वाजपेयी ने आखिर क्यों साल 2004 में चुनाव परिणाम आने से पहले ही कह दिया था- 'सरकार तो गई'
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की आशंका बिल्कुल सही साबित हुई और जब चुनाव परिणाम आए तो शाइनिंग इंडिया जैसे दमदार नारों के बावजूद भी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को हार का मुंह देखना पड़ा था।
नई दिल्ली:
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के निधन के बाद एक इंटरव्यू में दशकों तक उनके साथ रहे शिवकुमार ने खुलासा किया है कि उन्हें साल 2004 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में परिणाम आने से पहले ही बीजेपी के हारने का आभास हो गया था. वाजपेयी की आशंका बिल्कुल सही साबित हुई और जब चुनाव परिणाम आए तो शाइनिंग इंडिया जैसे दमदार नारों के बावजूद भी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को हार का मुंह देखना पड़ा था. यह खुलासा वाजपेयी के बेहद करीबी रहे शिवकुमार पारीक ने की है. इसके साथ ही उन्होंने वाजेपयी के शासन काल वाली बीजेपी और वर्तमान बीजेपी में तुलना भी की और कहा कि पहले जो बीजेपी और कार्यकर्ताओं में समन्वय था अब वो कहीं गुमा सा हो गया है.
करीब पांच दशकों तक हर सुख-दुख में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भागीदार रहे शिवकुमार ने बताया कि वाजपेयी को 2004 में अपने अंतिम चुनाव में वोट डाले जाने से एक दिन पहले ही पार्टी की हार का आभास हो गया था.
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शिवकुमार ने 2004 के चुनावी अभियान को याद करते हुए कहा, 'वाजपेयी जब लखनऊ में चुनाव प्रचार के अंतिम दौर के बाद आधी रात को लौटे तो उन्होंने कहा, 'सरकार तो गई, हम हार रह हैं.' करीब पांच दशकों तक वाजपेयी के सहयोगी रहे शिवकुमार ने बताया, 'जब मैंने कहा कि हम नहीं हार सकते तो वाजपेयी ने कहा, आप कौन सी दुनिया में जी रहे हो? मैं लोगों के बीच प्रचार अभियान चलाकर आया हूं.'
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शिवकुमार ने साल 2004 में बीजेपी की हार के मुख्य दो कारण भी गिनाए. उन्होंने कहा पहला कारण इंडिया शाइनिंग नारा था जो हमारे खिलाफ गया और दूसरा हार का कारण समय से पहले चुनाव कराने का फैसला था. हालांकि शिवकुमार ने इस बात से भी पर्दा उठाया कि जल्दी चुनाव का फैसला प्रधानमंत्री वाजपेयी का नहीं बल्कि पार्टी का था. इंटरव्यू में जब शिवकुमार से यह पूछा गया कि, बीजेपी एक बार फिर सत्ता में है और अगले चुनाव का सामना करने के लिए कमर कस रही है. मोदी सरकार का कामकाज आपको कैसा लग रहा है? वह वाजपेयी के दिखाए रास्ते पर चल रही है या नहीं? इस सवाल पर शिवकुमार ने कहा, 'यह एक राजनीतिक सवाल है. जब मैं किसी की तारीफ करता हूं तो मुझे उसे खुले दिल से करना चाहिए और जब मैं किसी की आलोचना करता हूं तो उसे भी उसी तरीके से करूंगा.'
उन्होंने कहा, 'अटल जी के रास्ते पर चलने का मतलब उनकी तरह जिंदगी जीने, हर किसी के साथ वैसा व्यवहार करना, जैसा उन्होंने किया और बतौर प्रधानमंत्री उनके जैसा कार्य करना है. मुझे उम्मीद है कि मोदी उस रास्ते पर चलेंगे.'
