अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता व्यर्थ अभ्यास है: सुब्रह्मण्यम स्वामी
निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया. यूपी सरकार ने भी अवहवहारिक बताया, जबकि मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है.
नई दिल्ली:
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में आज सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस बोबड़े बोले, ये महज भूमि विवाद का मसला नहीं है. ये लोगों की भावनाओं से जुड़ा मसला है. हम इस फैसले के आने के बाद आने वाले रिजल्ट को लेकर सतर्क हैं. मध्यस्थता की नाकाम कोशिशों की दलीलों को लेकर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हम अतीत को नहीं बदल सकते, पर आगे तो फैसला ले सकते हैं.
कोर्ट में एक वकील ने दलील थी कि मध्यस्थता को लेकर अगर सभी पक्ष राजी भी हो जाते हैं, तो भी जनता मेडिएशन के रिजल्ट को स्वीकार नहीं करेगी. निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया. यूपी सरकार ने भी अवहवहारिक बताया, जबकि मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है.
वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है, 'अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता व्यर्थ अभ्यास है.'
Subramanian Swamy: Mediation in Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case is a sterile exercise. pic.twitter.com/BWG1FMUuWN
— ANI (@ANI) March 6, 2019
बता दें कि सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद केस को कोर्ट की ओर से नियुक्त मध्यस्थ के जरिए सुलझाने के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए थे. कोर्ट ने कहा था कि बेहतर होगा सभी पक्ष बातचीत के जरिए किसी हल तक पहुंचने के लिए कोशिशें करें. निर्मोही अखाड़ा ने इस पर सहमति जताई थी, लेकिन रामलला विराजमान कोर्ट के इस सुझाव से सहमत नहीं था. उनका कहना है कि ऐसी कोशिशें पहले भी विफल हो चुकी हैं. मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि अगर बातचीत गोपनीय रहे, तो कुछ हल निकल सकता है.
ये भी पढ़ें: कांग्रेस को पाकिस्तान के एजेंट के रूप में देख रहे लोग : सुब्रह्मण्यम स्वामी
जानकार बताते हैं कि CPC की धारा 89 के तहत कोर्ट को ये अधिकार है कि वो किसी दीवानी मामले को मध्यस्थता के लिए भेज सकता है . इसके लिए ज़रूरी नहीं कि सभी पक्ष मध्यस्थता के लिए राजी ही हो, उनके बिना भी कोर्ट चाहे, तो मध्यस्थता का आदेश सकता है.
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