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जानिए क्यों है भिरहा की होली फेमस, राष्ट्रकवि दिनकर ने बताया था बिहार का वृंदावन

आपने वृंदावन की होली के बारे में तो बहुत सुना होगा या देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी बिहार के समस्तीपुर की होली के बारे में सुना है.

Updated on: 25 Mar 2024, 08:00 AM

highlights

  • बिहार में यहां की फेमस है होली
  • राष्ट्रकवि दिनकर ने बताया था बिहार का वृंदावन
  • तीन दिन के कार्यक्रम के लिए तीन महीने तक तैयारी

Samastipur:

आपने वृंदावन की होली के बारे में तो बहुत सुना होगा या देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी बिहार के समस्तीपुर की होली के बारे में सुना है. समस्तीपुर जिले के अंतर्गत रोसड़ा से 5 किलोमीटर दूर स्थित भिरहा गांव में तीन दिनों तक होली मनाई जाती है. यह होली पूरे मिथिलांचल के सबसे बड़े त्यौहार के रूप में जाना जाता है. इस होली को देखने के लिए दूर-दूर से लोग हजारों की संख्या में आते हैं. यहां पर धुलंडी के दिन रंग की जगह फूलों से होली खेली जाती है. इतना ही नहीं राष्ट्रकवि दिनकर ने इसे बिहार का वृंदावन कहा था. होली के अवसर पर यहां भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. गांव के लोगों की मानें तो इस होली के त्योहार में करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं. 

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बिहार का वृंदावन

भिरहा गांव में ब्रज की तर्ज पर होली मनाने की परंपरा है. इस गांव के कुल तीन टोला है. एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में सजावट के साथ-साथ कई इंतजाम किए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि 1835 में गांव के बुजुर्ग होली देखने के लिए वृदांवन गए थे, जिसके बाद वहां से लौटने के बाद उन बुजुर्गों ने वृदांवन की तर्ज पर यहां होली का उत्सव मनाना शुरू कर दिया. पहले तो करीब 105 साल तक भिरहा गांव में एक साथ होली मनाया गया, लेकिन 1941 में घनी आबादी को देखते हुए इस गांव को तीन टोले में बांट दिया गया. जिसके बाद तीनों टोला अलग-अलग होली मनाने लगा. 

तीन दिन के कार्यक्रम के लिए तीन महीने तक तैयारी

इस गांव की आबादी करीब 20 हजार है. होली से तीन महीने पहले से ही यहां तैयारी शुरू हो जाती है. होली समारोह में देशभर से प्रसिद्ध बैंड पार्टी, डांसर व गायक आमंत्रित किए जाते हैं. इस होली कार्यक्रम के पहले दिन तीनों कार्यक्रम स्थलों पर बैंड पार्टी के कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं. उसके बाद नीलमणि स्कूल प्रांगण में होलिका दहन किया जाता है औऱ शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज होता है. तीसरे दिन सुबह से ही लोग फगुआ पोखर में रंगे खेलने के लिए पहुंचते हैं और कुछ ही देर में पोखर भी रंग में रंग जाता है.