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Karnataka Elections: लिंगायत-वोक्कालिगा तो हैं ही, मुस्लिम वोटर्स भी कम नहीं प्रभाव में... जानें समीकरण

कर्नाटक में मुसलमानों की आबादी 13 प्रतिशत से अधिक है. राज्य के 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 40 पर हार-जीत के लिहाज से मुस्लिम समुदाय महत्वपूर्ण है. 2018 के चुनावों में कांग्रेस और जद (एस) ने 17 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

Updated on: 21 Apr 2023, 12:46 PM

highlights

  • राज्य के 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 40 पर हार-जीत के लिहाज से मुस्लिम समुदाय महत्वपूर्ण
  • अल्पसंख्यको का वोट कम से कम विधानसभा चुनाव में तो सीधे कांग्रेस पार्टी को जाता है
  • कांग्रेस और जेडी(एस) को डर है कि एसडीपीआई जैसे दल अल्पसंख्यक वोटों में बिखराव लाएंगे

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नई दिल्ली:

कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) नजदीक हैं और राजनीतिक पार्टियां इस दक्षिणी राज्य में मतदाताओं (Voters) को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार (Election Campaign) से लेकर राजनीतिक दांवपेंच और लोकप्रिय उम्मीदवारों के चयन तक चुनावी मौसम हर गुजरते दिन के साथ और तेज होता जा रहा है. खासकर अब जब नामांकन दाखिल करने की तारीख भी बीत चुकी है, तो हर उम्मीदवार और राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंके पड़ा है. गौरतलब है कि कर्नाटक में 10 मई को एक ही चरण में मतदान होना है, जिसकी मतगणना 13 मई को होगी. कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटें हैं और इस लिहाज से यह सातवीं सबसे बड़ी विधानसभा है. भले ही राजनीतिक दल तीन प्रमुख समुदायों क्रमशः लिंगायत (Lingayat), कुरुबा और वोक्कालिगा (Vokkaligas) का समर्थन पाने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं, लेकिन मुस्लिम (Muslims) मतदाताओं के महत्व को भी नजरअंदाज करना कठिन होगा. इस चुनाव में उनके वोट महत्वपूर्ण हो सकते हैं. जानते हैं कि मुस्लिम वोट कर्नाटक चुनाव (Karnataka Elections) को कैसे प्रभावित कर सकते हैं...

कर्नाटक में मुस्लिम आबादी
कर्नाटक में मुसलमानों की आबादी 13 प्रतिशत से अधिक है. राज्य के 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 40 पर हार-जीत के लिहाज से मुस्लिम समुदाय महत्वपूर्ण है. 2018 के चुनावों में कांग्रेस और जद (एस) ने 17 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. हालांकि भाजपा ने 2018 में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया. कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 80 सीटें जीतीं, तो भाजपा को 104 सीटें मिलीं. जद (एस) को 37 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. यूं तो मुसलमान कर्नाटक के सभी जिलों में पाए जाते हैं, लेकिन उत्तरी कर्नाटक विशेष रूप से गुलबर्ग, बीदर, बीजापुर, रायचूर और धारवाड़ में उनकी मजबूत उपस्थिति है. कलबुर्गी उत्तर, पुलकेशीनगर, शिवाजीनगर, जयनगर और पद्मनाभनगर तुमकुर, चामराजपेट राज्य के अन्य मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं.

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मुस्लिम वोटर्स और भाजपा बनाम कांग्रेस
आम धारणा यह है कि बीजेपी मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद नहीं है. माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय का वोट कम से कम विधानसभा चुनाव में तो सीधे कांग्रेस पार्टी को जाता है. इस बार भी कांग्रेस और जद (एस) दोनों को भरोसा है कि उच्च मुस्लिम आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों में उनका पलड़ा भारी रहेगा. हालांकि बीजेपी नेताओं का मानना ​​है कि 'धर्मनिरपेक्ष' पार्टियों के पक्ष में अल्पसंख्यकों का ध्रुवीकरण जमीनी सच्चाई से अधिक एक मिथक भर है. कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसके सदन में आठ विधायकों के साथ अल्पसंख्यक प्रतिनिधि हैं. इनमें सात मुस्लिम और एक ईसाई शामिल हैं. हालांकि भाजपा 'पसमांदा' मुसलमानों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए काम कर रही है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में 'पसमांदा' का अक्सर उल्लेख मिलता है. पार्टी मंचों के साथ-साथ सरकारी कार्यक्रमों में भी बताया जाता है कि कैसे मोदी सरकार ने बिना किसी भेदभाव के वंचित तबकों के लिए काम किया है.

