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Electoral Bonds को लेकर क्यों राजनीतिक पार्टियों में बढ़ा तनाव? जानें SBI किस तरह के कर सकती है खुलासे 

इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को साझा करते हुए SBI ने वक्त मांगा था. इससे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अब मंगलवार को एसबीआई को पूरी डिटेल देनी होगी. 

Updated on: 11 Mar 2024, 05:07 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (SC) से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को निराशा हाथ लगी है. दरअसल, इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) से जुड़ी सूचनाओं को लेकर एसबीआई ने 30 जून तक का वक्त मांगा था. मगर एसबीआई की मांग को खारिज कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से मंगलवार यानी 12 मार्च तक सभी जानकारी साझा करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी  को निर्णय देते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार करके रद्द कर दिया था. इसके साथ एसबीआई से 6 मार्च तक सभी डिटेल को चुनाव आयोग के पास जमा करने को कहा था.

इसे लेकर एसबीआई ने 30 जून तक का वक्त मांगा था. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले का संज्ञान ले रही है. 

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सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों के बेंच ने एसबीआई की मांग को खारिज कर दिया है. एसबीआई ने 12 मार्च तक सभी डिटेल को चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया है. इसके साथ चुनाव आयोग को ये सभी जानकारी 15 मार्च की शाम 5 बजे तक वेबसाइट पर अपलोड करने को कहा है. 

2018 को कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था

साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का ऐलान किया था. इसे 29 जनवरी 2018 को कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. सरकार का मानना था कि इससे चुनावी चंदे में पारदर्शिता आएगी. इस तरह से दानकर्ता का नाम सामने नहीं आएगा ताकि बाहर उसे परेशानी का सामना न करना पड़े. एसबीआई की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी होते हैं. ये राशि एक हजार से एक करोड़ रुपये तक की हो सकती है. इसे कोई भी खरीद सकता है और पसंद की राजनीतिक पार्टी को दिया जा सकता है.  

खरीदने की क्या थी प्रक्रिया? 

इलेक्टोरल बॉन्ड को वर्ष में चार बार- जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किया जा सकता था. इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं दलों को दिया जा सकेगा, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी मतदाना मिले हों.  साल में चार बार 10-10 दिन के लिए इन बॉन्ड को निकाला जाता है. कोई भी शख्स या कॉर्पोरेट हाउस इन बॉन्ड को खरीद सकता था. बॉन्ड मिलने के 15 दिनों के अंदर राजनीतिक पार्टी को अपने खातें में जमा कराना होता था. कानूनन, राजनीतिक पार्टियां ये बताने लेकर मजबूर नहीं थीं. 

अलग-अलग सीलंबद लिफाफों में जानकारी 

बॉन्ड किसने खरीदा और किसे दिया. इसकी डिटेल एक ही जगह रखी जाती है या अलग-अलग. एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि डोनर और रिसीवर की पूरी जानकारी अलग-अलग सीलंबद लिफाफों में मुंबई की मेन ब्रांच में रखी जाती है. ऐसे में एसबीआई को क्या परेशानी हो रही है. इस पर उसका कहना है कि जब डोनर और रिसीवर की डिटेल एक ही ब्रांच में मौजूद है तो फिर इसे जमा करने में टाइम इसलिए मांगा गया था क्योंकि दोनों की डिटेल क्रॉस-मैचिंग करने में समय लगता है. सुप्रीम कोर्ट में एसबीआई के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी दो अलग-अलग सीलबंद लिफाफों में मौजूद है. इनका मिलान करना और विस्तृत जानकारी जारी करना एक लंबी प्रक्रिया है.