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दिव्यांग खिलाडियों की नेशनल चैस चैंपियनशिप मुम्बई में शुरू

मुम्बई में 3 फरवरी से शुरू हुयी दिव्यांग खिलाडियों की नेशनल चैस चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए देश भर से 14 खिलाडी पहुंचे हैं।

Updated on: 05 Feb 2018, 01:26 PM

नई दिल्ली:

मुम्बई में 3 फरवरी से शुरू हुयी दिव्यांग खिलाडियों की नेशनल चैस चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए देश भर से 14 खिलाडी पहुंचे हैं। ये सभी खिलाडी दिव्यांग है जो आखों से देख नहीं सकते।

इन खिलाड़ियों की भले आंखों की रोशनी ना हो पर इनके दिमाग के सामने कोई नहीं टिक सकता। इस चैंपियनशिप में दिव्यांगों के लिए एक खास किसम का चैस बोर्ड भी इस्तेमाल हो रहा है। जिससे नेत्रहीन खिलाडियों के लिए भी छूकर शतरंज के पाशों को पहचानना आसान होता है।

ऑल इंडिया चैस फेडरेशन फॉर ब्लाइंड के अध्यक्ष चारुदत्त जाधव खुद भी एक नेत्रहिन चैस खिलाड़ी है जो नेशनल चैस चैंपियनशिप के विजेता रह चुके है। चारुदत्त जाधव की माने तो यहाँ खेल रहे तमाम खिलाडी देश भर के राज्य स्तर पर हुए चैस टूर्नामेंट को जीत का यहाँ तक पहुंचे है।

चारुदत्त जाधव की माने तो चैस एक ऐसा खेल हैं जहाँ नेत्रहीनों के लिए भी गेम के नियम में कोई बदलाव नहीं किया जाता और यहाँ मौजूद कई खिलाडी अंतरास्ट्रीय स्तर पर भारत की तरफ से खेल चुके हैं। और ये खिलाडी उन चैंपियंस को भी चैस में हरा चुके हैं, जो आखों से देख सकते हैं।

अँधेरी स्पोर्ट काम्प्लेक्स में चल रहे इस नेशनल चैस चैंपियनशिप पर दुनिया भर की नज़र टिकी हुई है। दुनिया के कई देशों की नज़र इन खिलाड़ियों की हर चाल पर बारीकी से नज़र गराई हुयी है।

क्योंकि इस खेल को जो भी खिलाड़ी जीतेगा उसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की तरफ से खेलने का मौका मिलेगा जो इसी साल बुल्गारिया में होने वाली है। और यही वजह है कि आंखों में रोशनी भले ना हो पर इनके जज्बे की ताकत आप और हमसे कई गुना ज्यादा है।

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इस चैस चैंपियनशिप का विजेता कौन होगा इसकी घोसना ११ फ़रवरी को होने वाली है। यहाँ मौजूद हर खिलाडी दूसरे हर खिलाडी के साथ एक एक बार चैस में टकराएंगे और जिस खिलाडी का स्कोर सबसे बेहतर होगा वही होगा इस चैंपियनशिप का विजेता।

गौरतलब है की इन दिव्यांग खिलाडियों की मेहनत और जज्बे को दुनिया सलाम तो कर रही है पर भारत सरकार ने अभी भी नेत्रहीन द्वारा खेले जाने वाले इस चैस चैंपियनशिप को खेल का दर्जा नहीं दिया है जिसकी वजह से इन खिलाड़ियों को बाकी खेलों की खिलाडियों की तरह नौकरी या दूसरी सरकारी सुविधा नहीं मिलती है।

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