मुस्लिम वोटों का बिखराव कुछ दलों के लिए बड़ी चिंता
कांग्रेस और जद (एस) चिंतित हैं कि मुस्लिम समर्थक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) अल्पसंख्यक वोटों को विभाजित करेगी, जो अंततः सत्तारूढ़ भाजपा को सीधे तौर पर फायदा पहुंचाएगा. एसडीपीआई इस बार 100 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर बड़े पैमाने पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की योजना पर चल रही है. स्थानीय निकायों में एसडीपीआई की उपस्थिति तो है ही. अब वह विधानसभा में भी अपना खाता खोलना चाहती है. गौरतलब है कि एसडीपीआई के मंगलुरु महानगर पालिका में दो सदस्य, शिवमोग्गा महानगर पालिके और बीबीएमपी में एक-एक सदस्य हैं. इसके अलावा मदिकेरी, उल्लाल चामराजनगर, बंटवाल, कौपू और शाहपुर की नगर पालिका परिषदों में भी उसके सदस्य हैं. एसडीपीआई ने 65 सीटों की पहचान की है जहां मुस्लिम मतदाता 20 फीसद से अधिक हैं. लगभग 45 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक वोट 10 से 20 प्रतिशत हैं. 2018 विधानसभा चुनावों में लगभग 50 सीटों पर जीत का अंतर 5,000 वोटों से कम रहा था. ऐसे में कांग्रेस और जेडी (एस) को बड़ा डर है कि एसडीपीआई जैसे दल अल्पसंख्यक वोटों में बिखराव ही लाएंगे.

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मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे
ओबीसी श्रेणी में मुस्लिम समुदाय के लिए 4 फीसदी कोटा खत्म करना और राजनीतिक रूप से दो सबसे शक्तिशाली समुदायों लिंगायत और वोक्कालिगा के लिए इसे बढ़ाना आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनावों में प्रमुख मुद्दों में से एक है. सरकार ने वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदायों के बीच समान रूप से चार प्रतिशत की मात्रा को विभाजित करने का निर्णय लिया है. यह बढ़ा आरक्षण नौकरी के अवसरों और शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश दोनों पर लागू होगा, जिसमें प्रत्येक समुदाय का दो-दो प्रतिशत का हिस्सा रहेगा. जाहिर है सरकार के इस निर्णय को दोनों समुदायों ने खूब सराहा, जिनका महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव है. मुस्लिम समुदाय को सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी में शामिल किया गया है, जिसमें 10 प्रतिशत आबादी शामिल है. विपक्ष ने सरकार के इस कदम की आलोचना कर इसे चुनावी मसला बनाने में पूरी ताकत लगा दी है. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का मानना है यह निर्णय अत्यधिक अस्थिर और त्रुटिपूर्ण है. कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आने पर कर्नाटक में मुसलमानों के लिए समाप्त किए गए 4 प्रतिशत आरक्षण को बहाल करने का वादा किया है. पिछले साल कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध लगने से एक बड़े पैमाने पर राजनीतिक विवाद शुरू हुआ था. राज्य सरकार ने स्कूलों और प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक सर्कुलर जारी किया था. उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा और बाद में इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया और दो न्यायाधीशों की पीठ ने अपना खंडित फैसला सुनाया. ऐसे में भाजपा का मानना ​​है कि हिजाब विवाद कोई मुद्दा नहीं होगा. विश्लेषकों का मानना ​​है कि विपक्ष इस विवाद को भुनाने की कोशिश करेगा. अब देखने वाली बात यह होगी कि कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय किसी एक पार्टी को एकमुश्त समर्थन करेगा या उसके वोट विभाजित होंगे, इसका पता तो 13 मई की मतगणना के बाद ही चल सकेगा.