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अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से चिंतित मलाला यूसुफजई, बोली यह बात

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर नोबल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने चिंता व्यक्त की है

Updated on: 15 Aug 2021, 10:00 PM

नई दिल्ली:

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर नोबल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने चिंता व्यक्त की है. मलाला ने कहा कि हम इस बात को लेकर सदमे में हैं कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है. मुझे महिलाओं, अल्पसंख्यकों और मानवाधिकारों के पैरोकारों की गहरी चिंता है. उन्होंने कहा कि वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय शक्तियों को तत्काल युद्धविराम का आह्वान करना चाहिए, तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करनी चाहिए और शरणार्थियों और नागरिकों की रक्षा करनी चाहिए. आपको बता दें कि तालिबान की गोली खाने वालीं नोबल पुरस्कार विजेता मलाला सोशल मीडिया पर काफी ट्रोल हुईं थी. वजह केवल इतनी थी कि उनकी ओर से तालिबान और अफगानिस्तान के बीच जारी हालात पर कोई बयान नहीं आया था. लेकिन अब मलाला ने पहली बार अफगानिस्तान की स्थिति पर ट्वीट किया है.

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दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान को लेकर बन रहे मौजूदा हालात पर मलाला की चुप्पी को लेकर काफी सवाल पर उठ रहे थे. इस बीच लंबे समय से यह भी मांग चल रही थी कि मलाला को तालिबान के खिलाफ खुलकर बोलना चाहिए. इसके पीछे एक कारण यह भी माना जा रहा था कि मलाला ने खुद तालिबान की हिंसा को सहा है. ऐसे में मलाला का मौन रहना कुछ लोगों को चौंका रहा था. यहां तक कि सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ मुहिम भी शुरू कर दी गई थी. सोशल मीडिया पर उनको 'डरपोक' बताया जा रहा था. इसके साथ ही कोई उन्हें दोहरे मापदंड रखने वाला बता रहा था. गौरतलब है कि मलाला यूसुफजई का जन्म 12 जुलाई, 1997 को पाकिस्तान में हुआ था. उनको  केवल 17 साल की उम्र में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 

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महिलाओं की तस्वीरों को पेंट से ढंकते एक पुरुष की छवि दिखाई दे रही है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के काबुल की ओर बढ़ने के कारण हाल के दिनों में शहर की युवतियां मदद मांग रही हैं. साल 2002 से पहले जब तालिबान ने अफगानिस्तान को कब्जे में लिया था, आतंकवादियों ने शरिया कानून के एक संस्करण का अभ्यास किया, जिसमें व्यभिचार करने पर पत्थर मारना, चोरी करने पर अंगों को काटना और 12 साल से अधिक उम्र की लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना शामिल था. तालिबान के एक अधिकारी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि इस तरह की सजा देने का निर्णय अदालतों पर निर्भर होगा.