Modi Surname Case: राहुल गांधी ने 2013 में न फाड़ा होता अध्यादेश, तो आज न जाती सांसदी
यूपीए सरकार द्वारा लाए जा रहे अध्यादेश के तहत दोषी सांसदों को भी लोकसभा से अयोग्य ठहराने के लिए तीन महीने की राहत यानी सुरक्षा मिलने जा रही थी. यदि यह कानून बन जाता तो आज राहुल गांधी को मिलती बड़ी राहत.
highlights
- तत्कालीन यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ला रही थी अध्यादेश
- इसके तहत दोषी पाए गए सांसदों को अयोग्यता से बचने को मिल जाते तीन माह
- राहुल गांधी ने अध्यादेश की प्रति फाड़ यूपीए सरकार की मंशा पर फेरा था पानी
नई दिल्ली:
कर्म कहना तो ज्यादा हो जाएगा, लेकिन इसका दोष राजनीति की अनिश्चितताओं पर मढ़ा जा सकता है. फिलहाल वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 2013 में आपराधिक मामलों में दोषी सांसदों को लोकसभा से तत्काल अयोग्यता (Disqualification) से बचाने के कदम का विरोध किया था. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation Of People Act) की धारा 8 (4) द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा के नहीं होने से अब पूर्व कांग्रेस प्रमुख को लोकसभा (Lok Sabha) से अयोग्य ठहराने का खतरा बढ़ गया. राहुल गांधी को गुरुवार को 'मोदी सरनेम' मानहानि मामले में सूरत जिला अदालत ने दोषी करार दे दो साल की सजा सुनाई है. हालांकि जिला अदालत ने सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील के लिए राहुल गांधी की सजा को एक महीने के लिए सस्पेंड कर जमानत पर रिहा कर दिया था. गौरतलब है कि 2013 में अजय माकन (Ajay Maken) के एक संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी अचानक पहुंचे. वहां उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (4) को रद्द करने के फैसले के खिलाफ यूपीए सरकार की ओर से लाए जा रहे अध्यादेश की प्रति फाड़ दी थी. यूपीए सरकार द्वारा लाए जा रहे अध्यादेश के तहत दोषी सांसदों को भी लोकसभा से अयोग्य ठहराने के लिए तीन महीने की राहत यानी सुरक्षा मिलने जा रही थी.
यूपीए सरकार लालू को बचाने ला रही थी अध्यादेश
तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ लाया जा रहा अध्यादेश उस वक्त राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों समेत सत्तारूढ़ गठबंधन की मंशा पर सवाल खड़े कर रहा था. उस वक्त माना गया कि इस अध्यादेश को राजद प्रमुख लालू प्रसाद को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य होने से बचाने के लिए यूपीए सरकार द्वारा लाया गया था. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को एक और चारा घोटाला मामले में दोषी ठहराया गया था. यह अलग बात है कि सार्वजनिक तौर पर अध्यादेश को फाड़ देने वाले राहुल गांधी ने लालू को उबारने की यूपीए सरकार की योजनाओं पर पानी फेर दिया. साथ ही यूपीए कैबिनेट को अध्यादेश वापस लेने के लिए भी मजबूर कर दिया. महत्वपूर्ण बात यह है कि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पहले ही यूपीए के मंत्रियों के सामने अध्यादेश के खिलाफ आपत्ति जता दी थी, जो इस पर उनकी सहमति हासिल करने के लिए उनके संपर्क में थे.
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वर्तमान में राहुल गांधी गांधी की सांसदी पर मंडरा रहा खतरा
पूर्व कानून सचिव पीके मल्होत्रा ने लोकसभा से अयोग्यता पर बताया, 'कानून की वर्तमान स्थिति के अनुसार किसी मामले में दोषी पाए जाने और अदालत से दो साल या उससे अधिक की सजा पाए राजनेता अपनी संसद या विधानसभा की सदस्यता खो देता है. इसके साथ ही जेल की सजा पूरी करने के बाद छह साल के लिए चुनाव भी नहीं लड़ सकता है.' वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने स्पष्ट किया कि अयोग्यता पर कानून संविधान के अनुच्छेद 102 के तहत अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. लिली थॉमस मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 101 के आधार पर दोषी पाए गए संसद सदस्या की सीट स्वतः खाली हो जाती है.' वरिष्ठ अधिवक्ता निदेश गुप्ता ने कहा, 'राहुल के पास अपनी संसद सदस्यता बचाने का एकमात्र उपाय सजा पर रोक यानी अदालती निर्णय पर स्टे हासिल करना है.'
फिलहाल एक महीने तक बचे रह सकते हैं राहुल
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के केसी कौशिक कहते हैं, 'सूरत जिला अदालत के कल आए फैसले में एक खास पेंच है. यह राहुल गांधी को फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए एक महीने का समय देता है. इसका मतलब है कि सजा का अदालती फैसला एक महीने बाद लागू होगा, तब तक राहुल गांधी की लोक सभा से अयोग्यता का कोई सवाल ही नहीं उठता है.'
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