Rafale Deal: केंद्र ने ऑफसेट क्लॉज में देरी पर लगाया फ्रांसीसी कंपनी पर जुर्माना
दोनों देशों के बीच हुई कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 50 फीसदी ऑफसेट के तहत वापस आना था. साथ ही दसॉल्ट एविएशन और उसकी सहयोगी कंपनियों सैफरन और थेल्स को सात वर्षों के समय में इसे पूरा करना था.
highlights
- ऑफसेट सौदे के तहत सौदे का 30 फीसदी हिस्सा भारत में खर्चना जरूरी
- फ्रांसीसी कंपनी ने तय समय-सीमा में नहीं की सौदे की तय रकम खर्च
- इसके साथ ही भारतीय कंपनियों पर दक्ष नहीं होने का आरोप भी लगाया
नई दिल्ली:
जिस राफेल डील को लेकर देश में सियासी तूफान मचा अब उसी में एक नाटकीय पेंच आ गया है. मोदी सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी के वादे पूरे नहीं करने पर कंपनी पर भारी जुर्माना लगा दिया है. गौरतलब है कि भारत ने सितंबर 2016 में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा किया था. इस सौदे के तहत ऑफसेट पॉलिसी भी एक बड़ा क्लॉज था. इसके तहत फ्रांसीसी विमान निर्माता कंपनी दसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए को भारतीय रक्षा क्षेत्र में अनुबंध राशि का 30 फीसदी निवेश करने का पेंच भी थी. अब इसी के पूरा नहीं होने पर मोदी सरकार ने यह कदम उठाया है.
2016 में हुआ था राफेल समझौता
भारत ने फ्रांसीसी कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 2016 में 7.8 अरब यूरो यानी लगभग 8.8 अरब डॉलर का समझौता किया था. इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच हुई कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 50 फीसदी ऑफसेट के तहत वापस आना था. साथ ही दसॉल्ट एविएशन और उसकी सहयोगी कंपनियों सैफरन और थेल्स को सात वर्षों के समय में इसे पूरा करना था. ऑफसेट पॉलिसी के तहत जब भारत किसी भी देशी या विदेशी कंपनी से रक्षा उपकरणों की खरीद करता है, तो कंपनी को उसकी तकनीक के बारे में भी जानकारी देनी होती है. इसका मकसद यही है कि भारत आगे चलकर रक्षा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा दे सके. साथ ही विदेशी निवेश भी हासिल हो.
फ्रांसीसी कंपनी ने कहा दक्ष भारतीय कंपनी नहीं मिली
भारत में एक वरिष्ठ रक्षा वैज्ञानिक ने कहा कि डीआरडीओ पिछले काफी समय से फ्रांसीसी कंपनी से स्टेल्थ क्षमताओं, रडार, एयरोस्पेस इंजन, मिसाइलों के लिए थ्रस्ट वेक्टरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए मटेरियल से जुड़ी तकनीकों की मांग कर रहा है. रक्षा मंत्रालय की ऑफसेट पॉलिसी के तहत किसी भी रक्षा उपकरण निर्माता कंपनी को भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से संबंधित सामान या सेवाएं खरीदकर, भारत के रक्षा उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करना होता है. मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक फ्रांसीसी कंपनी का कहना है कि जिन भारतीय कंपनियों को तकनीक का ट्रांसफर होना था, वह मूल दक्षताओं को पूरा नहीं करती हैं.
ऑफसेट पॉलिसी का यह है क्लॉज
रक्षा उपकरणों की खरीद में ऑफसेट पॉलिसी काफी जरूरी है. इसके तहत अगर भारत किसी भी देशी या विदेशी कंपनी के साथ 300 करोड़ रुपये से अधिक का सौदा करता है तो न्यूनतम 30 फीसदी हिस्सा भारत में खर्च करना जरूरी है. ये खर्च उपकरणों की खरीद या तकनीक के ट्रांसफर पर भी किए जा सकते हैं. राफेल के साथ भी यही ऑफसेट क्लाज था, जो समय पर पूरा नहीं होने से मोदी सरकार ने जुर्माने का यह कदम उठाया है. गौरतलब है कि सीएजी रिपोर्ट ने इस तथ्य की आलोचना की थी कि राफेल सौदे में ऑफसेट का अधिकतम निर्वहन एमबीडीए द्वारा 57 फीसदी और दसॉल्ट द्वारा फीसदी केवल सातवें वर्ष (2023) के लिए निर्धारित है.
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