अर्धसैनिकों बलों की विधवाओं को पेंशन देने पर हो विचार: संसदीय समिति
अर्धसैनिक बलों को अपने कर्तव्य के पालन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. उन्हें पुरानी पेंशन योजना से भी बाहर रखा गया है और इस प्रकार सक्रिय ड्यूटी पर मृत्यु या विकलांगता पर पारिवारिक पेंशनभोगी को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए पर्याप्त पेंशन नहीं मिलती है. ऐसे मामलों में सरकार को उदार दृष्टिकोण रखना चाहिए और रक्षा कर्मियों की विधवाओं के समान ही पूर्ण उदारीकृत पेंशन प्राप्त करने के लिए अर्धसैनिक कर्मियों की विधवाओं के मामले पर विचार करना चाहिए. यह सिफारिश राज्यसभा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली स्थायी संसदीय समिति ने बुधवार को संसद में दी है.
नई दिल्ली:
अर्धसैनिक बलों को अपने कर्तव्य के पालन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. उन्हें पुरानी पेंशन योजना से भी बाहर रखा गया है और इस प्रकार सक्रिय ड्यूटी पर मृत्यु या विकलांगता पर पारिवारिक पेंशनभोगी को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए पर्याप्त पेंशन नहीं मिलती है. ऐसे मामलों में सरकार को उदार दृष्टिकोण रखना चाहिए और रक्षा कर्मियों की विधवाओं के समान ही पूर्ण उदारीकृत पेंशन प्राप्त करने के लिए अर्धसैनिक कर्मियों की विधवाओं के मामले पर विचार करना चाहिए. यह सिफारिश राज्यसभा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली स्थायी संसदीय समिति ने बुधवार को संसद में दी है.
स्थायी संसदीय समिति ने अपनी सिफारिशों में पेंशन भोगियों की शिकायतों के निपटान के लिए पुरस्कार और दण्ड प्रणाली की बात कही है. स्थायी संसदीय समिति के मुताबिक कुटुम्ब पारिवारिक पेंशनभोगियों को समय पर पेंशन पाने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. एक तरफ उन्हें एकलौते कमाने वाले के नुकसान से जूझना पड़ रहा है और दूसरी तरफ उन्हें अपनी पेंशन शुरू करने के लिए सभी दस्तावेज प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है . तदनुसार, विभागों, संगठनों को परिवार पेंशन मामलों से निपटने के लिए संवेदनशील हो कर आगे आना चाहिए.
राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति ने 8 दिसंबर, को संसद के दोनों सदनों में पेंशन संबंधित शिकायतें, शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली के संबंध में समिति के एक सौ दसवें प्रतिवेदन पर की गई कार्रवाई प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.
संसद की स्थायी समिति ने पेंशन भोगियों की शिकायतों का निपटान करते समय पुरस्कार और दण्ड प्रणाली बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है. दरअसल पेंशन भोगियों में एक प्रवृत्ति रही है कि उनकी शिकायतों को वह प्राथमिकता नहीं दी जाती है जिसके वे हकदार हैं. संसदीय समिति के मुताबिक पहले तो शिकायतों का समय पर समाधान नहीं किया जाता है और उनके निवारण की गुणवत्ता भी चिंता का विषय है.
संसदीय समिति का मानना है कि पेंशनभोगियों की इन शिकायतों से निपटने के लिए इनाम और दंड की व्यवस्था की आवश्यकता है. अन्यथा डीपीपीडब्ल्यू द्वारा जारी मार्गनिर्देश एवं अनुदेश केवल कागजों पर ही रहेंगे और व्यक्ति व संगठन दण्ड से मुक्ति के साथ उनका उल्लंघन करेंगे. नागरिकों की शिकायतों के प्रति जागरूक करने के लिए उन्हें सही प्रशिक्षण प्रदान करके शिकायतों से निपटने वाले अधिकारियों को संवेदनशील बनाने की भी आवश्यकता है.
संसदीय समिति ने कहा है कि गलती करने वाले अधिकारियों पर जुमार्ना लगाकर या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करके दंडित करने के लिए एक तंत्र तैयार करना चाहिए. इसे संबंधित संगठन पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
संसदीय समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि इसके अलावा, अपीलीय प्राधिकारी उपयुक्त वरिष्ठता का होना चाहिए और उसे उन अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश करने का भी अधिकार होना चाहिए जो बिना किसी गुणात्मक कार्रवाई के विलंबित कार्रवाई या शिकायतों के सारांश निपटान के लिए आदतन उत्तरदायी हैं.
संसदीय समिति का मानना है कि पेंशनभोगियों की शिकायतों के निपटान में पेंशन अदालतों की प्रभावशीलता को ध्यान में रखते हुए, इसे संचालित करने की आवृत्ति बढ़ाई जानी चाहिए. विभाग को नियमित रूप से और ज्यादा बार पेंशन अदालतें आयोजित करने की व्यवहार्यता का पता लगाना चाहिए. इसके अलावा, कोविड काल के दौरान प्राप्त अनुभव के अनुसार वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पेंशन अदालतें आयोजित करने की प्रथा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
संसदीय समिति के मुताबिक विभिन्न न्यायालयों, अधिकरणों में पेंशन मामलों से संबंधित लगभग 310 मामले लंबित हैं. यह बहुत निराशाजनक है कि पेंशनभोगी, जो वरिष्ठ नागरिक भी होते हैं, को सेवानिवृत्ति के बाद की अपनी पात्रता का दावा करने के लिए मुकदमे का सहारा लेना पड़ता है. मुकदमेबाजी कहीं न कहीं शिकायत निवारण तंत्र की विफलता की ओर इशारा करती है. मुकदमेबाजी एक लंबी खींचने वाली और महंगी प्रक्रिया है और पेंशनभोगियों की वृद्धावस्था को देखते हुए, समिति सिफारिश करती है कि डीपीपीडब्ल्यू को मध्यस्थता आदि जैसे एडीआर तंत्र के माध्यम से पेंशनभोगियों और सरकार के बीच विवादों को हल करने की व्यवहार्यता का पता लगाना चाहिए, जो कि लागत प्रभावी और विवाद समाधान की कुशल प्रणाली है. विभाग, विधि कार्य मामलों के विभाग से परामर्श कर सकता है और पूर्व-मुकदमा मध्यस्थता को संस्थागत बनाने का प्रयास कर सकता है.
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