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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी, कहा- तीन तलाक का फैसला संवैधानिक वैधता के आधार पर ही होगा

ट्रिपल तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरु हो गई है। इस मुद्दे पर पांच जजों की बेंच सुनवाई कर रही है।

Updated on: 11 May 2017, 01:20 PM

नई दिल्ली:

ट्रिपल तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरु हो गई है। इस मुद्दे पर पांच जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। इस मुद्दे पर दाखिल की गई इस याचिका का नाम 'समानता की खोज बनाम जमात उलेमा-ए-हिंद' दिया गया है।

ट्रिपल तलाक के साथ साथ अन्य कई याचिकाओं पर भी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। जिसमें शायरा बानो, आफरीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहां और आतिया सबरी मामले शामिल हैं।

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सुनवाई शुरू होते ही क्या कहा सुप्रीम कोर्ट नेः

शायरा बानो के वकील ने कहा, 3 तलाक धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं। अनिवार्य हिस्सा वो होता है जिसके हटने से धर्म का स्वरूप ही बदल जाए

केंद्र की ओर से ASG पिंकी आनंद ने कहा, सरकार याचिकाकर्ता के समर्थन में है कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है। बहुत सारे देश इसे खत्म कर चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की संवैधानिक वैधता के आधार पर फैसला दिया जाएगा।

याचिकाकर्ता फरहा फैज ने कहा कि तीन तलाक को एक बार में बोलना, हटाया जाना चाहिए।

जस्टिस नरीमन ने कहा है कि एक बार में तीन तलाक बोलने के मामले पर सुनवाई होगी। तीन महीने के अंतराल पर बोले गए तलाक पर विचार नहीं।

अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि दलीलों को दोहराए जाने पर वह वकीलों को रोक देगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि मामले से जुड़े विभिन्न पक्षों को बेंच द्वारा तय किए गए दो सवालों पर जिरह करने के लिए दो-दो दिन मिलेंगे।

सलमान खुर्शीद की तीन तलाक को मुद्दा न मानने वाली बात को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सपॉर्ट किया है।

सलमान खुर्शीद ने कहा है कि अगर कोई शख्स एक बार भी तलाक कहता है और अगली तीन महीने तक रद्द नहीं करता है, तो वह मान्य होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह जानना चाहा है कि मुस्लिम पर्नल लॉ क्या है। यह शरीयत है या कुछ और?

सुप्रीम कोर्ट ने खुर्शीद से पूछा कि क्या तीन बार तलाक बोलना संहिताबद्ध है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को सुनवाई में मदद के लिए न्याय मित्र के तौर पर शामिल किया है।

सलमान खुर्शीद ने कहा कि तीन तलाक कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि पति और पत्नी दोनों की इच्छा के बिना इसे पूरा नहीं माना जाता है।

6 दिन की सुनवाई में तीन दिन ट्रिपल तलाक को चुनौती देने वालों की सुनवाई होगी और तीन दिन डिफेंड करने वालों की।

सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर 6 दिन तक सुनवाई चलेगी।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तलाक-ए-बिद्दत (एक बार में 3 तलाक कहना), हलाला और बहुविवाह की इजाजत दी जा सकती है ?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्या तीन तलाक को पवित्र माना जा सकता है, इस पर सुनवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या तीन तलाक मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, इस पर सुनवाई की जाएगी।

क्या तीन तलाक को मौलिक अधिकार के दायरे में लाया जा सकता है?: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए तीन बिंदु निर्धारित किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी तीन तलाक और हलाला पर सुनवाई की जाएगी, बहुविवाह पर सुनवाई नहीं होगी।

सुनवाई की शुरुआत में चीफ जस्टिस ने कहा, ट्रिपल तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है या नहीं? इस पर सुनवाई होगी।

तीन तलाक पर सुनवाई करने वाले जज हैं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और अब्दुल नजीर।

संवैधानिक पीठ में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम सहित सभी समुदाय के सदस्य हैं। इस पीठ में चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं।

इनमें पांच याचिकायें मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुये इसे असंवैधानिक बताया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दे पर सुनवाई करेगा, यानी कॉमन सिविल कोड का मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने नहीं है।

केंद्र सरकार के सवाल

1. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तीन तलाक, हलाला और बहु-विवाह की इजाजत संविधान के तहत दी जा सकती है या नहीं ?
2. समानता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
3. पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं?
4. क्या तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी दस्तखत किये हैं?

क्या है अर्जी ?
- मार्च 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी।

- बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।

- जयपुर की आफरीन रहमान ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। मैरिज पोर्टल से शादी करने वाली रहमान को उसके पति ने स्पीड पोस्ट से तलाक का पत्र भेजा था। उन्होंने भी 'तीन तलाक' को खत्म करने की मांग की है।

- ट्रिपल तलाक को अंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के गौरवपूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए पश्चिम बंगाल के हावडा की इशरत जहां ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

- इशरत ने अपनी याचिका में कहा है कि उसके पति ने दुबई से ही फोन पर तलाक दे दिया और चारों बच्चों को जबरन छीन लिया।

- सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पअपनी याचिका में इशरत ने कहा है कि उसका निकाह 2001 में हुआ था और सात से 22 साल के बच्चे भी हैं। इशरत ने कहा है कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है।

- याचिका में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है जबकि मुस्लिम बुद्धिजीवी भी इसे गलत करार दे रहे है।