना बताते हुए उसके जीर्णोद्धार की मांग की है. स्वामी ने अपनी याचिका में कोर्ट से रामसेतु को राष्ट्रीय विरासत का स्मारक घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमणा, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की एक बेंच ने सुब्रमण्यम स्वामी की दलीलों पर गौर किया. बेंच ने माना कि रामसेतु महत्वपूर्ण मामला है और इसे सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध किया जाना चाहिए. आइए, जानते हैं कि रामसेतु का पूरा मामला क्या है? सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे राष्ट्रीय धरोहर बनाने की मांग क्यों की है. साथ ही इस रामसेतु को लेकर क्या विवाद चल रहा था.
रामसेतु क्या है और कहां है
रामसेतु तमिलनाडु के दक्षिण पूर्वी तट पर पंबन द्वीप और मन्नार द्वीप के बीच चुना पत्थर की बनी एक उथली शृंखला है. इसे एडम्स ब्रिज या आदम पुल भी कहते हैं. इस पुल की लंबाई करीब 48 किलोमीटर है. मान्यता है कि यह रामायणकालीन पुल है. प्रभु श्रीराम की वानर सेना के इंजीनियरों नल-नील ने रामेश्वरम से लंका तक पहुंचने के लिए इसे बनाया था. कई आधुनिक शोधों में भी इसे हजारों साल पुराना और मानवनिर्मित पुल माना गया है. इसे प्रभु श्रीराम और माता सीता के प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है. रामायण के अलावा अग्नि पुराण, वायु पुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में आदि ग्रंथों में भी इसका वर्णन किया गया है.
रामसेतु विवाद क्या है
कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन (UPA) के पहले शासनकाल में साल 2005 में इस प्रकृति निर्मित पुल रूपी चट्टानों की शृंखला को तोड़कर इसके बीच से मालवाहक जहाजों के लिए रास्ता बनाने का बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसके लिए सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट (SSCP) की नींव रखी थी. इसको लेकर विपक्षी दलों खासकर भारतीय जनता पार्टी समेत विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस जैसे संगठनों ने कोर्ट, संसद और सड़क पर संघर्ष शुरू कर दिया था.
रामसेतु तोड़े जाने के खिलाफ आंदोलन
रामायण कालीन ऐतिहासिक स्थानों में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में एक रामसेतु को तोड़े जाने की परियोजना के खिलाफ संघर्षों के बीच सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के एक हलफनामे ने काफी किरकिरी की थी. साल 2007 में कांग्रेसनीत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर हलफनामा देकर कहा था कि राम, सीता, हनुमान और वाल्मीकि काल्पनिक किरदार हैं. उसमें लिखा था कि रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं है. इसे लेकर कांग्रेस आज भी हिंदू संगठनों के निशाने पर रहती है.
सुप्रीम कोर्ट ने रोकी सेतुसमुद्रम परियोजना
देश के एक समुद्री छोर पर अरब सागर से दूसरे हिस्से में बंगाल की खाड़ी तक जाने का 400 समुद्री मील लंबा सफर छोटा और सस्ता करने के नाम पर सेतुसमुद्रम नाम से महत्वाकांक्षी परियोजना लाई गई थी. इसे तोड़कर रास्ता बनाने का प्रस्ताव पहली बार 1860 में एक अंग्रेज इंजीनियर ने रखा था. फिलहाल समुद्री जहाजों को इसके लिए श्रीलंका का चक्कर लगाकर जाना पड़ता है. इस नई परियोजना से 36 घंटे के समय और ईंधन की बचत होने का दावा किया गया था.
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पाक जलडमरुमध्य से मनार की खाड़ी तक
इसके तहत 44.9 नॉटिकल मील (83 किमी) लम्बा एक गहरा जल मार्ग खोदा जाना था. उसके द्वारा पाक जलडमरुमध्य को मनार की खाड़ी से जोड़ दिया जाने की बात कही जा रही थी. इस परियोजना को अमल में लाने के लिए रामसेतु को तोड़ने की योजना थी. इस परियोजना का राम भक्तों के साथ ही पर्यावरणविदों ने भी विरोध किया था. सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस परियोजना पर बैन लगा दिया था.
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