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चीफ जस्टिस को चार पूर्व जजों ने लिखा खुला पत्र, कहा-जल्द सुलझाएं मामला

पूर्व जजों ने मुख्य न्यायाधीश को खुला पत्र लिखकर चारों जजों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि चारों जजों की तरफ से मुकदमों के आबंटन को लेकर उठाए गए मुद्दे से वो सहमत हैं।

Updated on: 14 Jan 2018, 06:51 PM

नई दिल्ली:

पूर्व जजों ने मुख्य न्यायाधीश को खुला पत्र लिखकर चारों जजों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि चारों जजों की तरफ से मुकदमों के आबंटन को लेकर उठाए गए मुद्दे से वो सहमत हैं। 

इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी है कि इस मामले का हल न्यायतंत्र के अंतर्गत ही ढूंढा जाना चाहिए।

इन चार जजों में एक सुप्रीम कोर्ट के जज भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीबी सावंत, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ए पी शाह, मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जज के चंद्रू, और बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व जज एच सुरेश ने इस खुले पत्र को मीडिया को भी दिया है।

जस्टिस शाह ने खुले पत्र की पुष्टि करते हुए कहा है, 'हमने खुला पत्रा लिखा है और जिन जजों के नाम इसमें हैं उनकी सहमति ली गई है।'

उन्होंने कहा कि जजों की राय सुप्रीम कोर्ट बार एसोशिएशन की राय से मेल खाती है कि जब तक कि मसला सुलझ नहीं जाता है तबतक महत्वपूर्ण मसलों को पांच जजों की बेंच में भेजा जाए।

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पत्र में कहा गया है, 'सुप्रीम कोर्ट के चारों सीनियर जजों ने गंभीर मुद्दे को उठाया है कि किस तरह से संवेदनशील मामलों को अलग-अलग बेंचों को आबंटित किया जाता है।'

साथ ही कहा गयी है, 'उन लोगों ने गंभीर चिंता जताई है कि मामलों को उचित तरीके से आबंटित नहीं किया जा रहा है। बल्कि मनमाने ढंग से किसी निर्दिष्ट बेंच को आबंटित किया जा रहा है। जिसका न्याय और कानून व्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।'

चारों पूर्व जजों ने कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट के चारों न्यायाधीशों से सहमत हैं, हालांकि चीफ जस्टिस ही रोस्टर को देखते हैं कि किस बेंच को कौन सा मामला दिया जाए। लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि इसे मनमाने तरीके से किया जाए और संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामलों के कुछ चुने हुए जूनियर जजों को लोगों को दिया जाए जिसे चीफ जस्टिस ने चुना हो।

पत्र में उन्होंने कहा है, 'इस मसले को सुलझाए जाने की जरूरत है। मामलों और उसकी सुनवाई करने वाली बेंच जो परदर्शी, निष्पक्ष और स्वच्छ तरीके से सुनवाई करे इसके लिये नियम बनाए जाने की ज़रूरत है... इसे जल्द किया जाए ताकि लोगों का विश्वास न्यायपालिका पर कायम हो सके।'

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