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उन्होंने कहा कि यह वाजपेयी की रखी नींव ही थी, जिस कारण बीजेपी ने न केवल 2014 में आधी से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाया, बल्कि अपने दम पर बहुमत पाने वाली पहली गैर कांग्रेस पार्टी भी बनी. केंद्र के अलावा बीजेपी 19 राज्यों में सत्ता पर काबिज है. अगर नींव मजबूत हो तो ढांचा भी स्थायी होगा. यह पूछने पर कि क्या देश दूसरे वाजपेयी को देख सकता है? शिव कुमार ने कहा, 'मेरा विश्वास है कि एक शिल्पकार किसी भी मूर्ति की रचना कर सकता है, चाहे वह भगवान राम की हो या हनुमान या फिर मां दुर्गा की, लेकिन लोग तब तक सिर नहीं झुकाएंगे जब तक उसे मंदिर में स्थापित न कर दिया जाए.'
उन्होंने कहा, 'अटलजी ने कार्यकर्ताओं के साथ भी वही किया. वर्तमान स्थिति में किसी ने भी ऐसा नहीं किया. वाजपेयी युग के दौरान पार्टी और कार्यकर्ताओं के बीच जो समन्वय था, वह अब गुम हो चुका है.' शिवकुमार ने कहा कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है और वाजपेयी की पहलों को आगे ले जा रही है. इस सरकार ने कई नई योजनाएं शुरू की हैं. वर्ष 2019 में देश के लोग इस सरकार का फैसला करेंगे.
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उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि वाजपेयी ने 2004 में मिली चौंकाने वाली हार के कारण खुद के सक्रिय राजनीति से अलग कर लिया. शिवकुमार ने कहा, 'अटलजी को हार और जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता था. आपने उनकी प्रसिद्ध कविता सुनी होगी..न हार में न जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं. हार के बाद उन्होंने मुंबई में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शिरकत की, जहां उन्होंने सक्रिय राजनीति से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की. उसके बाद उन्होंने अपने करीबियों के निजी समारोह में जाने तक ही खुद को सीमित कर लिया. वह 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में भैरों सिंह शेखावत के खड़े होने तक राजनीति में सक्रिय रहे थे.'
यह पूछे जाने पर कि वाजपेयी क्या सचमुच चाहते थे कि गोधरा दंगों के बाद मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए, शिवकुमार ने कहा, 'वाजपेयी चाहते थे कि वह (मोदी) राजधर्म निभाएं (कानून का राज स्थापित करें).'
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शिवकुमार ने वाजपेयी को बहुत करीब से देखा था. उन्होंने कहा कि दिवंगत नेता का जीवन एक खुली किताब की तरह था. वाजपेयी के निधन पर उन्होंने कहा, 'अब मैं एक अनाथ हूं.' वाजपेयी की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि के समय उनके परिवार के सदस्यों के अलावा शिवकुमार ही अकेले ऐसे शख्स थे, जिन्हें चिता के समीप जाने की अनुमति मिली थी.
शिवकुमार ने कहा, 'मैं एक आरएसएस कार्यकर्ता था। बाद में मैं जनसंघ का कार्यकर्ता बना. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संदिग्ध परिस्थितियों में निधन के बाद मैं अटलजी से मिला और केयरटेकर के रूप में उनके साथ काम करने की मैंने इच्छा जताई. पहले तो उन्होंने कोई वचन नहीं दिया, आखिरकार वह मान गए और मैंने 1967 से उनके साथ काम करना शुरू किया.'
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उन्होंने बताया कि किस तरह वह वाजपेयी की अंतिम सांस तक उनसे जुड़े रहे. उन्होंने कहा, 'अगर आपको भगवान राम के सुविचार, प्रभु कृष्ण की ऊर्जा और चाणक्य की नीतियां किसी एक व्यक्ति में तलाशें, तो वह अटल बिहारी वाजपेयी थे.' शिवकुमार के अनुसार, प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद से लेकर अस्पताल में भर्ती होने समय तक लगातार 14 साल वाजपेयी ने 3, कृष्ण मेनन मार्ग वाले आवास में गुजारे. उस दौरान वह टीवी पर सिनेमा देखते थे, गीत सुनते थे और मराठी नाटक देखते थे.
(IANS इनपुट के साथ)
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