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सियासत में 'आधी आबादी' की बढ़ी भागीदारी..पर मध्य प्रदेश में कम है हिस्सेदारी

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर संसद से सड़क तक चर्चा होती है. 17वीं लोकसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण भी दे दिया गया है, लेकिन मध्य प्रदेश की सियासत में आधी आबादी की सक्रियता आज भी कम है. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह

Updated on: 02 Apr 2024, 07:10 PM

नई दिल्ली:

देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी आज भी कम है. यहां तक कि देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद से लेकर ग्राम पंचायत में आज भी महिलाओं की हिस्सेदारी ना के बराबर है. हालांकि, पिछले कुछ दशकों में महिलाएं आज पंचायत से लेकर राष्ट्रपति चुनाव तक में परचम लहारा रही हैं. बीजेपी नेतृत्व एनडीए सरकार ने बीते साल संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण बिल को पास कराया गया था जो कि उस दौरान होने वाले राज्यों के विधानसभा में चुनावी मुद्दा भी बना. अब देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं. राजनैतिक दलों की ओर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान भी करीब-करीब पूरा हो गया है. मध्य प्रदेश की बात करें तो बीजेपी ने 29 तो वहीं कांग्रेस ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं पर इनमें महिला उम्मीदवारों की संख्या बेहद कम है. प्रदेश में दोनों मुख्य दलों की ओर से कम ही महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है. लोकसभा के लिहाज से क्या है मध्य प्रदेश में महिला प्रत्याशियों की स्थिति 

क्या है इतिहास
- मध्य प्रदेश में हुए 1957 से 2019 तक के लोकसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों के चुनाव में खड़े होने और विजयी होने के पूरे इतिहास को देखें तो तस्वीर कुछ अलग ही नजर आती है.
-1957 से 2019 तक प्रदेश में लोकसभा चुनाव में 377 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़ी हुई हैं, इसमें 59 महिलाएं विजयी रही हैं. यानि महिला प्रत्याशियों के जीतने का प्रतिशत सिर्फ 15.65 रहा है.

-जबकि अब महिला मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं और महिला मतदान पहले की तुलना में ज्यादा होने लगा है.

लोकसभा वार स्थिति

प्रदेश में 1957 से 2019 तक सर्वाधिक महिला उम्मीदवार-

लोकसभा क्षेत्र महिला उम्मीदवारों की संख्या
खजुराहो  27
भोपाल  23
रायगढ़  20
रीवा   19
इंदौर  17
   

  1996 के चुनाव में सबसे अधिक महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरीं
प्रदेश में महिलाएं अपना भाग्य अजमा चुकी हैं. सूबे में नए परिसीमन के बाद 2004 से कुछ क्षेत्रों के नए नामकरण हो गए हैं, उन क्षेत्रों में अभी तक 2 से 4 महिला उम्मीदवार चुनाव में अपना भाग्य आजमा चुकी हैं. वैसे 1996 के चुनाव में प्रदेश से 75 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव में खड़ा होकर एक रिकॉर्ड बनाया था. सबसे कम यानी एक मात्र उम्मीदवार दमोह से 1971 में खड़ी हुई थी, जो न्यूनतम महिला उम्मीदवार का रिकॉर्ड है.

सुमित्रा महाजन ने बनाया रिकॉर्ड

जहां तक सफलता का सवाल है प्रदेश में सबसे ज्यादा चुनाव में जीतने का रिकॉर्ड सुमित्रा महाजन का है, वह अब तक आठ बार चुनाव जीत कर संसद पहुंची हैं. दूसरे नंबर 
विजयाराजे सिंधिया हैं. वह सात बार जीत दर्ज की हैं. इसके अलावा मिनिमाता अगमदास गुरु 5 बार और सहोदरा बाई 4 बार जीत अपने नाम दर्च कर चुकी हैं. इसके अलावा एक से तीन बार विजयी होने वाली नेत्रियों में पुष्पा देवी,केशर कुमारी, विद्यावती चतुवेर्दी, विमला वर्मा, मैमुना सुल्ताना, यशोधरा राजे और सुषमा स्वराज का नाम आता है.

कम प्रतिनिधित्व के कारण

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहले की तुलना में महिलाओं की सक्रियता अब धीरे-धीरे बढ़ी है इसलिए पार्टियां भी अब महिलाओं को तवज्जो देती है, हालांकि महिला या पुरुष उम्मीदवार को उतारना किसी एक क्षेत्र के मुद्दों पर निर्भर करता है. साथ ही उम्मीदवार के जीतने की संभावना भी इस पर निर्भर करती है कि प्रत्याशी कौन है.
 महिला आरक्षण बिल का मुद्दा इस चुनाव में इतना ज्यादा दिखाई नहीं देगा पर महिला वोटर को ध्यान में रखते हुए और क्षेत्र की प्राथमिकता को देखते हुए पार्टियों ने महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है.

लोकसभा चुनाव 2024 में मप्र से महिला प्रत्याशी

बीजेपी ने इस बार 29 में से 6 सीटों पर महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे है तो वहीं कांग्रेस ने सिर्फ 1 महिला को ही मौका दिया है. जहां महिला प्रत्याशियों के जीतने की संभावना की बात है तो बीजेपी का कहना है कि चुनाव में पीएम मोदी ही हमारा चेहरा है,बात सिर्फ महिलाओं को जिताने की नहीं है पार्टी संगठन पूरी 29 सीटों पर जीत की तैयारी में लगा हुआ है.बीजेपी ने हमेशा ही महिलाओं के सशक्तिकरण की बात की है और इस चुनाव में वह दिख भी रहा है. तो वहीं कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी बस अपने फायदे के लिए चेहरे बदलती है,महिलाओं के अधिकार से उनका कोई लेना देना नहीं है.