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रोहिंग्या शरणार्थियों ने भारत सरकार से लगाई गुहार, हमें म्यांमार न भेजे वरना हो जाएगी हत्या

रोहिंग्या के बीच डर और चिंता का माहौल है. उनकी चिंता का मुख्य कारण यह है कि म्यामांर में अभी शांति का माहौल नहीं है. ऐसे में अगर वह वहां जाते हैं, तो उनकी हत्या हो जाएगी.

Updated on: 07 Oct 2018, 10:52 AM

नई दिल्ली:

रोहिंग्या रिफ्यूजी ने भारतीय कैंप्स से म्यांमार भेजे जाने पर डर और चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जब तक म्यांमार में शांति नहीं होगी, तब तक वह म्यांमार नहीं जाएंगे. केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को 7 रोहिंग्या रिफ्यूजी को म्यांमार भेजे जाने पर रेफ्यूजी कैंपस में रह रहे रोहिंग्या के बीच डर और चिंता का माहौल है. उनकी चिंता का मुख्य कारण यह है कि म्यामांर में अभी शांति का माहौल नहीं है. ऐसे में अगर वह वहां जाते हैं, तो उनकी हत्या हो जाएगी.

मीडिया से बात करते हुए रोहिंग्या रिफ्यूजी महमूद फारूख ने बताया कि, 'मैं यहां साल 2012 से रह रहा हूं. मैं सरकार से बस यहां रहने की गुजारिश कर रहा हूं. हमने बहुत सी परेशानियों का सामना किया है. हम भारत लालच की वजह से नहीं आए हैं. लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि कोई भी अपना देश नहीं छोड़ना चाहता है.'

महमूद ने भारत से म्यांमार भेजे गये रोहिंग्यों के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा कि वहां वापस भेजे गए लोगों को जल्द ही मार दिया जाएगा.

आगे उन्होंने बताया कि, 'हमारी सारी जानकारी और रिकॉर्ड प्रशासन और यूएन के पास है. पुलिस हमारे पास कोई फार्म लेकर आई थी, वह बर्मीज भाषा में था और हमने उसे भरने से मना कर दिया. जिन 7 लोगों को यहां से बर्मा भेजा गया है वो वहां ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाएंगे. उन्हें वहां मार दिया जाएगा.'

महमूद की ही तरह रेफ्यूजी हरून ने भी मीडिया रिपोर्टर से उन्हें म्यांमार भेजे जाने पर चिंता जाहिर की. हरून ने उदास और डर से भरी आवाज में कहा कि, 'हम यहां साल 2005 से रह रहे हैं. भारत सरकार ने हमारे वीजा को आगे बढ़ाने के सिवाय कोई मदद नहीं की है. पर सरकार ने हमारे वीजा को 2017 से रिन्यू नहीं किया है. हमारे वीजा इससे पहले 5 बार रिन्यू हो चुके हैं. हम सरकार से गुजारिश करते हैं कि हमें यहां रहने दिया जाए क्योंकि वहां अभी भी शांति नहीं है. आज भी लोगों के घर वहां जलाए जा रहे हैं. इससे क्या फरक पड़ता है कि हम यहां कितने दिनों तक रहते हैं, हम यहां के नागरिक तब तक नहीं बन पाएंगे जब तक सरकार ऐसे कोई प्रावधान नहीं लाती है.' 

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उन्होंने आगे बताया कि, 'बर्मा एम्बेसी से कोई फार्म आया था. हम भारत सरकार के सारे आदेश मान रहे हैं. उस फार्म को हम इसलिए नहीं भर पाए क्योंकि वह बर्मा भाषा में था. उस फार्म को भरने का मतलब था कि हम अपनी इच्छा से बर्मा जा रहे हैं. पर हम अभी म्यांमार वापस नहीं जाना चाहते हैं.' 

अगस्त 2017 में  म्यांमार आर्मी ने देश के उत्तरी राज्यों में एक बड़ी कार्रवाई की थी. इसके बाद लगभग 6 लाख 50 हजार लोगों को राखिने छोड़ कर भागना पड़ा था. तब से अब तक एक बड़ी संख्या में रोहिंग्या रिफ्यूजी म्यांमार छोड़ कर भारत और बांग्लादेश का रूख कर रहे हैं. वह रेफ्यूजी कैंपस में तमाम परेशानियों का सामना करते हुए इनमें रह रहे हैं.